-सुगंधि कुलसिंह  

हाय जलेबी,
दिन रात फुटपाथ पर
बिकती हुई जलेबी
हर किसी की तलाश ऐसी
गरमा-गरम जलेबी,
चारों तरफ उलझी हुई
रोज तलती निराश जलेबी,
मन की खुशी तन की सुखी
ऐसी चाशनी जलेबी,
तनख़्वाह के दिन तलाश करता हूं
मेरी पसंद की जलेबी।

(सुगंधि श्रीलंका की कवयित्री हैं। इस समय वे भारत में पीएचडी कर रही हैं)

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