नई दिल्ली। भारतीय महिलाएं पुरुषों से कम नही हैं। हर क्षेत्र में वे कदम से कदम मिला कर काम कर रही हैं। अगर सेना और पुलिस बलों में उनकी उपस्थिति है तो भला जासूसी क्षेत्र में क्यों न हो। इसकी शुरुआत तो आजादी के लिए हुए आंदोलन के दौरान महिला क्रांतिकारियों ने शुरू कर दी थी। उस दौर में आजाद हिंद फौज की नीरा आर्य का नाम भी चर्चा में आया और वे उस दौर में पहली महिला जासूस कहलार्इं। मगर स्वतंत्र भारत में किसी पहली महिला जासूस का जिक्र होगा तो रजनी पंडित का ही नाम लिया जाएगा। जिस तेवर में वे अपने काम को अंजाम देती हैं उसे देखते हुए उन्हें महिला जेम्स बांड कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

पुलिस बल में महिलाकर्मियों के सामने जो चुनौतियां हैं, वह जासूसी क्षेत्र में भी कम नहीं है। तमाम जोखिम और सीमित संसाधनों के साथ रजनी पंडित तीन दशक से काम कर रही हैं। इस बीच उन्होंने एक के बाद एक कई मामले सुलझाए। कौन जानता था कि मध्यवर्गीय परिवार की एक लड़की एक दिन भारत की पहली महिला जासूस के रूप में विख्यात हो जाएगी। जासूसी क्षेत्र में रजनी का आना इत्तफाक से हुआ। पुरानी बात है। यह वह समय था जब वे एक कार्यालय में क्लर्कहुआ करती थीं। उसी दौरान वहां की एक महिला कर्मी के घर में चोरी हो गई।

जासूसी डगर पर सधे कदम
चोरी के उस मामले में रजनी पंडित ने यों ही अपने स्तर पर जांच की। उधर, महिला कर्मी को अपनी ही बहू पर संदेह था। जांच के क्रम में रजनी को महिला के बेटे पर शक हुआ। जब उन्होंने कई सवाल उससे किए तो वह धीरे-धीरे टूट गया और घर में चोरी करने की बात मान ली। इस तरह पहला मामला सुलझा। रजनी का हौसला बढ़ा और जासूसी के क्षेत्र में उनके जो सधे हुए कदम आगे बढ़े तो फिर बढ़ते ही चले गए। इसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

पिता से मिली विरासत
रजनी पंडित को अपने पिता से जासूसी के तौर-तरीके समझने में काफी मदद मिली। दरअसल, उनके पिता जासूस थे। सीआइडी में काम करते थे। उनसे रजनी ने काफी कुछ सीखा। वे कई गुत्थियां सुलझाने लगीं। लेकिन तब तक पिता को भी नहीं पता था बेटी जासूसी को करिअर बना रही है। इसमें उसको सफलता भी मिल रही है। जब उनहें पता चल गया तो उन्होंने बेटी का साथ दिया। गुर सिखाए। इस क्षेत्र में चुनौतियों के बारे में बताया। इसके बाद तो रजनी ने इसे पूरी तरह अपना करिअर ही बना लिया। वे भेष बदल-बदल कर काम करतीं अपने पास आए मामले को सुलझातीं।

एक बार हो ही गई गिरफ्तारी
जासूसी करना इतना आसान भी नहीं हैं। महिला हो या पुरुष जोखिम बराबर ही रहता है। कई बार कुछ नियमों को दरकिनार करते हुए जासूसी होती है। ऐसे में किसी भी जासूस के लिए जासूसी कठिन होती है। गिरफ्तार होने का अंदेशा रहता है। रजनी के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक मामले को सुलझाने के क्रम में उन्होंने किसी का गलत तरीके से कॉल ब्योरा निकलवा लिया। इस पर पुलिस ने पकड़ लिया। वे जैसे-तैसे बचीं यह कह कर कि यह तो उनके काम का हिस्सा है। इसमें गलत क्या है? इसके बाद रजनी के काम का दायरा बढ़ा तो उन्होंने नब्बे के दश्क में अपनी डिडेक्टिव एजंसी खोल ली। छोटे-बड़े मामले सुलझाते हुए उन्होंने पेचीदा केस भी लेने शुरू कर दिए। इसके बाद तो देखते ही देखते उन्होंने सैकड़ों मामले सुलझाए।

पचहत्तर हजार पार
जासूसी क्षेत्र में निसंदेह पुरुषों का वर्चस्व है। मगर इस वर्चस्व को सबसे पहले किसी महिला ने तोड़ा तो वह रजनी पंडित ही हैं। उन्होंने न केवल 75 हजार से ज्यादा मामले सुलझाए बल्कि अवार्ड भी हासिल किए। यहां तक कि उन्हें राष्ट्रपति से भी पुरस्कार मिला। मुंबई की निवासी रजनी ने मराठी साहित्य की पढ़ाई है। मगर तेज दिमाग और पैनी नजर रखने वाली इस युवती ने सामान्य नौकरी करने के बजाय जासूसी में अपना भविष्य बनाना उचित समझा। उनकी जासूसी एजंसी चल निकली। एक समय ऐसा आया कि एजंसी के पास अनगिनत मामले थे।

मर्द जासूसों पर पड़ीं भारी
महिलाएं भी जासूस हो सकती हैं, रजनी अपना एक खास मुकाम हासिल कर जता दिया। आज जासूसी एजंसियों में अगर कई महिलाएं काम कर रही हैं, तो उसका श्रेय रजनी को जाता है। उन्होंने साबित कर दिया कि एक महिला भी पुरुष से बढ़ कर जासूस हो सकती है। बस जरूरत है हौसले की और जोखिम लेने की।

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *