जासूस डेस्क
नई दिल्ली। तकनीक हर चीज को बदल रही है। हर रोज बदल रही है। पिछले दो दशकों में प्रौद्योगिकी ने जहां जीवन को आसान बना दिया है, वहीं यह आपकी गतिविधियों पर भी नजर रख रही है। आप कहां जाते हैं, क्या करते हैं और क्या बातें करते हैं, सब नोटिस किया जा रहा है। जो लोग आधुनिक मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं, उनका सब हिसाब-किताब रखा जा रहा है। महीने में आपके मेल पर यह सूचना आती होगी कि आप फलां-फलां जगह गए थे। आप क्या चीजें पसंद करते हैं या कुछ सर्च इंजन पर क्या ढूंढते हैं वो सब आपके मोबाइल स्क्रीन पर बाद में भी दिखाई देती है। उससे संबंधित विज्ञापन भी दिखने लगते हैं।

जासूसी में दुश्वारियां
यह तो रही आम नागरिकों की बात। मगर सोचिए बीस-पच्चीस साल पहले कैसा जीवन था। आप डाकिए का इंतजार करते थे। आज मैसेंजर और एसएमएस ही डाकिये का काम कर रहा है। मोबाइल फोन ने संवाद और संचार की तस्वीर ही बदल दी है। यानी सूचना तंत्र अब पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गया है। तीस साल पहले तक खुफिया एजंसियों और जासूसों के पास संचार के कितने सीमित साधन थे। कितनी दुश्वारियां थीं। आप समझ सकते हैं कि तब जासूसों को अपने कमांड सेंटर में जानकारियां पहुंचाने में कितनी मुश्किलें आती होंगी। फिर भी वे अपने काम को अंजाम देते थे। देर से ही सही, लेकिन सफलता मिलती थी।

प्रौद्योगिकी ने बदला तौर-तरीका
संचार माध्यम में प्रगति के साथ जहां सरकारी कार्यालयों और मीडिया समूहों के कामकाज में बदलाव आया। वहीं हमारे ‘देसी जेम्स बांड’ भी हाईटेक होने लगे। सबसे पहले तो हाइटेक मोबाइल ने उनका काम आसान कर दिया। हालांकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में तो सत्तर के दशक में ही जासूस हाईटेक होने लगे थे। संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजे जाने के बाद तो पूरी दुनिया में बदलाव आया। अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और इजराइल जैसे ताकतवर देशों की खुफिया एजंसियां पहले से कहीं अधिक दक्ष और सक्षम हो गर्इं। भारत भी इसमें पीछे नहीं रहा है। आज हर देश एक दूसरे की जासूसी में लगा है। अधिकतर बड़े देश आधुनिक संचार माध्यमों से एक दूसरे पर पैनी नजर रखे हुए हैं। चीन की कारगुजारियों से तो अमेरिका तक हलकान है।

एआई से बदलेगा पूरा परिदृश्य
जासूसी में एक दूसरे से होड़ कर रहे देश तब क्या करेंगे जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम मेधा क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। कोई दो साल पहले जासूसी की दुनिया में हो रहे बदलावों पर चीन और रूस को लेकर ब्रिटेन की खुफिया एजंसी एमआई-6 के प्रमुख रिचर्ड मूर ने आगाह किया था। सभी जानते हैं इन दोनों देशों की खुफिया एजंसियां पश्चिमी देशों की खुफिया एजंसियों के मुकाबले कितनी परिष्कृत तकनीक का इस्तेमाल करती हैं। अगर इसको लेकर पश्चिम के जासूस सतर्क हैं तो भारत के जासूस के लिए खुद को और भी दक्ष बनाने का समय है। आज स्थिति यह है कि एआई से लेकर क्वांटम कंप्यूटिंग और सिथेंटिंक बायोलॉजी पर हर बड़ा देश अपने बजट का पैसा खर्च कर रहा है।

चीन बना चिंता का सबब
करीब दो साल पहले एमआई-6 के प्रमुखरिचर्ड मूर ने सतर्क किया था कि रूस और चीन ने एआई में दक्षता हासिल करने के लिए अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं। मूर की चेतावनी सामने न आती अगर ब्रिटिश सरकार उनके भाषण के एक अंश जारी नहीं करती। मूर का मानना है कि अगले दशक में तकनीक के मामले में प्रगति पिछली सदी में विकसित सभी प्रौद्योगिकी को बहुत पीछे छोड़ देगी। मूर के इस कथन को सत्य मानें तो सोचिए जीवन के हर क्षेत्र से लेकर जासूसों की दुनिया कितनी बदलने वाली है। चीन और रूस एआई पर क्यों बेतहाशा खर्च कर रहे हैं, इसे समझा जा सकता है। इससे वे अपने पास-पड़ोस से लेकर उन बड़े देशों पर दबंगई करना चाहते हैं जो उनके आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। पश्चिमी देशों के लिए यह चिंता का विषय है। उनको लगता है कि चीन उन पर एक दिन हावी न हो जाए।  

एआई बदल देगी खुफियागीरी
कोई दो राय नहीं कि आने वाला दशक एआई दक्ष नागरिकों का है। जो इसे समझ लेगा, उसका जीवन आसान हो जाएगा। हमें कदम-कदम पर एआई मदद करने करने वाली है, चाहे आप अस्पताल में हों या खरीदारी कर रहे हों। यहां तक की अब कारें और अन्य वाहन भी एआई दक्ष आएंगे। वाशिंग मशीन तो आने लगी है। आपके मोबाइल और लैपटाप-कंप्यूटर भी कृत्रिम मेधा से लैस होंगे। पुलिस और सुरक्षा से जुड़ी एजंसियों का जटिल काम पलक झपकते हो जाएगा। अभी तो हम डाटा संग्रह का बोझ ही लिए फिरते हैं। तब एक-एक डाटा का विश्लेषण पल भर में होगा। एक फाइल जो घंटों तलाशने पर भी नहीं मिलती थी, आज सभी के सभी कंप्यूटर में फीड हैं। एआई एक झटके में फाइल को प्रोसेस कर देगी। बही-खाता से लेकर तमाम रिकार्ड कुछ सेकेंड में चेक हो जाएंगे। हर अपराधी का चेहरा पहल क्षण भर में पहचाना जा सकेगा। हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारियों का काम और आसान हो जाएगा।

अब एआई दक्ष होंगे जासूस
इस समय ‘स्पाइवेयर ऐप’ फोन कॉल को रिकार्ड कर लेते हैं। इससे जासूसों के लिए हरदम  खतरा बना रहता है। मगर एआई दक्ष न्यूट्रल वॉयस कैमाफ्लेज तकनीक बचाव करती है। यह तकनीक पृष्ठभूमि में आॅडियो शोर पैदा करती है। जिससे रिकार्ड की गई आवाज को ट्रांसक्रिप्ट करने वाली दूसरी एआई को भ्रमित करती है। यानी जिसका एआई जितना उन्नत, वह उतना ही आगे रहेगा। यानी प्रतिद्वंद्वी देश को जासूस मूर्ख बनाएंगे। हालांकि कुछ शातिर अभी से कुछ लोगों के चेहरे का बेजा इस्तेमाल कर रहे है। एआई का प्रयोग राष्ट्रहित के लिए और लोगों का जीवन आसान करने के लिए हो, इसके लिए तमाम देशों को सतर्क रहना होगा। इसके लिए पुख्ता उपाय भी करने होंगे।

एक दूसरे की भाषा समझने, अपनी पहचान को और भी गोपनीय रखने तथा संचार नेटवर्क के इस्तेमाल के दौरान पकड़ में न आने के लिए जासूसों के वास्ते एआई बहुत कारगर साबित होने वाली है। यह अब सिद्ध होने लगा है। एआई से जासूसों की दुनिया किस तरह बदलने वाली है, यह आने वाले सालों में साफ होता चला जाएगा।

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