-संजीव सागर
इत्र की शीशियों की तरह हो गए,
जब खुले खुश्बुओं की तरह हो गए।
बाजिÞयां इश्क की खेलते खेलते,
बदगुमां मौसमों की तरह हो गए।
जब कहीं तितलियां देख ली हुस्न की,
हम महकते गुलों की तरह हो गए।
भीगने की तमन्ना सनम ने करी,
हम जरा बारिशों की तरह हो गए।
बेटे उलझे हुए जब दिखे जहन से,
बाप फिर दोस्तों की तरह हो गए।
राम सीता की देंगे मिसालें सभी,
बेटे गर बेटियों की तरह हो गए।
बूंद सागर मिलन के ये पल देखिए,
शे’र सब मोतियों की तरह हो गए।
-संजीव सागर