नई दिल्ली। सिर्फ नेतृत्व से ही देश नहीं बनता। इसके पीछे हजारों और लाखों लोगों के दिमाग के साथ दिलेरी भी होती है। देशभक्ति का भी जज्बा होता है। आजादी से लेकर अब तक कई ऐसे गुमनाम चेहरे हैं जो न केवल देश की रक्षा की बल्कि देश के नव निर्माण में भी सर्वस्व न्योछावर किया। इनमें जासूसों को भी गिना जा सकता हैं। उनकी भी एक दुनिया है। जिनके वास्तविक चेहरे को कोई देख नहीं पाता। ये वो बहुदर लोग हैं जिन्होंने देश के लिए जान की बाजी लगा दी। इन जासूसों में अगर किसी महिला सैन्य जासूस का जिक्र होगा तो सहमत खान (असली नाम नहीं) का जिक्र अवश्य किया जाएगा।

एक सच्ची नायिका सहमत खान
कौन है सहमत खान? हम और आप शायद ही जान पाते अगर सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी हरिंदर सिक्का उनके जीवन पर ‘कॉलिंग सहमत’ नाम से उपन्यास न लिखते। यही वह उपन्यास है जिसे पढ़ कर लोगों को सहमत की जांबाजी और उनकी बुद्धिमत्ता का पता चला। साल 2018 में इस पर फिल्म बनी। जिसका नाम था-राजी। इसमें सहमत का किरदार अभिनेत्री आलिया भट्ट ने बखूबी निभाया। लाखों लोगों को तब पता चला कि इस फिल्म की नायिका काल्पनिक नहीं थी। उसमें वास्तविक नायिका सहमत ही थी। एक ऐसी नायिका जिसके कारनामे पढ़ दांतों तले अंगुली दबा लेंंगे आप।

मासूम चेहरे वाली कश्मीरी लड़की
सहमत मूलत: कश्मीर की थी। पहली भारतीय महिला जासूस रजनी पटेल ने तो पिता को बताए बिना जासूसी शुरू की थी। मगर यहां तो सहमत के पिता ने ही उसे जासूस बनने के लिए प्रेरित किया। कहते हैं कि भारतीय खुफिया एजंसी ‘रा’ ने 1971 के युद्ध से पहले पाकिस्तान की साजिशों का पता लगाने के लिए सहमत को दायित्व सौंपा। उसकी पहचान को गुप्त रखा गया। कोई दो राय नहीं कि सहमत कसौटी पर खरी उतरीं। मन में यह सवाल उठता है कि एक कश्मीरी व्यवसायी को क्या जरूरत थी अपनी बेटी को खतरे में डालने की। मगर देशभक्ति का जज्बा इसे ही तो कहते हैं।

कलेजा मजबूत कर सरहद किया पार
किसी भी दुश्मन देश में गुप्त मिशन पर काम करते हुए जासूसों के सामने कई चुनौतियां होती हैं। मगर किसी महिला जासूस के सामने दोहरी चुनौती होती है। या यों कहें कि बहुत बड़ी होती है। जरा सोचिए इस कम उम्र की कश्मीरी लड़की सहमत के बारे में। जब वह भारतीय एजंसी के निर्देश पर पाकिस्तान की सरहद में दाखिल हुई होगी तो उसने अपने कलेजे को कितना मजबूत किया होगा। जबकि उसे जासूसी का कोई ज्यादा इल्म भी न था। कालेज की पढ़ाई कर रही महज 21 साल की इस लड़की ने अपने पिता और देश की आन के लिए एक झटके में जोखिम उठा लिया। वे केवल दुश्मन देश में ही नही रहीं बल्कि वहां गृहस्थी भी बसाई। एक बच्चे की मां भी बनीं।

गुप्त मिशन के लिए की शादी
दुश्मन देश में दाखिल होने के बाद सहमत खान अपनी व्यवहार कुशलता से पाकिस्तानी सेना के एक बड़े अधिकारी का दिल जीत लेती हैं और फिर उससे शादी कर लेती हैं। इसके बाद उसके साथ रहते हुए एक के बाद एक गोपनाय सैन्य जानकारियां भारतीय सेना के लिए जुटाती हैं। नतीजा यह कि इससे भारत को न केवल युद्ध में सफलता मिलती है बल्कि कई लोगों की जानें बचती हैं। भारत-पाक के बीच 1971 का युद्ध आज भी लोग नहीं भूले। कहते हैं कि यह सहमत खान ही थीं जिसने समय रहते भारत को एक ऐसी गोपनीय जानकारी दी जिससे समंदर में तैनात युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को डूबने से बचा लिया गया। दरअसल, सहमत को पता चल गया था कि पाकिस्तान हमारे युद्धपोत को डुबोने की साजिश रच रहा है। आापको बता दें कि तीन दिसंबर को शुरू हुए भारत-पाक युद्ध में न केवल दुश्मन देश के होश ठिकाने आ गए बल्कि उसके दो टुकड़े भी हो गए और दुनिया ने एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का उदय होते हुए भी देखा।

कठोर दिल मगर नरम स्वभाव
सहमत खान ने बड़ा खतरा जरूर मोल लिया था अपने जीवन में। मगर उनकी पहचान बेहद गुप्त थी। उन पर उपन्यास लिखने वाले रविंदर सिक्का ‘कॉलिंग सहमत’ में लिखते हैं कि पाकिस्तानी सेना के अधिकारी के यहां एक भारतीय नौकर भी काम करता था। अब्दुल नाम था उसका। एक दिन उसे सच्चाई मालूम हो गई। सहमत के लिए यह खतरा था। उन्होंने अब्दुल को ट्रक से कुचल दिया। मगर देखिए यह कितनी हैरत की बात है कि सहमत जब पंजाब लौटीं तो वे अब्दुल के घर पर रहीं। जबकि वे कश्मीर की थीं और उन्हें अपने माता-पिता के पास लौट जाना चाहिए था।

एक यादगार महिला जासूस
आज जब इस दिसंबर में 1971 के भारत-पाक युद्ध को याद कर रहे हैं तो हम न तो शहीदों की कुर्बानी भूल सकते हैं और न ही इस यादगार महिला जासूस को जिसने अपना पूरा जीवन और उज्ज्वल भविष्य दांव पर लगा दिया। आज बेशक सहमत खान चर्चा में नहीं हैं मगर देश के लिए उनके अप्रतिम योगदान का स्मरण सदैव किया जाएगा। गर्व की बात है कि अपने जिस बेटे को लेकर सहमत खान भारत लौटीं, वह भारतीय सेना का अधिकारी बना। पूर्व नौसेना अधिकारी और लेखक सिक्का कुछ साल पहले जब सहमत खान से मिले थे तो उनको भी यकीन नहीं हुआ कि वे जासूसी को अंजाम दे चुकी है। सचमुच सहमत की तरह हौसला हर युवती में नहीं होता। होता भी है तो वे मोहब्बत के लिए सरहद पार करती हैं देश के लिए कुर्बानी देने के लिए सहमत खान जैसी कोई अकेली ही होती है।

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