नई दिल्ली। जासूसों की दुनिया भी विचित्र है। यह इतनी दिलचस्प है कि इसने न केवल लेखकों बल्कि फिल्मी निर्देशकों को भी आकर्षित किया। इस तरह साहित्य के पन्नों से होता हुआ कई चर्चित जासूस किरदार रूपहले पर्दे अवतरित हुए। हॉलीवुड से लेकर बालीवुड तक जासूसी फिल्में बनीं। जेम्स बांड की फिल्में तो पांच दशक तक छाई रहीं। वहीं दूरदर्शन पर जासूसी धारावाहिकों का दौर ही चला। धारावाहिक डिडेक्टिव करण और व्योमकेश बख्शी को कौन भूल सकता है। अब तो ओटीटी मंचों पर जासूसी फिल्मों का जलवा है। सोनी लिव पर विशाल भारद्वाज की चार्ली चोपड़ा एंड द मिस्ट्री ने भी खासी धूम मचाई।

राजनीति से लेकर घरों तक जासूसी
अपने देश में गुप्तचरी की परंपरा रही है। राजनीतिक जासूसी बरसों तक होती रही है। आप को याद होगा कि एक समय में जासूसी के कारण ही प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की कुर्सी चली गई थी। मगर जासूसी का यह खेल राजमहलों या राजनीति तक ही सीमित नहीं रही। पति और पत्नी के एक दूसरे की जासूसी कराने की की बात सामने आती है। कई दफा तो वे जासूसी एजंसियों की मदद भी लेते हैं। प्रेमी और प्रेमिका भी इस मामले में जुदा नहीं हैं। कभी-कभी बाप भी अपनी बेटी की जासूसी करा लेते हैं।

चर्चा फिल्म ‘दो जासूस’ की
आज हम इसी क्रम में 1975 में आई फिल्म ‘दो जासूस’ की चर्चा करेंगे। इसमें अपने समय को दो बड़े अभिनेताओं राज कपूर और राजेंद्र कुमार ने जासूस की भूमिका निभाई थी। करीब पांच दशक पहले आई फिल्म से साबित होता है कि जासूसों का उपयोग घर-परिवारों में भी किस तरह हुआ करता था। इस फिल्म में जासूसी भी कराई तो एक पिता ने। यह फिल्म अभिनेता राजेंद्र कुमार की होम प्रोडक्शन की थी। इसका निर्माण उनके भाई नरेश कुमार ने किया था। गायक शैलेंद्र सिंह और अभिनेत्री भावना भट्ट ने भी भूमिका निभाई। इस फिल्म में संगीत रवींद्र जैन ने दिया था। एक प्यारा गीत दिल के करीब हो गया था- पुरवैया ले के चली मेरी नैया, जाना कहां रे…देवा हो देवा…

राजेंद्र कुमार दूसरी फिल्म करने से मुकरे
कहते हैं कि मिथुन चक्रवर्ती ने एक्सट्रा के तौर पर यह फिल्म साइन की थी। उनकी भूमिका समुद्र तट के किनारे से एक लड़की के साथ कैमरे के सामने आने की थी। मगर शूटिंग वाले दिन ही तेज बारिश हुई। नतीजा शूटिंग रद्द करनी पड़ी। अगले दिन भी यही हाल रहा। इस पर निर्देशक ने मिथुन को फिल्म से बाहर कर दिया। यह भी संयोग ही है कि ‘दो जासूस’ बॉक्स आफिस पर असफल रही। इसके बाद तो राजेद्र कुमार ने भाई की अगली फिल्म में काम करने से इनकार कर दिया।

अगली कड़ी गोपीचंद जासूस
यह भी दिलचस्प है कि इस फिल्म का दूसरा भाग भी बनया गया। इसका नाम था- गोपीचंद जासूस। तब इसमें राज कपूर ने भूमिका निभाई थी। खैर जो भी हो, फिल्म ‘दो जासूस’ को लेकर उस दौर में कौतुहल रही। क्योंकि इस फिल्म में एक बाप ही बेटी की तलाश का जिम्मा सौंपता है। मगर गलती से लड़की की फोटो बदल जाने से दोनों जासूस जिस लड़की की तलाश करते हैं वह एक हत्या की चश्मदीद होती है। हत्यारा इस लड़की के पीछे पड़ा है। मगर इन दो जासूसों के कारण लड़की को मारने में कामयाब नहीं हो पाते हैं।

दो जासूस करें महसूस…
इतिहास आपने पढ़ा होगा। आप जानते ही हैं कि राजमहलों में भी जासूसी होती थी। मुगलिया सल्तनत के दिनों में हुमायूं और अकबर से लेकर औरंगजेब तक के दौर में जासूसों का खासा महत्त्व था। इन जासूसों के कारण ही इतिहास के कुछ पन्ने बदल गए। आज के दौर में घरों-मोहल्लों से लेकर कुछ खबरीलाल भी राजनीति में घुस गए हैं। फिल्म दो जासूस तो बस एक उदाहरण भर हैं। अलबत्ता इस फिल्म में दो जासूस गाते हुए आज के जमाने में भी फिट बैठते हैं- दो जासूस करें महसूस कि दुनिया बड़ी खराब है।

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