थाना हालांकि किशोर के घर से महज आधा किलोमीटर दूर था। पर पुलिस को मौके पर पहुंचने में आधा घंटा लग गया। इस बीच मैंने एनसीआर में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार की ओर से साझे तौर पर बनाई गई होमिसाइड डिविजन की एसीपी सबीना सहर को भी फोन कर दिया। पिछले कुछ समय से गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा व गाजियाबाद के अलावा बाकी एनसीआर में भी तीनों प्रदेशों की सीमाओं के आरपार अपराधियों की आवाजाही बहुत बढ़ गई थी। जिसके कारण एक जायंट एंड रैपिड फोर्स बनाई गई थी जिसका मकसद एनसीआर में होने वाली हत्याओं की जांच करना था। एसीपी सबीना सहर से मेरा वास्ता एक केस में पड़ चुका था। इसलिए उसने तुरंत आने की हामी भर दी। आखिर किशोर चंद्र वशिष्ठ का नाम था एनसीआर में।

नोएडा पुलिस से इंस्पेक्टर नाहर सिंह पूरे दलबल के साथ मौके पर पहुंचा। मौके पर पहुंचते ही उसने किसी से कुछ बात नहीं की। उसने नंदा से पूछा-

’क्या हुआ वकील साहब सवेरे-सवेरे?’

’किशोर की लाश फंदे से लटकती मिली है।’ नंदा ने मेरी बात पर विश्वास करते हुए उसे सुसाइड कहने से गुरेज किया।’

’कहां है?’ उसने पूछा।

इतने में रागिनी एक ट्रे में चाय ले आई। प्रबोध आगे बढ़ा।

’इंस्पेक्टर साहब। मेरे पापा ने सुसाइड की है।’

नाहर ने हैरानी से उसे देखा फिर नंदा को देखा। नंदा ने मेरा परिचय कराया।

‘इंस्पेक्टर साहब। यह मेरा दोस्त है अभिमन्यु। प्राइवेट डिटेक्टिव है। दिल्ली में अपनी फर्म चलाते हैं। मैंने सुबह इन्हें फोन करके बुलाया था।’

इंस्पेक्टर ने उत्सुकता से मुझे देखा। मुझे फौरन शक हुआ कि कहीं मेरे सिर पर सींग या पीछे पूंछ तो नहीं उग आई। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। दो मिनट मुझे घूरने के बाद उसने तंज किया-

’फिर हमारी क्या जरूरत थी वकील साहब!’

मैंने खामोश रहना मुनासिब समझा। प्रबोध की आंखों में चमक आ गई और उसी पल हाल में दाखिल हो रही गुलमोहर ने भी इंस्पेक्टर के सुर में सुर मिलाया।

’लो नंदा अंकल, इंस्पेक्टर साहब भी वही कह रहे हैं।’

’यह किशोर की बेटी गुल्लू है।’

इंस्पेक्टर ने गुलमोहर का अभिवादन किया। फिर उसकी नजर रागिनी पर पड़ी। नंदा कुछ बोलता उससे पहले ही गुलमोहर बोल पड़ी।

’यह घर में काम करती है। मुंह क्या देख रही हो। चाय ले आओ इंस्पेक्टर साहब के लिए।’ फिर वह इंस्पेक्टर साहब से मुखातिब हुई।

’इंस्पेक्टर साहब। मेरे डैडी ने आत्महत्या की है। कुछ दिनों से बीमार थे। उम्र भी हो गई थी। घर में यह हमारी मेड ही उनके साथ रहती थी। मैंने तो नंदा अंकल से यही कहा था कि पुलिस को क्यों परेशान करना है। आखिर नोएडा में कितना क्राइम है!’

’क्या बात करती हैं मैडम जी। नोएडा में कहां है क्राइम! सब जेल में हैं। यहां तो अब अमन शांति है। छोटा मोटा क्राइम तो होता ही रहता है।’ इंस्पेक्टर ने कह कर रागिनी की ओर देखा। आखिर गुल्लू रागिनी की अवमानना का कोई मौका चूक नहीं रही थी।

’चलिए जरा मौका देख लें।’

सब लोग किशोर के बेडरूम की ओर चल पड़े। सभी एक साथ अंदर दाखिल होने लगे तो मैंने धीरे से कहा- ’अंदर ज्यादा लोग न जाएं। कहीं कोई क्लू न मिट जाए।’

इंस्पेक्टर के पैरों को फौरन ब्रेक लगे। उसकी नाखुशी साफ दिखी। लेकिन उसने सामने कुछ न कहा।

’सब लोग बाहर ही रुकें। मैं देख कर आता हूं।’ कह कर नाहर सिंह बेडरूम में घुस गया। करीब पांच मिनट में ही वह बाहर आ गया।

नाहर सिंह रिटायरमेंट की तरफ जा रहा एक खूसट अफसर था जो शायद अपने दिन गिन रहा था। मैं शर्त लगाने को तैयार था कि वह नोएडा शहर में सिफारिशी लगा था। बाहर आते ही वह प्रबोध और गुलमोहर को लेकर एक कोने में चला गया।

कुछ देर तक तीनों में कुछ गिटपिट हुई, फिर सब लोग हाल में आ गए। रागिनी ने सबको चाय दी। चाय की चुस्कियों के बीच नाहर सिंह ने अपना फैसला सुनाया।

’भई ओपन एंड शट केस है। लगता है हालात से परेशान हो गए थे बुजुर्गवार और इतना भयानक कदम उठा बैठे।’

’बाडी का पोस्टमार्टम या तस्वीरें वगैरह नहीं होंगी?’

’परिवार की मर्जी नहीं है। और उनकी बात भी ठीक है कि घर की इज्जत को सड़क पर क्यों उछालना है। आप लोग अंतिम संस्कार कर लीजिए।’

मेरा दिल धक्क रह गया। एक बार लाश फंदे से उतर गई तो फिर कई क्लू खत्म हो जाएंगे। मैंने मन ही मन दुआ की कि सबीना जल्दी आ जाए। और, भगवान ने मेरी सुन ली। पोर्च में गाड़ी रुकने की आवाज आई। सबने मुख्यद्वार की ओर देखा जो खुला था। गोरा रंग, पांच फुट सात इंच से निकलता कद, सुतवां नाक, बड़ी-बड़ी आंखें, तीर सा तना हुआ बदन, जिस्म की गोलाइयां ही उसकी सीध को भंग कर रही थीं, चेहरे पर रुतबे और असीम प्रभाव का तेज। सब लोग हक्के-बक्के उसे देख रहे थे।

मैं उठा, उसे हैलो कहा। उसने अपना तार्रुफ खुद दिया।

’गाइज आयम सबीना सहर, दिल्ली पुलिस, स्पेशल होमिसाइड इन्वेस्टिगेशन डिविजन। एंड आयम हेयर टू हेल्प यू।’

नंदा ने आगे बढ़ कर अपना परिचय दिया और फिर सबसे परिचय करवाया। गुलमोहर इल्जामभरी नजरों से मुझे देख रही थी, जैसे वो मेरे बुलाने पर वहां थी। खैर वो गलत भी नहीं थी। गुलमोहर ने ही पहला एतराज किया।

’लेकिन नोएडा में दिल्ली पुलिस! और फिर आपने कहा होमिसाइड डिविजन। पर यहां कोई कत्ल तो हुआ नहीं और न ही किसी ने पुलिस में ऐसी शिकायत की है।’

सबीना चुपचाप उसकी बात सुनती रही। उसकी उम्र हालांकि तीस के आसपास थी, पर वह बड़ी सुलझी हुई पुलिस अफसर थी। मेरा कई बार उससे वास्ता पड़ चुका था। इससे पहले वो गुलमोहर के एतराज का जवाब देती, नाहर सिंह बोला- ’मैडम जी आपको लोकल पुलिस को तो बताना चाहिए था।’ इंस्पेक्टर घुटा हुआ सिफारिशी था।

’आप अपने एसपी से पूछ लें। उनके पास सूचना है।’

‘वो बात नहीं है’ वो संभला।

’वैसे मैंने मौका मुआयना किया है। ओपन एंड शट केस है। सुसाइड है। आपने यूं ही तकलीफ की। पर चलो इतनी बड़ी अफसर के दर्शन हो गए।’

उसकी बात की पूरी तरह उपेक्षा करते हुए सबीना गुलमोहर से मुखातिब हुई।

’सुनिए मैडम। दिल्ली पुलिस ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा के साथ मिल कर यह स्पेशल डिविजन बनाई है। अपराधी फौरन ही राज्य की सीमा पार कर जाते हैं और फिर ज्यूरिसडिक्शन के चक्कर में बहुत से मामले लटक जाते हैं। जहां तक आपके शिकायत न करने का सवाल है तो कोई अपराध अगर हमारी जानकारी में आ जाता है तो हम उसको महज इसलिए इग्नोर नहीं कर सकते कि आपके पास शिकायत नहीं है। एम आई क्लियर?’

’लेकिन मैडम यह बिना वजह एक आम आत्महत्या के मामले को हत्या का बनाने की सनसनीखेज कोशिश है।’ प्रबोध ने भी अपनी बहन का साथ दिया।

’यह सब इसकी बदौलत हुआ है।’ गुलमोहर ने अपनी उंगली खंजर की तरह मेरी ओर भोंकी। ‘क्या जुल्म है, कोई फरियादी नहीं और दो राज्यों की पुलिस, एक नकली पुलिस हमारे घर में घुस आई है!’

’क्या आप नहीं चाहती कि आपके पिता की अगर हत्या हुई है तो उनका हत्यारा पकड़ा जाए?’

’अरे जबर्दस्ती हत्या। हत्या कोई किसी को फंदे पर लटका कर करता है? तुम इसे पहले से तो नहीं जानती?’ गुलमोहर ने रागिनी से पूछा।

’मुझे रागिनी ने नहीं बुलाया यहां।’ मैंने कहा।

’यह ठीक कह रहा है। इसे मैंने बुलाया।’ नंदा ने कहा।

‘लेकिन हमने तो नहीं बुलाया।’ गुलमोहर अड़ी रही।

’सर जी, आप निकल क्यों नहीं लेते। आखिर जब परिवार को आपकी हाजरी कुबूल नहीं।’

मेरे सब्र का बांध बस टूटने ही वाला था कि सबीना ने गुलमोहर से फिर पूछा।

’मेरे सवाल का जवाब! आप नहीं चाहती कि आपके पिता का हत्यारा पकड़ा जाए?’

’पर हत्या तो हुई ही नहीं।’

’अगर हुई हो तो?’

’तो… तो…’

’मैडम जी, जब परिवार नहीं चाहता तो आपको क्या पड़ी है?’

सबीना ने कहर भरी नजरों से बूढ़े बंदर जैसे उस इंस्पेक्टर को देखा।

’आप चुप रहिए। बल्कि आप चलिए थाने। केस मुझे हैंडल करना है। अगर पर्चा दर्ज करना होगा तो बता दूंगी। रफा-दफा करने को तो आप तैयार ही हो।’ नाहर सिंह के चेहरे पर गुस्से के भाव उभरे।

सबीना गुलमोहर को बोली- ’सुनिए। अभिमन्यु बहुत काबिल डिटेक्टिव है, उसने अगर आपके पिता के सुसाइड पर सवाल उठाया है तो वो बिल्कुल वाजिब ही होगा। हम एक बार मौका-ए-वारदात को एनालाइज कर लें। अगर सुसाइड ही हुई तो हम आपको बादर नहीं करेंगे। आप लोग यहीं वेट कीजिए। चलो।’ उसने मुझे इशारा किया।

इंस्पेक्टर भी हमारे साथ हो लिया। सबीना पहले उसे रोकने लगी पर फिर आने दिया। मैंने नंदा को इशारा किया। वो भी अंदर साथ ही चल पड़ा।

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