माया ने करवट ली और कुहनियों के बल होकर मेरे चेहरे पर झुक गई। रात के एक बज गए थे। वह तानसेन मार्ग के मेरे घर सह दफ्तर में रात सवा नौ बजे आई थी। पहले से ही अपनी पसंदीदा सिंगल माल्ट व्हिस्की ग्लेनफिडिक से महकती हुई। घर में आने के बाद हम शराब के दो और सहवास के एक दौर से सराबोर हो चुके थे। शराब का तीसरा दौर तैयार था। नशे में उसका जिस्म थरथरा रहा था। उसकी गहरी काली आंखों में जैसे रात का पूरा वजूद ही समा गया था। मेरा बिस्तर उसके जिस्म की रौशनी से जगमग था। पिछले केस में मेरा माया से जो राब्ता बना था वह अब स्थायी हो गया था। उसके साथ मेरी मुलाकातों का सिलसिला महीनों से कायम था। मेरे जीवन में जैसे वसंत ऋतु ठहर सी गई थी। मेरी आशिकमिजाजी को भी जैसे किसी डाक्टर ने छह महीनों से सख्त और अनुशासित आराम पर भेज दिया था।
मुझे ख्यालों में खोया देख माया ने अपने उरोज से मेरी छाती पर दबिश दी। मैं इस अजब संयोग पर मुस्करा दिया क्योंकि यह उस समय हुआ जब मैं यह सोच रहा था कि किस तरह मैं मायाजाल में गोल-गोल घूम रहा था।
‘कहां खो गए?’ माया ने नशे से नम आवाज में पूछा।
’खोया कहां हूं जानेमन, मैं तो डूब रहा हूं।’
’मुझे भी साथ ले लो न! तुम तो डूबोगे सनम, मुझे भी ले डूबो!’ उसने तरन्नुम में कहा। मेरी हंसी छूट गई।
’आधे घंटे बाद डूब जाएं? शराब और तुम्हारे शबाब का एक-एक दौर तो हो जाए!’
’एक-एक और दौर के बाद तो बस बेखबरी ही होगी। डूबने की किसे फुरसत होगी!’
’बाटम्स अप करें।’
’नहीं, मैं उठ नहीं सकती। लेटे-लेटे कर लेते हैं।’
उसने उसी पोजीशन में रहते हुए हाथ बढ़ा कर गिलास उठाया। उसका एक बड़ा घूंट भरा और फिर वही गिलास मेरे मुंह को भी लगा दिया। जन्नत का नजारा हो गया था। मेरी बांह उसके जिस्म का पूरा चक्कर काट कर उसे अपने करीब ले आई। अचानक मैंने कहा।
’एक-एक चाय हो जाए?’
’डैम यू अभि। यह तो मेरी सौतन ही हो गई है। जाओ बना लाओ। तुम मानोगे तो नहीं।’ उसने कहा।
जिंदगी में इश्क के अलावा मुझे कोई दूसरी अलामत थी तो वह चाय ही थी। गाढ़े दूध में तेज पत्ती और अदरक से महकती हाई कैलोरी चाय। पंजाबी में जिसे कहते हैं, ’दूध पत्ती ठोक के, मिट्ठा हत्थ रोक के।’ तो अंजाम-ए-इश्क यानी बिस्तर की बात चाय के बिना कैसे पूरी हो सकती थी!
हमारे जाम अभी बाकी थे। रात के डेढ़ बजे चाय का मतलब था कि यह दौर सुबह चार बजे तक खिंचेगा।
जब तक मैं चाय लेकर आया, माया नींद के झोंके में थी। वह पीठ के बल लेटी हुई थी। माया उम्र में मुझसे बड़ी थी। एक पति और एक आशिक को पहले झेल चुकी थी। लेकिन कुदरत की उस पर ऐसी मेहरबानी थी कि वह खूबसूरती से मालामाल थी। सच में क्या कहर थी! ऐसे लग रहा था जैसे दूधिया संगमरमर की कोई प्रतिमा उलटी पड़ी हो!
मैंने चाय टेबल पर रखी और उसे उठाने का कोई उपक्रम न किया। मुझे अपनी चाय के मजे लेने थे। यह कोई पहली बार नहीं था कि ऐसे हालात में माया के झपकी ले लेने की सूरत में उसके हिस्से की चाय भी मैं ही पी जाऊं। यही आज भी होने वाला था। मैंने अपनी चाय की चुस्की ली। मेरा तन-मन तृप्त हो गया। मेरी हिलडुल से माया कुनमुनाई, लेकिन उठी नहीं।
मैंने तसल्ली से चाय के दोनों गिलास खत्म कर दिए। जैसे ही मैंने दूसरा गिलास नीचे रखा, माया ने आंखें खोलीं।
’कितने भुक्खड़ हो! हर बार मेरी चाय भी पी जाते हो। मेरी हंसी निकल गई। मेरे जवाब का इंतजार किए बिना ही माया उठ कर बैठ गई। उसके उन्नत वक्ष को देख कर मेरा दिल बाहर को आ रहा था। माया इस स्थिति को एन्जाय कर रही थी। अचानक उसने अपनी दोनों बाहें सिर के पीछे कर के एक जोरदार अंगड़ाई ली और मेरे सब्र का बांध टूट गया। लेकिन मैं कुछ कर पाता उससे पहले ही माया ने शराब का अपना गिलास उठा लिया।
मैंने चूंकि अभी चाय खत्म की थी तो थोड़ा इंतजार करना ठीक समझा। मैंने सिगरेट निकाली। अक्सर ऐसे मौके पर हम दोनों एक ही सिगरेट से काम चला लेते थे। एक भरपूर कश लेने के बाद मैंने सिगरेट माया के होठों को लगा दी। एक मील लंबा कश लगा कर माया ने जैसे अपने फेफड़ों की तंदुरुस्ती की नुमाइश की।
माया से मेरा तार्रुफ पिछले केस के दौरान हुआ था। सच तो यह है कि उसकी मदद के बिना मैं शायद कातिल तक कभी पहुंच ही नहीं पाता। केस हल हो जाने के बाद लुधियाना के सेठ स्वर्ण स्कंद ने मुझे दस लाख रुपए का चेक भिजवाया था। सेठ लुधियाना का बड़ा जूलर था। फीस के साथ टोकन के तौर पर उसने मुझे सोने का एक नेकलेस भी भेजा था। वो नेकलेस मैंने माया को भेंट कर दिया था।
इस मामले के दौरान माया का आशिक भी मारा गया था। लेकिन उसकी मौत से पहले ही माया मेरे साथ हमबिस्तर होकर उसके विश्वासघात का गम गलत कर चुकी थी। भगवान ने माया को परियों सी खूबसूरती दी थी और कामक्रीड़ा का उसका प्रशिक्षण भी शायद स्वयं काम की देवी रति ने ही दिया था।
’यू आर सच ए स्टड’ जैसी प्रशंसा-पंक्ति हासिल करने वाले अभिमन्यु को कभा लगा ही नहीं कि वह माया को कभी संपूर्ण संतोष दे पाया हो। हर बार उसकी जिस्म से असंतोष टपकता हुआ सा महसूस करता था।
’कहां गुम हो बच्चे!’ माया ने मुझे टोका।
जब पहली बार माया ने मुझे बच्चे कहा था तो मेरी हैरानी पर उसने कहा था, ’जाने क्यों तुम इतना हैरान हो। अगर मैं कहती व्हेयर आर यू लास्ट बेबी तो ठीक था?’
मेरी जान में जान आई। यानी उसका मतलब शब्दशः नहीं था। इससे पहले मैं कुछ कहता वो अपने चुटकुले पर खिलखिला कर हंस दी। मैंने भी हंसी में उसका साथ दिया। शायद यह हमारे बंद परिवेश का असर होता है कि हम सेक्सुअली एक्टिव औरतों को लेकर सशंकित हो उठते हैं, उसके मुंह से बच्चा शब्द सुन कर दहल जाते हैं। हो सकता है कि उसने मेरे साथ को पूरा जीया हो और हम उसके इस खुलेपन को असंतोष का नाम दे देते हैं। माया के साथ हमबिस्तर होने के बाद मैं थोड़ा बौद्धिक भी हो जाता था।
इस बीच मैंने भी अपने गिलास से दो-तीन बड़े घूंट भर लिए थे। दारू ने अपना दम दिखाना शुरू कर दिया था।
’मजा आ रहा है?’ मैंने उसकी कमर के खम को नापते हुए पूछा।
’जल्दी क्या है! अभी तो रात जवां ही कहां हुई?’
’स्वीट हार्ट, रात तो कब की गुजर गई। अब तो सुबह को भी मासिक धर्म आने का वक्त आ गया है। अगर जनाब की तवज्जो न गई हो तो बता दूं कि पौन तीन बज गए हैं।’
‘बैड जोक, पर तुम्हारे पास आकर वक्त का किसे अंदाजा रहता है!’
मुझे लग नहीं रहा था कि माया अब समय पर उठ कर अपने घर के लिए निकल पाएगी। इसलिए मैंने उसी समय अपनी सेक्रेटरी कली को अगले दिन दो बजे रिपोर्ट करने का संदेश भेज दिया। क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैं खुद भी जल्दी उठ नहीं पाऊंगा।
’अच्छा किया। मुझे नहीं लगता कि मैं कल पूरा दिन ही उठ पाऊंगी।’
’क्या अच्छा किया!’
’कली को बोल दिया कल छुट्टी कर ले।’
अपने अब तक के आपसी रिश्ते में मैंने कभी भी माया को होश खोते हुए नहीं देखा था। उसकी समझ कमाल की थी और मैं इसका कायल था। अपनी भावनाओं से पराजित मैंने आगे बढ़ कर माया को चूम लिया।
’अभि। आय लव यू।’ माया ने नशीली आवाज में कहा। ’थैंक्यू।’ मेरे इस जवाब पर माया ने कहा, ‘पूरी दुनिया में इसका जवाब आई टू होता है। तुमने कितना बेतुका और ठंडा रिप्लाई किया, थैंक्यू, हुंह’।
यह पहली बार था। मेरे लिए खतरे की घंटी भी यही थी। यह प्यार-व्यार कभी मुझे अपनी थाली का लड्डू लगा ही नहीं।
वह शायद भांप गई थी।
’तुम्हें अच्छा नहीं लगता?’
’क्या?’
’प्यार।’
’मुझे कोई भी बंधन अच्छा नहीं लगता।’
’तो ठीक है। अभि माय हेटफुल वन।’
’दैट्स बेटर।’ मैंने उसे भींच लिया।
माया की यही खास बात थी। उसको ऐसा कुछ नहीं करना था जो हम दोनों के बीच कोई फांस बना दे। वो स्वयं भी स्वछंद रहने में विश्वास रखती थी।
मैंने घड़ी को देखा। सुबह के चवा चार बज गए थे।
’चेक किया?’
’क्या?’
’सुबह का मासिक धर्म खत्म हो गया कि नहीं!’ उसने कहा और मेरे ऊपर गिर गई। फिर हम कब दो से एक हो गए इसका एहसास भी न रहा। आधे घंटे बाद हम दोनों बेड पर गुत्थमगुत्था सोए हुए थे। सवा पांच बजे मेरे फोन की घंटी बज गई।
मुझे अभी ठीक से नींद भी नहीं आई। लेकिन फोन मेरे कान के एकदम करीब तकिए के नीचे पड़ा था। मैं उसे म्यूट करना भी भूल गया था। मैंने फोन का बटन दबा कर घंटी बंद की और फिर अर्धसुप्तावस्था में ही फोन पर नजर डाली। नाम देख कर मैं चौंक गया। नींद काफूर हो गई थी। बाहर भोर की पहली किरण फूट चुकी थी। मैंने अपनी आगोश में देखा। माया बेसुध सोई हुई थी। कमरे में एसी फुल ब्लास्ट चल रहा था। मुझे ठंड लग रही थी। आखिर अभी अप्रैल का महीना ही तो था। लेकिन माया ने अपने शरीर को अपने ही नारंगी रंग के दुपट्टे से ढक रखा था। सूरज की पहली किरण कमरे के पर्दे की एक महीन दरार से छन कर उस पर एक सतरंगी लकीर की तरह पड़ रही थी।
उसकी खूबसूरती देख कर मेरा दिल हलक में आ गया। फोन बंद हो गया था। फोन की घंटी मेरी नींद में महज खलल थी। लेकिन माया का तौबाशिकन हुस्न मेरी तमाम इंद्रियों को जागृत करने का अचूक फार्मूला था। मैंने एक आलोचक की नजर से उसके शरीर पर नजर दौड़ाई। एक भी बल ऐसा न था जिससे लगे कि बनाने वाले के हाथ में कोई कंपन आया हो। औरतें मेरी कमजोरी रही हैं। उनकी सहज उपलब्धता का दिल्ली शहर में शायद ही मेरे से बड़ा कोई गवाह हो। लेकिन माया की माया अपरम्पार थी। कोई दस मिनट मैं उसे एकटक देखता ही रहा।
फोन की घंटी ने फिर मेरा ध्यान भंग किया। मैंने फोन को साइलेंट पर न करने के लिए खुद को कोसा। लेकिन 15 मिनट में ही दूसरी बार फोन बजने का मतलब इमरजंसी था। लेकिन माया को निहारने का जो सुख था मैं उसे भंग नहीं करना चाहता था। फोन बदस्तूर बज रहा था।
मैंने अपने दोस्त नरेश नंदा को भोर की इस घड़ी में भद्दी गाली दी। माया कुनमुनाई। ’अभि प्लीज।’ वो सदा ही मेरे गाली देने पर एतराज जताती थी। मैंने फोन उठाया।
’साले कुत्ते तेरे पास तो घोड़े भी नहीं हैं कि मैं कहूं कि घोड़े बेच कर सो गया।’
‘बकवास नहीं। एक तो आधी रात को फोन और ऊपर से गाली गलौच।’
’शुक्र मनाओ कि मेरे सामने नहीं हो, नहीं तो चेहरे का नक्शा बदल देता। अपने पेंदे को उठाओ। साथ में जो लेटी है उसे कपड़े पहनाओ और दफा करो। नहीं तो खुद यहां से दफा होओ।’
’हुआ क्या है कमीने।’
’तुम्हारे व्हाट्सएप पर एक लोकेशन भेजी है। गोली की तरह यहां पहुंचो।’ फोन कट गया।