नई दिल्ली। लेखक और फिल्मकार अपनी कल्पना से जासूसों के जितने भी कारनामे दिखा लें मगर एक जासूस के लिए सचमुच में कितनी चुनौती होती है, यह वही जानता है। फिल्मों और कहानियों में असली और देसी जेम्स को करोड़ों दर्शकों ने देखा और पाठकों ने पढ़ा होगा, मगर कोई जीवंत मिसाल देना हो तो सबसे पहला नाम आरएन काव का आएगा। देश का पहला खुफिया अधिकारी जो तीन-तीन प्रधानमंत्री का सुरक्षा सलाहकार रहा। यह काव साहब थे जो प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के सुरक्षा अधिकारी  रहे। ये वही काव साहब है जिनके प्रशिक्षित जासूस ‘काव ब्वायज’ के नाम से चर्चित रहे।

रामेश्वर नाथ काव यही वो पूरा नाम है जिन्होंने भारत के लिए पहली बार खुफिया तंत्र खड़ा किया। दस मई 1918 को कश्मीरी परिवार में जन्मे काव बेहद ही शांत और सौम्य स्वभाव के थे। अगर उनको जेम्स बांड का देसी अवतार माना गया तो इसके पीछे उनका तेज दिमाग था। राजनीतिक संकल्प और सैन्य कवायद के बीच पड़ोसी मुल्क के एक और टुकड़े करने में इनकी भी भूमिका थी। यह उनकी रणनीति का ही नतीजा था कि आज दक्षिण एशिया में बांग्लादेश नाम का एक राष्ट्र दिखता है। सब जानते हैं कि देश की खफिया एजंसी ‘रा’ को स्थापित करने और उसका विस्तार करने में उनका कितना बड़ा योगदान रहा।

ब्रिटेन की महारानी ने की थी तारीफ
आजादी के बाद भारत खुद को मजबूत कर रहा था। देश में औद्योगीकरण से लेकर खाद्य आत्मनिर्भरता पर तो काम कर ही रहा था। एक काम और हो रहा था, वह था पड़ोस के मुल्कों की गतिविधियों पर नजर रखना। देश के हितों को सुरक्षा करना। काव भारतीय पुलिस सेवा की परीक्षा पास कर चुके थे। यह आजादी का ही वर्ष था जब उनको तत्कालीन केंद्रीय खुफिया ब्यूरो में भेजा गया। यही वह समय था जब उनको पंडित नेहरू की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया। कोई 1950 की बात है। ब्रिटेन की महारानी भारत दौरे पर आर्इं तो उनकी सुरक्षा का जिम्मा काव को ही सौंपा गया। बताते हैं कि उस दौरान एक कार्यक्रम में किसी ने महारानी पर फूलों का गुलदस्ता फेंका। मगर वहां मौजूद काव ने बम की संभावना को ध्यान में रखते हुए उस गुलदस्ते को लपक लिया और उसे दूर फेंक दिया। उनकी इस तत्परता से महारानी भी चकित रह गई और उनकी सराहना की।

पहले से सूचना मिल जाती थी काव को
काव का खुफिया नेटवर्क इतना मजबूत था कि वह पड़ोसी देशों की हलचल को पहले से जान जाते थे और अपने शीर्ष नेतृत्व को सतर्क कर देते थे। किस दिन पाकिस्तान हमला करने वाला है यह उन्होंने पहले बता दिया था। ऐसे में भारत पहले से ही चौकस हो गया था और सैन्य रणनीति में उसने बढ़त बना ली थी। सब जानते हैं कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय मुक्तिवाहिनी के सदस्यों को काव और उनके सहयोगियों ने ही प्रशिक्षित किया था। इसी का नतीजा था कि वे पाक को सैन्य शिकस्त दे पाए। इसी तरह यह काव ही थे जिन्होंने शेख मुजीबुर्ररहमान को पहले ही आगाह कर दिया था कि बांग्लादेश के कुछ सैन्य अधिकारी उन्हें सत्ता से हटाने की साजिश रच रहे हैं।

दो पीढ़ियों को सिखाए जासूसी के गुर
आरएन काव की बुद्धिमत्ता और उनकी सजगता का हर कोई कायल रहा। उनका इतना लंबा कार्यकाल है कि उनसे जासूसों की दो पीढ़ियों मे सीखा। उन्होंने भी उनको जासूसी के सभी पैंतरे बताए। एक ऐसी पीढ़ी तैयार हुई जिन्हें काव साहब का ‘काव ब्वायज’ कहा गया। भारत से बाहर अपने खुफिया तंत्र का तो विस्तार किया ही, वहीं इजराइल के ‘मोसाद’ के साथ भी संबंध बनाए। ये काव साहब ही थे जब नेहरू के दौर में घाना की खुफिया एजंसी खड़ी करने में मदद की। हालांकि इसके लिए उनसे तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ही कहा था।  

तेज दिमाग जासूस
सिक्किम के भारत में विलय के पीछे भी कई कहानियां हैं। सभी जानते हैं कि विस्तारवादी चीन की उस पर गिद्ध दृष्टि थी। काव का खुफिया तंत्र को इस बात को पहले ही भांप चुका था। यह उनकी टीम का ही कौशल था कि बिना किसी संघर्ष के सिक्किम के तीन हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भारत में मिला लिया गया। यह देशा का 22वां राज्य बना। इस मामले में काव की तत्परता और कुशल रणनीति की सभी ने सराहना की। इसके पीछे उनकी कई महीने की मेहनत थी। उन्होंने चीन के साथ संघर्ष के बाद सुरक्षा महानिदेशालय के गठन में भी भूमिका निभाई। वे निदेशालय के संस्थापकों में से एक थे। इसके अलावा उन्होंने पालिसी एंड रिसर्च स्टाफ की भी स्थापना की।

हमेशा उनकी जरूरत महसूस होती रही
देश की प्रतिष्ठित खुफिया एजंसी रॉ में नौ साल तक बतौर निदेशक सेवाएं देने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया। उन्होंने अपनी योग्यता से खुफिया तंत्र का ऐसा ताना-बाना बुना कि कोई दुमश्न देश उसे चुनौती नहीं दे सका। नतीजा यह कि जिस तंत्र की बुनियाद काव ने रखी वह आज इतनी मजबूत है कि कोई पड़ोसी देश भारत से सीधे उलझने से कतराता है चाहे वह चीन ही क्यों न हो। इस लिहाज से देखें तो यह उनका देश के प्रति अमूल्य योगदान है। इसे देश भूलेगा नहीं।

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