दो बातों की कोई हद नहीं होती-औरत होना और औरत होने के फायदे उठाना। औरत न होने के नुकसानों से मर्द लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। हर मर्द यह सोचता है कि अगर वह शरीर-विज्ञान के तहत औरत की जगह होता, तो आज वह चुनाव में खड़ा होता, तो अंधे भी उसी को वोट देते। जो अंधे नहीं हैं, वो तो अंधे होकर वोट देते ही। औरत की एक मुस्कान उसके लाखों अनुयायी बना देते हैं। यही अगर आदमी करे, तो उसकी नीयत पर शक होने लगता है।
औरत का औरत होना ही पर्याप्त है। आदमी का आदमी होना भी पर्याप्त नहीं लगता। उन सरकारी महकमों में, जहां काम के लिए कम और काम करने के बारे में सोचने के लिए वक़्त ज्यादा होता है, वहां औरतें अच्छे मुकाम हासिल कर लेती हैं। ऐसे में सरकारी दफ्तरों का नजारा कुछ यूं होता है-
‘आप क्या कर रही हैं, मिसेज वर्मा?’ मातहतों के प्रति, अगर वे खासतौर से औरतें हों, हर बॉस की मीठी आवाज उभरती है। ‘कुछ नहीं सर… बिट्टू का स्वेटर बुन रही थी। समझ में नहीं आ रहा, कौन सा डिजाइन सही रहेगा?’ मिसेज वर्मा सत्य को कड़वा जानते हुए भी उसे पूरे विश्वास से इसीलिए बोल देती हैं कि बॉस इस कड़वे सच को मिलावटी शराब की तरह एक घूंट में हजम कर लेंगे।
‘वैरी गुड, बिट्टू किस कलास में चल रहा है?’ बॉस पूछ लेते हैं।
‘अभी उसी क्लास में है, सर। कह रहा था कि ‘एग्जाम में आउट आफ कोर्स’ सवाल आए थे इस बार।’ बेटे के प्रति अपनी सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए मिसेज वर्मा का जवाब होता है।
‘वेरी बैड, ऐसा बहुत हो रहा है आजकल। शाम को क्या कर रही हैं आज?’ विषय-समर्थन के बाद विषय-परिवर्तन में आस्था जताते हुए बॉस पूछता है।
‘ऐसा क्यों पूछ रहे है, सर?’ यह जानते हुए भी कि उनके सर ऐसा क्यों पूछ रहे हैं, मिसेज वर्मा का सवाल उभरता है।
‘बस यूं ही।’ बिना वजह सवाल करने की अपनी सहज आदत की वकालत करते हुए बास का सहज सा जवाब होता है।
‘जैसा आप कहें, सर। एक महीने कि छुट्टी चाहिए।’
सर। बीमार होने का मन कर रहा है।’ बॉस इज आॅलवेज राइट की अंग्रेजी कहावत को सही सिद्ध करते हुए मिसेज वर्मा जवाब देती हैं।
‘बिल्कुल, बीमार होना तो अच्छी बात है। पहले आप हो लीजिए, फिर मुझे भी कुछ दिनों के लिए बीमार होना है।’ लेडीज फर्स्ट की तर्ज पर मिसेज वर्मा को अपने साथ कॉफी पीने के बाद बीमार होने की अनुमति देकर वे रेस्तरां का फोन मिलाने में लग जाते हैं।