हम इमरोज़ नहीं, पर रोज मिलेंगे

-संजय स्वतंत्र सुनो, इमरोज़ नहीं हूं कितुम रतजगे करो और मैंबनाऊं चाय तुम्हारे लिए,मैं चाहता हूं कितुम्हारे माथे पर अंकित कर दूंएक हरी-भरी धरती औरहाथ पकड़ कर ले चलूंतुम्हें किसी…

इत्र की शीशियों में एक ग़ज़ल

-संजीव सागर इत्र की शीशियों की तरह हो गए,जब खुले खुश्बुओं की तरह हो गए। बाजिÞयां  इश्क की  खेलते खेलते,बदगुमां मौसमों की तरह हो गए। जब कहीं तितलियां देख ली…

कवि प्रभात पर ‘बखत’ का विशेष अंक

साहित्य डेस्कनई दिल्ली। पिछले दिनों जयपुर से साहित्य जगत की अच्छी खबर आई। एक साहित्यिक अखबार ‘बखत’ ने चर्चित कवि प्रभात पर अपना विशेष अंक निकाला। इसका लोकार्पण पिंक सिटी…