जासूस डेस्क
नई दिल्ली। एक दौर में जब गुलशन नंदा रोमानी उपन्यास रच रहे थे, उसी समय लेखक ओम प्रकाश शर्मा सर्वहारा वर्ग को ध्यान में रख कर जासूसी उपन्यास लिख रहे थे। उन्होंने न केवल इतिहास के अभिशप्त पात्रों को उठाया बल्कि सबसे कमजोर वर्ग यानी मजदूरों की दशा-दुर्दशा को भी चित्रित किया। दरअसल, ओमप्रकाश शर्मा राजधानी के दिल्ली क्लाथ मिल में काम करते थे। वहां काम करते हुए उन्होंने निम्न मध्य वर्ग के जीवन को करीब से देखा और नौकरी के दौरान उन्होंने उन पर लिखा भी।
जासूसी लेखन में ओम प्रकाश शर्मा
जासूसी लेखन परंपरा में ओम प्रकाश शर्मा एक बड़ा नाम है। उनके दो उपन्यास ‘सांझ का सूरज’ और ‘दूसरा ताजमहल’ तो किसी साहित्यिक कृति से कम नहीं। फिर भी उन्होंने स्वयं को कभी साहित्यकार मानने के बजाय एक साधारण लेखक ही माना। उनका हमेशा ये मानना रहा कि ऐसे साहित्य की रचना होनी चाहिए जिसमें न केवल कमजोर वर्ग का जिक्र हो बल्कि उनके मनोरंजन का भी ध्यान रखा जाए। इसके साथ ही उस रचना की कीमत इतनी हो कि सब पढ़ सकें। अपनी इसी भावना को ध्यान में रख कर उन्होंने जनप्रिय साहित्य रचा। उन्होंने अपने जीवन में करीब 450 उपन्यास लिखे।
शरतचंद्र और नागर से प्रभावित
ओमप्रकाश शर्मा मशहूर उपन्यासकार शरतचंद्र और अमृतलाल नागर से बेहद प्रभावित थे। जिस समय उन्होंने लिखना शुरू किया, उस समय लेखन की अलग-अलग धाराओं से देश के लाखों पाठक प्रभावित थे। उस दौर में इब्ने सफी के उपन्यासों का खुमार उतरा नहीं था। पाठक उनकी अनुवादित रचनाएं पढ़ रहे थे। ऐसे दौर में ओमप्रकाश अपने लिए जमीन तैयार कर रहे थे। वे पाठकों को रहस्य से निकाल कर अपनी कथा से रोमांचित करना चाहते थे। उनका कहना था कि पाठकों को अंग्रेजी उपन्यासों के ‘सस्पेंस’ से बाहर लाना होगा।
लेखन में समन्वय और जनवाद
ओमप्रकाश शर्मा ने अपने जासूसी लेखन में एक नया प्रयोग किया। उन्होंने उपन्यासों में रोमांच पैदा करते हुए देवकी नंदन खत्री की उस शैली को अपनाया जिसमें वे पाठकों के लिए कहानी में कौतुहल बनाए रखते थे। यह एक ऐसा समन्वय था जिसमें वे जेम्स हेडली चेज से प्रभावित पाठकों को कुछ नया देना चाहते थे। इसके लिए ओमप्रकाश शर्मा ने प्रासंगिक विषयों को आधार बनाया। उन्होंने अपने उपन्यासों में कौतुहल बनाए रखते हुए •ा्रष्ट नेताओं, अफसरों और ठेकेदारों के साथ गुंडों की भी खबर ली।
पाठकों को रहता था इंतजार
ओमप्रकाश शर्मा इतना दिलचस्प लिखते थे कि पाठक उनके उपन्यासों का शिद्दत से इंतजार करते थे। ‘होटल में एक रात’ और ‘समाज के कलंक’ शीर्षक से लिखे गए उनके उपन्यास बेहद सराहे गए। यही नहीं उनके कुछ उपन्यास कालांतर में पाठकों की मांग पर दोबारा छापे भी गए। ‘पापी धर्मात्मा’ उनमें से एक था। इसके अलावा डिजिटल मंच पर भी कई उपन्यासों को लाया गया। उनका एक उपन्यास ‘धड़कन’ काफी चर्चा में रहा। इस पर एक फिल्म भी बनी जिसका नाम था-चमेली की शादी। जिन उपन्यासों को पाठकों ने सराहा, उनमें ‘जाल’, ‘नूरजहां का नेकलेस’, ‘राज मंदिर का रहस्य’, ‘विष कन्या’, ‘शंघाई की सुंदरी’, ‘पिशाच सुंदरी’, ‘केसरगढ़ की काली रात’, ‘औरतों का शिकार’, और ‘कबिस्तान की चीख’ प्रमुख हैं।
अधूरी रह गई लेखक की आत्मकथा
ओमप्रकाश जी जीवन भर कथा रचते रहे। मगर अपनी कथा-व्यथा यानी आत्मकथा अधूरी रह गई। लेखक आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत को सहेजने की लगातार कोशिश हो रही है। सोशल मीडिया और डिजिटल मंच से यह प्रयास दिखता है। साल 1924 में 25 दिसंबर को जन्मे ओमप्रकाश शर्मा अपने अंतिम समय में अपनी आत्मकथा लिख रहे थे। चौबीस साल पहले 14 अक्तूबर 1998 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा था। मगर उनकी एक हसरत अधूरी रह गई। उनके बेटे की कोशिश है कि पिता के अधूरी यादों को अपने संस्मरण से जोड़ कर पूरा करें और सबके सामने लाएं। पाठकों को भी इंतजार है।