-डॉ. परमजीत ओबराय

दूरियाँ बढ़ रहीं हैं क्योंकि-
बढ़ गई हैं
किसी और से नजदीकियां,
मोबाइल हो गए प्रमुख।
छिनती जा रहीं
रिश्तों की नजदीकियां।

अपनों की उपेक्षा कर –
दूसरों से नेह बढ़ाते,
क्या यही रिश्ते हैं –
आज के,
हम समझ न पाते।

मोबाइल के हो गए
सब कायल,
होते हैं जिनसे-
बहुत से हृदय घायल।
अपने-अपने में हैं
व्यस्त आज के युवा,
क्या रह पाएंगे वे
केवल चुनिंदा चीजों के लायक।

शोक में है यह पीढ़ी-
अभिभावकों व शिक्षकों की,
जिन्हें देखते अब-
रहते हैं सदा
किसी और के साथ व्यस्त।
शायद भूख कोई
बढ़ती जा रही,
वजह से जिसके-
नव पीढ़ी, कुछ गुमराह हो रही।
हो जाए ईश की अनुकंपा-
इन पर भारी,
सबकी बुद्धि हो जाए नित न्यारी,
भविष्य सुधार कर अपना-
चलें अपने पथ पर,
हैं जिनके वे अधिकारी।

-डॉ. परमजीत ओबराय

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