दिन भर चहलपहल वाली बंगाली मार्केट में बंगाली स्वीट्स के बाहर रहने वाले लगभग पालतू व हट्टे-कट्टे कुत्ते अलसाए हुए से अभी अपनी टोकरियों में पड़े थे। दुकानों के नौकर कोई छिटपुट काम करते दिख रहे थे। नत्थू स्वीट्स का मुख्यद्वार खुला था। मेरी कार का रुख बंगाली मार्केट की तरफ था और मैंने वहीं तानसेन मार्ग से यू टर्न मारने की बजाय मार्केट के गोल चक्कर का घेरा ठीक समझा। इसी वजह से यह सब मेरी नजरों से गुजरा। सामने खाली सड़क थी। रास्ता खाली होने की वजह से जीपीएस पर डीएनडी वाले रूट की उपेक्षा करते हुए आईटीओ से विकास मार्ग पकड़ा और अक्षरधाम फ्लाईओवर से गाड़ी नोएडा की तरफ डाल दी। खाली सड़कों के बावजूद मुझे सेक्टर 44 पहुंचने में 35 मिनट लगे।

एक शानदार महलनुमा घर के आगे ब्रास नेमप्लेट पर बड़े अक्षरों में किशोर चंद्र वशिष्ठ लिखा था। घर के आगे एक ड्राइव वे था और घर का मुख्यद्वार खुला था। मैंने गाड़ी घर के अंदर ही ले ली। घर के विशाल पोर्च में पहले ही छह-सात गाड़ियां खड़ी थीं। मेरी सियाज के अलावा एक ही गाड़ी थी जो मारूती कंपनी की थी। वो एक डिजायर थी। बाद में मुझे पता चला कि वो घर की हाउसकीपर और किशोर की नर्स रागिनी रहेजा की थी। घर की दहलीज पर ही मुझे मौत का एहसास हो गया था। मुख्यद्वार सीधा एक बड़े हाल में खुला जहां कई लोग मौजूद थे। मेरा दोस्त वकील नरेश नंदा मेरी ओर बढ़ा। कोई दुआ सलाम न हुई। मैंने पूछा-

’कौन मरा?’

’किसने कहा?’ वह चौंका। फिर उसने कुछ कहने से खुद को रोका। मेरे सवाल पर कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया घर के बाकी सदस्यों की भी थी। लेकिन कोई कुछ न बोला। नरेश मुझे घर के ग्राउंड फ्लोर पर ही स्थित एक विशाल बेडरूम में ले गया। उसने हाथ से दरवाजा खोलना चाहा, लेकिन मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। सिर हिला कर इंकार किया और जेब से सर्जिकल ग्लव्स निकाल कर उनको पहन लिया। मैंने दरवाजे को बीच में से धक्का दिया ताकि हैंडल या और कहीं भी कोई निशान या संकेत हो तो वह मिट न जाए।

दरवाजे से दूर एक स्टूल जो आम तौर पर घर में बल्ब या पंखा वगैरह ठीक करने के लिए रखा जाता है उलटा पड़ा था। किशोर का बेजान जिस्म फुलकारी के फंदे से झूल रहा था। किशोर मेरी ही जैसी तंदुरूस्ती का आदमी था जिसे अक्सर लोग सिंगल हड्डी कह कर बुलाते हैं। उसकी आंखें बाहर थीं। स्टूल उसके जिस्म से पीछे की तरफ गिरा पड़ा था। कमरे में दो ही पंखे थे। एक पंखा बेडरूम के दरवाजे से चार फुट की दूरी पर था जिससे किशोर लटका था। दूसरा बेडरूम की पिछली दीवार से चार फुट पहले बेड के ऊपर। दोनों पंखें शायद बाद में लगाए गए थे क्योंकि घर सेंट्रली-एयरकंडीशंड था। एक और अजीब बात थी। किशोर का बायां हाथ उसकी गर्दन के साथ ही फंदे में फंसा था।

मैंने कमरे में चारों ओर अपनी चौकस नजर दौड़ाई। बिस्तर के पास मुझे कुछ काले-काले धब्बे दिखाई दिए। मैंने आगे बढ़ कर देखा। ये जले हुए कागज के टुकड़े थे जो फर्श से चिपके पड़े थे। किसी ने कागज जलाया था। फिर उसके निशान मिटाने के लिए जमीन पर पड़ी राख को साफ करने की कोशिश की थी। लेकिन यह काम निहायत लापरवाही से किया गया था। यह सबूत मिटाने की नाकाम कोशिश थी। मैंने बाकी कमरे पर नजर दौड़ाई। दरवाजे के पास ही एक ट्रे और चाय के गिलास के टुकड़े पड़े थे जो अभी फ्रेश लग रहे थे। ऐसा लगता था कि जो चाय लाया उसी ने घटना को पहले देखा और घबराहट में चाय गिर गई।

मौका मुआयना करके हम दोनों हाल में पहुंचे। रास्ते में नरेश ने मुझसे पूछा-

’क्या लगता है?’

’अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा। मुझे कैसे बुलाया?’

’मैंने बुलाया। अपनी इंस्टिक्ट पर बुलाया।’

’कुछ खास जो बताना चाहते हो?’

’नहीं यार ऐसा तो कुछ नहीं। मुझे रागिनी का फोन आया था। उसने रोते-रोते मुझे किशोर की आत्महत्या की जानकारी दी।’

‘और तुम चले आए! इस घड़ी!’

’अरे भई, किशोर मेरा क्लायंट ही नहीं मेरा दोस्त भी था। उसके सारे बिजनेस से जुड़े मामले भी मैं ही देखता था। और फिर सच यह है कि यहां आकर मुझे महसूस हुआ कि तुम्हें भी यहां होना चाहिए।’

हम लोग हाल में पहुंचे। हाल में हर कोई संजीदा सूरत था। नरेश ने मेरा सबसे परिचय करवाया। पहले प्रबोध चंद्र क्योंकि वही मेरे साथ की कुर्सी पर बैठा था। गुलमोहर नाम सुनते ही मैंने उसे गौर से देखा। वह एक औसत कद की औरत थी जो खूबसूरत तो नहीं लेकिन दोहरे बदन की आकर्षक थी।और फिर रागिनी रहेजा। लंबी-चौड़ी खूबसूरत औरत थी। उसकी उम्र तय करने में मैंने खुद को नाकाम पाया। लेकिन अगर मुझे अंदाजा लगाने को कहा जाता तो मैं उसे 45 से ज्यादा बिलकुल न कहता। उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में मेरे प्रति एक उत्सुकता थी, जबकि गुलमोहर की आंखों में नाखुशी।

तीनों से परिचय कराने के बाद नरेश मेरी तरफ मुड़ा और उसने मेरा परिचय दिया होता कि उससे पहले ही मेरी आमद पर पहली आपत्ति दर्ज कराई गई।

’हमें पता है कि यह कौन हैं लेकिन सवाल यह है कि यह यहां क्यों हैं?’

नरेश ने खुद पर काबू रखा और संयत स्वर में बोला।

’यह यहां पर मेरी रिक्वेस्ट पर है। किशोर की मौत का सदमा मेरे लिए आसान नहीं और फिर यह असाधारण हालात में हुई है। मैं चाहता हूं कि अभिमन्यु इसकी पूरी तहकीकात करे।’

’इसमें तहकीकात को है क्या? पापा ने सुसाइड किया है। इसमें पता क्या करना है सिवाय इसके कि घर की पगड़ी गली में उछाली जाए।’

’मेरी तरफ से आप निश्चिंत रहें। यह बात घर से बाहर नहीं निकलेगी अगर आप लोग सहयोग करेंगे।’

’डैडी ने कैसी भी हालात में सुसाइड किया। इससे क्या फर्क पड़ता है?’

’मुझे लगता है कि हमें पुलिस को सूचित करना चाहिए। आखिर सुसाइड के भी कारण होते हैं। किसी ने किशोर को सुसाइड के लिए उकसाया भी हो सकता है!’

’मुझे ऐसा कुछ नहीं लगता। ऐसा कुछ होता तो डैडी ने सुसाइड नोट छोड़ा होता। कुछ तो होता। अब पुलिस को बुला कर अपनी नाक भी कटवाओ और उनकी बाडी की चीरफाड़ भी करवाओ।’ गुल्लू ने मुझे कहर भरी नजरों से देखते हुए कहा।

’नंदा जी, गुल्लू ठीक कह रही है। उसकी जरूरत नहीं। बहुत बदनामी होगी। घर की बनी-बनाई इज्जत धूल में मिल जाएगी।’

’हमें पुलिस को जरूर बुलाना चाहिए।’ हाल में रागिनी की क्षीण और रूंधी हुई आवाज आई।

ऐसे लगा जैसे परमाणु विस्फोट हो गया हो।

’तुम कौन होती हो इस बारे में फैसला करने वाली?’ गुलमोहर की आवाज ने विस्फोट का मुकाबला करते हुए कहा।

’एज ए मैटर आफ फैक्ट तुम यहां हो ही क्यों?’ तुम्हें डैड ने हमारी मर्जी के खिलाफ रखा था। वो नहीं तो तुम भी नहीं। चलो फूटो यहां से।’

रागिनी का चेहरा तमतमा गया। वह रोती हुई वहां से उठ कर चली गई।

हाल में एक बोझिल सा सन्नाटा छा गया। सुई भी गिरती आ जाती। वातावरण में एक अप्रियता आ गई थी। मैंने ही उसे तोड़ा। ’तो हम फैसला करें?’

’मिस्टर अभिमन्यु। वी अंडरस्टैंड यूअर कंसर्न बिकाज आफ नंदा अंकल। बट दिस इज फार फैच्ड। लैट्स नाट गो दैट फार।’ प्रबोध ने बड़े संतुलित ढंग से मामले का पटाक्षेप करने को कहा।’

‘नहीं। यह कोई ऐसी बात नहीं है। …’ इससे पहले नंदा अपनी बात पूरी करता रागिनी हाल से निकलने के लिए मुख्यद्वार की ओर बढ़ी। उसके हाथ में एक बैकपैक थ। उसके मुंह पर अब भी गहन शर्मिंदगी की लकीरें थी। सब उसके निकलने का इंतजार कर रहे थे कि मैंने उसे रोका-

’मिस रागिनी। प्लीज आप मत जाइए। जो हुआ वह गुस्से में हुआ। आप यहां बैठिए।’

रागिनी वहीं रुक गई। गुलमोहर जैसे फट पड़ी।

’यह तुम्हारा घर है?’ तुम हो कौन भई? तुम निकलो।’ 

’नहीं, आप नहीं जा सकती। मिसेज गुलमोहर प्लीज डोंट फार्गेट दैट अनलेस इट इज प्रूव्ड बियांड डाउट दैट योर फादर कमिटिड सुसाइड। हेंस, एवरीबाडी हू वाज हेयर एट द टाइम आफ क्राइम इज ए सस्पेक्ट। मिस रागिनी प्लीज कम एंड सिट।’

’लो जी, अब यह क्राइम सीन हो गया। कोई फिल्म नहीं चल रही जासूस साहब। नंदा अंकल इसको भी निकालो यहां से। वह रुकी फिर शक भरी नजरों से मुझे देखते हुए बोली।

’बाय द वे तुम्हें कैसे मालूम, शी इज ए मिस एंड आयम मिसेज।’

इतने तनाव के हालात में भी हाल में मौजूद पुरुषों के मुंह पर मुस्कराहट की लकीर आ गई।

’मेरे पास इसका बहुत अच्छा जवाब था पर मैंने खुद को रोका।’

प्रबोध ने खंखार कर अपना गला साफ किया और फिर बोला।

’नंदा अंकल, घर के हालात आपसे छुपे नहीं। यह साफ है कि पापा ने सुसाइड कर लिया। अब उनकी मिट्टी खराब करने का कोई फायदा नहीं।’

’ओके।’ नंदा ने जैसे समर्पण करते हुए कहा।

’इट्स नाट ओके। सुसाइड के मामले में भी पुलिस को बताना पड़ता है। बेहतर हो हम पुलिस को इंफार्म कर दें’ कहकर मैंने अपना मोबाइल फोन निकाला।

’खबरदार!’ गुलमोहर ने हिंसक स्वर में मुझे चेतावनी दी।

’फोन मिलाया तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा!’

मैंने रागिनी की ओर देखा और बोला- ’चाय मिलेगी?’

‘यहां कोई पिकनिक नहीं चल रही। हमें डैडी के अंतिम संस्कार का बंदोबस्त करना है। इफ यू मे एक्सक्यूज अस।’ गुलमोहर पूरी बदतमीजी पर उतर आई थी।

रागिनी उठ कर हाल में ही सामने दिख रही किचन तक पहुंच गई। गुलमोहर ने कुछ कहने को मुंह खोला पर नंदा ने बीच में ही हाथ उठा कर रोक दिया।

’गुल्लू ठहरो। रागिनी चाय सबके लिए बना लेना।’

हाल में सन्नाटा छाया था। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। रागिनी दस मिनट में ही सबके लिए चाय ले आई। उसने सबसे पहला कप मेरे ही हाथ में दिया। गुलमोहर ने उसे खूंखार नजरों से देखा। सिवाय उसके सबने चाय ले ली।

आखिर नंदा ने मौन को तोड़ा।

’गुल्लू बेटा, अभिमन्यु ठीक कह रहा है। सुसाइड के मामले में भी तो पुलिस को बुलाना ही पड़ता है। कुछ कम्पलीकेशंस हो सकती हैं बाद में।’

’बाद में? बाद में तो जो होगा अंकल पर जो भद्द पिटेगी उसका क्या होगा? आप प्लीज यह जिद छोड़ दो।’

’लेकिन बेटा…’

’अंकल प्लीज’, प्रबोध भी गुलमोहर के साथ हो लिया।

’यहां सब घर के लोग हैं। कौन बताएगा कि पापा ने सुसाइड किया!’

’मेरे ख्याल से पुलिस को बताना चाहिए।’ हाल में रागिनी की धीमी आवाज गूंजी जिसे सुनते ही गुल्लू बिफर गई।

’और रोकिए इसे। दीदादिलेरी तो देखिए। बुलाइए। इसका ही कोई रोल निकलेगा। आखिर इसी ने तो डैडी को गुमराह कर रखा था।’ गुल्लू दहाड़ी।

रागिनी ने उसकी उपेक्षा करके नंदा से कहा, ’सर पिछले एक अरसे से काफी परेशान थे। यह बात गुल्लू को भी मालूम है।’ रागिनी ने कहा।

‘तमीज से नाम लो मेरा। नौकरानी हो बल्कि थी। नौकरानी ही रहो।’ गुल्लू ने फिर रागिनी को बेइज्जत करने का तरीका ढूंढ़ा।

’गुल्लू। तुम खुद पर काबू रखो। एक और भी कारण है जिससे पुलिस को बुलाना जरूरी है। वसीयत!’

’वसीयत?’ प्रबोध ने हैरानी से कहा। ’उसका क्या वो तो पहले से तय है। हमारे पास कापी भी है।’

’प्रबोध। अक्सर जो कानूनी कागजात होते हैं उनमें ऐसी क्लाज रहती है कि अगर मौत कुदरती या गैर कुदरती तरीके से हुई हो।’

’नंदा अंकल, यह हमारे घर का मामला है। हम खुद निपट लेंगे। इस कंबख्त ने आपको फोन करके बुलाया। वरना हम इस समय संस्कार का बंदोबस्त कर रहे होते।’

नंदा ने असहाय होकर मेरी ओर देखा। मानो पनाह मांग रहा हो।

मैंने गला खंखार कर सबका ध्यान अपनी ओर किया और बोला-

’किशोर वशिष्ठ का पोस्टमार्टम जरूरी है, क्योंकि उनकी हत्या हुई है।’

सबको जैसे सांप सूंघ गया। नंदा ने अपना फोन उठा कर पुलिस को बुलाया। गुलमोहर पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई। प्रबोध ने एतराज भरी नजरों से नंदा को देखा। रागिनी के चेहरे पर राहत का भाव आया। उसने कृतज्ञ नजरों से मुझे देखा। मुझे समझ आ रही थी कि रागिनी को ऐसा कुछ जरूर पता है जिससे मामले से पर्दा उठ सकता हो। रागिनी सबसे पहले उठी और फिर से चाय बना कर ले आई। मौजूदा हालात में मेरा दर्जा परिवार में खलनायक जैसा हो गया। सबकी नजरें घर के मुख्यद्वार पर टिकी थीं।

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