सब कहते हैं कि 

छोटू तू बड़ा कमीना निकला, 

जब देखता हूं

तब गोरियों को ही 

चाय भेजता है हरामी…

पहले तो आपको भी भेजता था

तभी तो कहते थे

चीनी कम, दूध कम 

कभी घटिया चाय,

नहीं तो ठंडी चाय

कभी पैसे भी नहीं दिए थे आप।

यहां के हर एक

कहते थे

अरे ओ… 

छोटू इधर आ…

चाय ला…

ऐ… लड़का…

चल बे…

कौन पिएगा तेरे से…

तभी तो आप लोग

बड़े मुश्किल से

दस के बदले पांच रुपए दिए थे

प्राय:

सर कहते हैं, 

ऐ… छोटू चार चाय दो

तब मेम साहेब,

ना जी, इसका हालत तो देखो,

चलो वहां से कॉलड डार्किंस पिएंगे 

घाट पर पड़े बाबा जी 

सदैव कह रहे थे

‘क्यों नहीं

दो तीन कस्टमर ला

तब पिऊंगा’ 

पान चबाने वाले 

मल्लाह भी

कहते थे

‘नाव में पोछा लगाओ

वरना नहीं पिऊंगा चाय’

एक दिन एक गोरी मैम

घाट पर अकेली

बैठी थी

टूटी-फूटी हिंदी में बोली

‘छोटू इधर आइए

मुझे एक कप चाय दीजिए

छोटू आप स्कूल क्यों नहीं जाते?’

जिंदगी में पहली बार 

गला भर आया- 

‘अगर मैं स्कूल जाऊं तो बहन के 

स्कूल की फीस कौन भरेगा?’

वह हाथ कंधों पे रख कर 

बोली- बी स्ट्रोंग

उसी दिन से मैं चाय नहीं, टी भेजता हूं। 

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सुगंधि कुलसिंघे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में  एमए करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रही हैं।

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