नीरजा कृष्णा
आज शनिवार की छुट्टी होने के कारण सब घर में थे और लंच के लिए वेलेंटाइन गिफ्ट को लेकर सब टेबल पर डटे थे। अचानक बिटिया मोना पूछ बैठी, ‘पापा, आपने मम्मी को कभी वेलेंटाइन डे गिफ्ट दिया है?’ मनमोहन जी मुस्कुरा दिए थे, ‘अरे बेटे! ये सब आजकल के बच्चों के चोचले हैं। हमारे समय में ये सब नखरे नहीं चलते थे।’
मोना ठुनठुना कर बोली, ‘ऐसे टालने से नहीं चलेगा। आप भी इसी जमाने के हैं। आज आप मम्मी के लिए कोई प्यारी सी वेलेंटाइन गिफ्ट ला रहे हैं। ओ.के?’
आज सब इंतजार में हैं…देखते हैं आज पापा क्या लाते हैं।
नियत समय पर उनका स्कूटर गेट पर रूका और वे गुनगुनाते हुए घर में घुसे और पूरी शान और नजाकत से झोला मम्मी को थमा दिया। तीनों उस गिफ्ट को देखने लपक पड़े। खोलने पर उसमें ढेर सारे गर्मागर्म समोसे निकल पड़े। सब हंस-हंस कर लोटपोट हो गए। मोना खिसिया कर उलाहना देने लगी, ‘पापा, ये आपका वेलेंटाइन गिफ्ट है…बोर कर दिया।’
पर मम्मी ने खुश होकर दादी जी को पुकारा, ‘अम्माजी! जल्दी आओ! ये गरम गरम समोसे लाए हैं।’
अंदर से वो खुश होती हुई आर्इं और बहू की पीठ थपथपा कर बोलीं, ‘अरे आज तो हमारे लल्ला पीपा भर के समोसे ले आए। हमारी उमा को बहुत पसंद हैं ना।’
पापा प्यार से उनको देखने लगे थे और उनके चेहरे पर हजारों गुलाबों की रौनक छा गई थी।