जासूस डेस्क
नई दिल्ली। वह बेहद खूबसूरत है। वह प्रेम की भूखी है। यह भूख दिल से देह तक की है। वह माया है। जो अपने मन की संतष्टि के लिए भटकती है, तो वह परंपरा और मर्यादा तोड़ती है। यह उसका अधिकार है। उसकी निजता में पति का ही हस्तक्षेप नहीं तो किसी को क्या मतलब। दो अन्य पुरुषों से प्रेम भी उसके मन को शांत नहीं कर रहा। जाने कौन सी आग है जो बुझती नहीं। वह भटकते-भटकते एक ऐसे जादुई पेय के फेर में पड़ती है जो चमत्कारिक है। क्या उससे उसको शांति मिलेगी? शायद नहीं। यही होता है। वह पेय पीने के बाद माया गुम हो जाती है। शक है कि उसकी हत्या हो गई है। माया को किसने मारा, किसी को नहीं मालूम। जासूस पता कर रहे हैं कि माया आखिरी बार कहां थी। जांच से पता चलता है कि पति के अलावा उसके कुछ प्रेमी भी थे।
आज चर्चा फिल्म माया मेमसाब की। यह इसलिए कि इस फिल्म ने हाल में अपने तीस साल पूरी किए हैं। यह फिल्म भाव प्रधान होते हुए इसमें रोमांच और रहस्य है। कहीं न कहीं अपराध हुआ है तो पुलिस की अपनी जांच भी है। आप यह फिल्म देखें तो पाएंगे कि इसकी शुरुआत ही इस दृश्य से होती है कि माया नाम की कोई महिला गायब है। शायद उसकी हत्या हो गई है। इसी संदेह में दो पुलिसवाले उसके घर में जांच कर रहे हैं। पति से भी पूछताछ हो रही है। यह जांच कौतुहल पैदा करती तो डराती भी है। सच तो ये है कि माया के बारे में किसी को पता नहीं सिवाय माया के। इसके बाद पूरी कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है।
तन मन का द्वंद्व है माया
उच्च शिक्षित नारी अब पिता और बेटे की मोहताज नहीं है। वह अपनी भावनात्मक और दैहिक जरूरत के लिए पति का मुंह नहीं देखती। खास तौर से तब जब वह काम में व्यस्त हो और पत्नी को समय न दे पा रहा हो। ऐसे में कोई स्त्री एक तो क्या चार प्रेमी भी बना ले, तो अचरज नहीं। प्यार को लेकर कल्पना में डूबी रहने वाली माया ने यही किया। वह खुद में एक आग है। उसे कौन बुझाए? उसके मन का दीप तन में अग्नि पैदा करता है। उसे न तो अपने से ज्यादा उम्र का पुरुष बुझा पाया और न कच्ची उम्र का लड़का। माया तन से मन की ओर जाती है। यानी उसे दोनों की संतुष्टि चाहिए। इसलिए यह द्वंद्व मन और तन का है। इसे हर पुरुष नहीं समझ सकता। यहां तक कि माया को भी नहीं मालूम कि उसे आखिर चाहिए क्या।
हम सब की रूह में है माया
मामा मेमसाब को देखते हुए प्रतीत होता है कि उसकी कहानी हम सब से कुछ कहना चाहती है, जिसे हम सदियों से नहीं समझ पाए। हर स्त्री प्रेम की भूखी है। और वह इसकी तलाश में कोई स्त्री दूर तक निकल जाती है, जहां से लौटना कई बार उसके लिए मुमकिन नहीं होता। उसकी रूह हम सब में है, क्या स्त्री और क्या पुरुष। दोनों एक दूसरे को तलाश रहे हैं। इसलिए माया मेमसाब देह और दिल के बीच द्वंद्व की प्रेमकथा है जो शायद हमेशा अधूरी रहेगी। इस कथा को हर स्त्री पूरा करना चाहती है अपने तरीके से। देह को संतुष्टि चाहिए तो दिल को बेपनाह मोहब्बत। अगर यह संतुलन बन जाए तो हर स्त्री की तलाश पूरी हो जाती है। फिर एक हसीन ख्वाब साया बन कर छा जाता है।
माया एक जीवन दर्शन है
आप इस फिल्म को देखें तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि माया असल में माया नहीं है। वह एक जीवन दर्शन है। इसे हर पुरुष को समझना चाहिए। जैसे इस फिल्म में माया के पति डॉ. चारू दत्त कभी माया के मन को समझ ही नहीं पाए। माया एक फिलॉस्फी है हर स्त्री के जीने की। उसकी निजता की। और सबसे बढ़ कर उसकी आत्मसंतुष्टि की। वह अपने भाव से देह को और देह से मन को भोग लेना चाहती है। जिसे न तो उससे ज्यादा उम्र का प्रेमी रूद्र समझ पाया और न माया से कम उम्र का युवा ललित। पति उसे समझ नहीं पाया तो उसकी अपनी मजबूरियां हैं। हालांकि तीनों ही पुरुष पात्र माया से प्रेम करते हैं फिर भी माया असंतुष्ट है। इस लिहाज से देखें तो माया हर अधूरी स्त्री की अपनी कहानी है।
एक लाजवाब फिल्म ‘माया मेमसाब’
यह फिल्म एक काव्यात्मक रोमांस है। संजीदा निर्देशक केतन मेहता ने यह फिल्म बनाई और उन्होंने अपनी पत्नी और भावप्रवण अभिनेत्री दीपा को माया मेमसाब का किरदार दिया। पर्दे पर पति बने फारूख शेख। दो प्रेमियों की भूमिका निभाई राज बब्बर और शाहरूख खान ने। फ्रांसीसी उपन्यासकार गुस्ताव फ्लॉवर्ट के चर्चित उपन्यास ‘मैडम बोवेरी’ पर आधारित है। यह फिल्म उन युगलों के लिए नहीं है जिनके लिए प्यार का अतिम मतलब सेक्स होता है। यह फिल्म है सच्चे प्यार की तलाश में भटकती स्त्री की। वह विवाहेतर संबंध भी बनाती है, लेकिन उसे निराशा ही मिलती है। स्त्री की भाव यात्रा का कैसे अंत होता है इसके लिए संजीदा लोगों को यह फिल्म एक बार अवश्य देखनी चाहिए। शिमला के प्राकृतिक दृश्यों का फिल्मांकन मोह लेता है। दो सुमधुर गीत ‘ओ दिल बंजारे’ और ‘एक हसीन निगाह’ का सुन कर आप खो जाएंगे। सचमुच एक लाजवाब फिल्म है ‘माया मेमसाब’।