कुत्तों को कभी कुत्ता न कहें। आदमी की तरह वे बुरा मान जाते हैं और अपनी इसी आदत के कारण वे काट भी लेते हैं। काटने के बाद आदमी के तो सिर्फ चौदह ही इंजेक्शन लगते हैं, मगर कुत्ते को कोई इंजेक्शन नहीं लगता, जो कि इंसानियत के हिसाब से गलत बात है। कुत्तों की सहनशीलता का इसी से पता चलता है कि क्या है और क्या होना चाहिए। पागल न होने के बावजूद कुत्ते कभी भी और किसी को भी काट सकते हैं। नेताओं की तरह उनका कोई भरोसा नहीं होता। वे किसी भी परिस्थिति में आदमीनुमा वोटरों को काटने की क्षमता रखते हैं।
आदमी को भले ही कुत्ता कह लें, मगर किसी कुत्ते को भूल कर भी कुत्ता न कहें। यह ‘कुत्तायियत’ के खिलाफ है। हर कुत्ते का ‘कुत्ताइयत’ के ‘प्वॉइंट आॅफ व्यू’ से एक ‘स्टेटस’ होता है और जिससे वह चाहते हुए भी नीचे नहीं आना चाहता। जहां तक मैं समझता हूं, इस ‘डिटेल’ में ज्यादा जाना कोई अच्छी बात नहीं है। बावजूद इसके हम वहां जाने की कोशिश करेंगे, जहां हमारा पहुंचना जायज ही नहीं, निहायत जरुरी भी है।
आदमी के साथ कुत्तों की वफादारी के बहुत से किस्से मशहूर हैं। महाभारत-काल में धर्मराज युद्धिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक उनका कुत्ता ही गया था, कोई वफादार आदमीनुमा सेवक नहीं। जाहिर है कि चारित्रिक दृष्टि से भी वह कुत्ता लंगोटी न पहनने की गलत प्रथा के बावजूद लंगोट का पक्का रहा होगा और अपने समुदाय की सभी ‘फीमेल’ को अपनी मां-बहन समझता रहा होगा। इतिहासकार उसे ब्रह्मचारी भी सिद्ध कर सकते हैं।
हमारे एक मित्र की शिकायत थी कि उन्हें देख कर गलियों के सारे कुत्ते एक स्वर में भौंकने लगते हैं। मैंने उन्हें राय दी कि कल से तुम उन पर भौंक पड़ना। मेरी बात मान कर उन्होंने वैसा ही किया और आश्चर्य…गली के वही कुत्ते अब उन्हें देख कर भाग जाते हैं। उन्होंने इसका कारण पूछा, तो मैंने उनके पूर्व-जन्म का हवाला देते हुआ बताया कि उन कुत्तों को तुम्हारे भौंकने का स्टाइल देखकर अब ‘कन्फर्म’ हो गया कि यह तो हमसे भी बड़ा कुत्ता है।
मित्र ने हमें धन्यवाद कहा और अपना ‘गॉड गिफ्टेड’ कुत्तापन दिखाने अपने सरकारी दफ्तर की ओर चल दिए।
अतुल मिश्र