-अतुल मिश्र

‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ नारे के बैनर तले बिजली न आने की वजह से जेनरेटर की लाइटों से जगमगा रहा एक सियासी पार्टी का दफ्तर। अंदर की हलचल से उन्पन्न माहौल बता रहा था कि वे सब आगामी चुनाव की तैयारियों के लिए आपस में लाख मतभेद होने के बावजूद एक जगह इकट्ठे ही नहीं थे, एक दूसरे के हालचाल सही होने की सूचनाएं भी ‘कन्फर्म’ कर रहे थे।

‘…और क्या हालचाल हैं, गुप्ता जी? पहले से कुछ आराम है?’ पार्टी के उभरते हुए नेता से किसी वरिष्ठ कार्यकर्ता ने ‘बवासीर’ नामक बदनाम करने वाली बीमारी का जिक्र किए बिना ही पूछ लिया।

‘अब तो ठीक होना ही पड़ेगा, भाई। चुनाव सर पर हैं और आलाकमान के कई फोन भी आ चुके हैं कि क्या तैयारियां हैं?’ अपने ‘पृष्ठांग-विशेष’ की आवश्यकता को खुजा कर दूर करने की कोशिश करते हुए गुप्ता जी ने आलाकमान की निगाहों में अपनी बीमारी की अहमियत प्रदर्शित की और सरसरी तौर पर सबको देखे बगैर जवाब दिया। ‘दवाई लगातार ले रहे है, ना?’ गुप्ता जी की गुप्त बीमारी को तमाम कार्यकताओं के बीच सार्वजनिक करते हुए वरिष्ठ कार्यकर्ता ने फिर छेड़ा।

‘देखो शर्मा, तुम कुछ ज्यादा ही बोल रहे हो। चुनाव आने वाले हैं और इस समय हमें उसके सिवाय किसी और विषय पर चर्चा नहीं करनी है। खासतौर से कोई किसी भी बीमारी के बारे में कुछ नहीं पूछेगा।’ देश और पार्टी को बवासीर से ऊपर सिद्ध करते हुए गुप्ता जी ने वरिष्ठ कार्यकर्ता शर्मा को दोबारा याद दिलाया।

‘ठीक है, आप अगर बुरा मान रहे हैं, तो अब हम आपसे चुनाव की ही बात करते हैं। क्या आप यह बताने की कृपा करेंगे कि आपको जो आज भाषण देना है, उस दौरान खड़े ही रहना है या किसी कुर्सी पर बैठने की भी व्यवस्था करनी है?’ चुनावी तैयारियों के दायरे में रहकर शर्मा जी ने गुप्ता जी की उभरती बीमारी की फिर याद दिला दी, जिससे माहौल नेताओं के दल की तरह बदल गया।

‘जानते हो, तुम्हारे बारे में पार्टी-मुख्यालय में किस-किस तरह की बातें करते है लोग? कहते हैं कि तुम नाकारा हो, गधे हो और किसी काम के नहीं हो। और सुनाऊं क्या कहते हैं या इतना ही काफी है?’ आदमी गधा और नाकारा होने पर भी राजनीति में अपना अस्तित्व बनाए रह सकता है, इस तथ्य को स्वीकारते हुए गुप्ता जी ने शर्मा जी को अपनी प्रश्नवाचक निगाहों से जलील किया और आगे बढ़ गए।

‘चलिए, देखते हैं कि आप चुनावी मंच पर कब तक खड़े रहते हैं?’ उभरते हुए नेता के चुनाव में खड़े होने पर सवालिया निशान लगाने के बाद शर्मा जी लोगों से बवासीर की बीमारी और उसके चुनावी दुष्परिणामों पर गंभीरता पूर्वक विचार करने में व्यस्त हो गए।

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