-अंजू खरबंदा

गंगा जयंती के पावन अवसर पर गढ़ मुक्ततेश्वर, जिसे गढ़ गंगा भी कहा जाता है, जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दिल्ली के परमानंद अस्पताल के पास ढक्का गांव से हर माह बस से किसी न किसी तीर्थ स्थान पर जाने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। सखी मुकेश के घर जाना हुआ तो बातों ही बातों में पता चला कि वे लोग कल गढ़ गंगा जा रहे हैं, संयोग से किसी ने अपनी एक सीट ‘कैंसिल’ की… और मैंने झट अपने लिए बुक कर ली।

सारी संगत अगले दिन सुबह साढ़े नौ बजे ढक्का स्कूल के पास मदर डेयरी पर घने वृक्ष के नीचे एकत्रित हो गई… पर बस आई साढ़े दस बजे। लगभग पौने ग्यारह बजे हम लोग रवाना हुए। सवा दो बजे जिला हापुड़ स्थित गढ़ मुक्ततेश्वर पहुंचे। रास्ते भर संगत ने खूब भजन-कीर्तन किया। कुछ महिलाओं को तो सैकड़ों भजन कंठस्थ थे। वे भजन गाने में इतनी रम जातीं कि बस के छोटे से कॉरिडोर में ही मगन हो नाचने लगतीं। सभी भजनों के साथ ताली बजा आनंद में डूबे हुए थे। मेरे लिए इस तरह का यह पहला अवसर था… भजनों की लय-ताल कानों में रस घोल रही थी।

जब हम गढ़ गंगा पहुंचे, तीखी धूप सिर पर थी। गंगा मैया के दर्शन की उमंग ने धूप के अहसास को पर भारी नहीं पड़ने दिया। बस वाले ने पार्किंग में बस रोकी। वहां से गढ़ गंगा की दूरी कम से कम पौन किलोमीटर होगी। संगत में लगभग हर उम्र की महिलाएं थीं। पच्चीस से लेकर सत्तर वर्ष तक की… सभी के चेहरे पर गंगा मैया के दर्शन का जोश साफ दिखलाई पड़ रहा था। वहां का रास्ता जैसे पल भर में कट गया… कई ने रिक्शा पर जाने की बात की परन्तु सभी को पैदल देख वे भी साथ हो लीं। बाजार से गुजरते हुए बैंड-बाजे के साथ नाचते गाते लोग दिखे। बाद में पता चला कि गंगा जयंती के अवसर पर गंगा तीरे रात आठ बजे होने वाले भव्य कार्यक्रम की तैयारी का ये एक हिस्सा है।

गंगा मैया के नजदीक पहुंचते ही सभी के चेहरे यूं खिल गए मानो कोई खोया खजाना मिल गया हो। सभी ने वहां बिछे तख्त पर सामान रखा… दो-तीन महिलाओं को सामान की निगरानी का निर्देश देकर बाकी सभी गंगा मैया की गोद में अठखेलियां करने को पूरे जोश खरोश से दौड़ीं।

सभी ने एक दूसरे का हाथ थाम कर खूब डुबकियां लगार्इं। कुछ महिलाओं ने दस, कुछ ने बीस, कुछ ने पचास तो सखी मुकेश तथा बुजुर्ग मां जी ने तो पूरी एक सौ आठ डुबकियां लगार्इं। एक बार स्नान कर मन नहीं भरा तो डुबकियों का दूसरा दौर चला। काफी देर तक गंगा मैया की गोदी में खेल एक एक कर सभी घाट पर आए, कपड़े बदले। पहले कुछ महिलाएं अपनी साड़ी या दुपट्टे से घेरा बना लेतीं और एक-एक कर बाकी महिलाएं उस घेरे में कपड़े बदल लेतीं, लेकिन इस बार एक बढ़िया बदलाव देखने को मिला… वहां पर महिलाओं कि सुविधा के लिए थोड़ी थोड़ी दूरी पर एलम्युनियम के छोटे बॉक्स बना दिए हैं।

…फिर पंडित जी के पास बैठ पूजा-अर्चना की, उन्हें दान-दक्षिणा दी। इसके बाद सभी ने गंगा मैया में दीपक प्रवाहित कर घर-संसार के लिए सुख समृद्धि की कामना की।

सुबह से घर से निकले थे, अब पेट में चूहे भी दौड़ने लगे… घाट पर उपयुक्त जगह ढूंढ सभी ने इत्मीनान से बैठ भोजन किया। अब चाय की तलब जगी, तो बाजार की ओर चल दिए। एक टपरी पर बैठ गरमा-गरम चाय का आनंद लिया। फिर बाजार की रौनक देखने चल दिए। आमने-सामने दुकानें सजी हुई थीं…चूड़ियां, मंगलसूत्र, सिंदूर, मोतियों की माला, मूर्तियां, खिलौने, लकड़ी से बना सामान, चाबी के छल्ले और भी जाने क्या क्या! पूरा बाजार मनमोहक सामानों से अटा पड़ा था। महिलाएं शॉपिंग न करे तो बाजार बंद न हो जाएं! सो सभी महिलाएं अपनी जरूरत के हिसाब से सामान खरीदा और घाट पर लौट आईं।

समय देखा। अभी तो पांच ही बजे थे, आरती शुरू होने में अभी डेढ़ घंटा बाकी था। कुछ महिलाएं घाट की सीढ़ियों पर बैठ गईं तो कुछ घाट पर रखे तख्तपोश पर अधलेटी सुस्ताने लगीं।

मैं चहल-कदमी करते हुए गंगा मैया को जी भर निहारती रहीं। छह बजने को थे…जहां हम सभी बैठे थे, वहां पीछे की ओर विशाल शामियाना लगा हुआ था। लाउडस्पीकर की तेज आवाज ने हमारा ध्यान उस ओर खींचा। हम लोग वहां गए तो देखा बड़ी संख्या में कुर्सियां पड़ी थीं। बड़े-बड़े कूलर चल रहे थे। पानी की फुहार फेंकने वाले विशाल पंखे ठंडी हवा दे रहे थे। सामने भव्य स्टेज सजाया जा रहा था। कुछ आर्टिस्ट विशाल मगरमच्छ का चित्र बना रहे थे। कुछ पल को समझ नहीं पाई कि ऐसा क्यों किया जा रहा है, फिर मेरा ध्यान सामने लगे बड़े बोर्ड पर गया जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था- मां गंगा जन्मोत्सव समारोह। बायीं ओर गंगा मैया मगरमच्छ पर विराजमान थीं। दायी ओर भोले भंडारी का चित्र बना हुआ था, तब पहली बार मुझे पता चला कि गंगा मैया की सवारी मगरमच्छ है।

मैं अभी इसी ध्यान में खोई थी कि तेज आवाज सुन कर आसमान की ओर ध्यान गया तो क्या देखा कि एक पैराशूट से फूलों की वर्षा की जा रही है। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे देवता स्वयं पुष्पवर्षा कर रहे हों। ऐसा सुंदर नजारा था कि शब्दों में बयान करना कठिन है… तभी सामने बने घंटाघर ने साढ़े छह बजाए और सभी आरती के लिए गंगा मैया की ओर दौड़े। अद्भुत नजारा था, पल भर को लगा साक्षात स्वर्ग के द्वार पर खड़ी हूं। फूलों से सजा पंडाल, सामने गंगा मैया की तेज धारों का मधुर संगीत, पीतल के घंटे की कर्णप्रिय ध्वनि के बीच विशाल दीपों से आरती का भव्य नजारा…। पलकें जैसे झपकना ही भूल गईं थीं…।

-अंजू खरबंदा

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