नई दिल्ली। यह सवाल दुनिया भर के पुरुषों के सामने है। इसका जवाब आज तक नहीं मिल पाया है। वे बहुत कुछ चाहती हैं अपने साथी से। स्वाभाविक भी है। यह साल भर का प्रेम है कोई एक दिन का व्रत नहीं। मगर इस एक दिन के व्रत के लिए स्त्रियों को साल भर क्या चाहिए। क्या कभी पुरुष समझ समझ पाए हैं?
उफ… उनके अनगिनत तर्क? अनगिनत संशय? न खत्म होने वाले सवाल। पुरुष प्राय: समझ ही नहीं पाते कि महिलाएं उनसे चाहती क्या है? वे जब तक प्रेमिका रहती हैं, पुरुष उन्हें प्रसन्न रखने के लिए क्या नहीं जतन करते। शॉपिंग मॉल से लेकर मल्टीप्लेक्स तक कहां नहीं लेकर जाते। उसके लिए चांद उतार लेना और सितारे तोड़ लाने की बात पुरुष ही करता है। यह जानते हुए भी कि ये मुमकिन नहीं। तो वे सोचते हैं कि चलो गोलगप्पे वाले से लेकर पेस्ट्री शॉप तक या जायकेदार व्यंजन परोसने वाले रेस्तरां तक ही लेकर चलते हैं। तब भी जब वह वह पत्नी होती है, वे कई बार नहीं सोच पाते कि आखिर वे क्या चाहती है? उनकी पसंद क्या है?
यहां तक कि उम्र निकल जाती है उन्हें समझने में। बाल सफेद हो जाते हैं। हो सकता है कि आपके लाए चाकलेट बॉक्स देख कर वह उछल पड़े। या फिर मुंह फेर कर कह दे कि ये क्या बच्चों की चीज ले आए। या ये भी हो सकता है कि खिले हुए गुलाब देकर आप उसका दिल जीत लें, मगर ये भी हो सकता है कि जन्मदिन पर फूलों का गुलदस्ता भी उसे पसंद न आए। और यह कह दे कि इससे अच्छा मेरे लिए बनारसी पान ही ले आते। और पान न खाने वाले सैंयाजी भी मुंह ताकते रह जाते हैं।
सचमुच वाकई मुश्किल है कि स्त्रियां क्या चाहती हैं पुरुषों से। …तो उसकी एक मुस्कान के लिए कुछ भी कर देना ही शायद सब कुछ नहीं होता। जरूरी है कि उसकी गरिमा का भी पुरुष सम्मान करें। उसकी लाज की लज्जा रखे। उसकी भावनाओं का खयाल रखे। उसकी आंखों से काजल कभी न बहने दे। इसके लिए जरूरी नहीं है कि पुरुष बलशाली हो। अगर हो भी तो उसे विवेकवान होना चाहिए। उसके पास बुद्धि और धैर्य भी होना चाहिए।
तो स्त्रियां बुद्धिमान पुरुष चाहती हैं या बलशाली पुरुष? यह अकसर सवाल उठता रहा है। सदियों से उठता रहा है। हमें इसका एक उदाहरण महाभारत में भी मिलता है। द्रौपदी अपने पांच पतियों में भीम को इसलिए अधिक पसंद करती है क्योंकि वे बिना कोई तर्क किए उसकी बात पूरी कर देते हैं। उसे चार पतियों का धैर्य और विवेक पसंद नहीं। तो क्या सभी स्त्रियां ऐसा चाहती हैं। तो जवाब है-नहीं। आज स्त्रियां पुरुषों में प्रेमी के साथ भाई और पिता को भी ढूंढती हैं। वह सकारात्मक विचार-विमर्श करती है। उससे दुख-सुख बांटना चाहती हैं। वे प्रेमी या पति में सच्चा दोस्त तलाशती है। उनसे अपनी समस्या का तत्काल निवारण चाहती हैं। वह संबंध में एक संतुलन भी चाहती हैं।
दो साल पहले लेखक और वरिष्ठ पत्रकार मुकेश भारद्वाज ने अपनी पुस्तक ‘सत्ता का मोक्षद्वार : महाभारत’ में भीम और द्रौपदी के रिश्ते का संदर्भ रख स्त्री पुरुष संबंधों के कई आयाम सामने रखे थे। विवेकहीन बलशाली पुरुष से क्या हासिल है? उसकी ताकत के क्या मायने है? क्षण भर का सुख? उनका कहना है कि बल की नियति बुद्धि का औजार भर बन जाती है। पुस्तक में शामिल उनका आलेख भीमासुर आज के संदर्भ में कई सवाल खड़े करता है। खास तौर से तब जबकि स्त्री-पुरुष संबंध को मजबूत करने वाला व्रत कल मनाया जा रहा है।
भीम को संदर्भित करते हुए कवि चंडीदत्त शुक्ला सागर की कविता के साथ समापन करना चाहूंगा जो स्त्री-पुरुष संबंध को सजल और स्नेहमय देखते हैं-
सबसे बड़ी भूूल है उस स्त्री को खो देना
जो तुम्हें दुख में सीने से चिपका लेती थी।
खोकर उसे ढूंढोगे
तो संभव है मिल जाएं बहुत सुंदर स्तन
पर फिर नहीं मिलेगा वैसा गर्म सीना।
सबसे बुरा होता है उस पुरुष को खो देना
जो तुम्हारे ज्वर से निवृत्त होने की प्रतीक्षा में
घंटों झुलसता जाता था,
फिर रोते हुए तुम्हें हिचकियों के साथ
बेसुरी लोरी सुनाता था।
खो दिया तो उसे मिल जाएंगे
बहुत से हृष्ट पुष्ट पुरुष
लेकिन तुम्हारी स्मृति में अलल भोर तक
सिसकियां लेता बछड़े जैसा प्रेमी नहीं मिलेगा।