जासूस डेस्क
नई दिल्ली। भारतीय कथा साहित्य में ‘ऐयार’ पन्ना-दर-पन्ना टहलता हुआ जब रूपहले पर्दे पर आया तो लाखों पाठकों ने अपनी कल्पना को साकार होते देखा। वह ‘ऐयार’ स्पाई यानी जासूस बन चुका था। मगर वह वास्तविकता से दूर कहीं ज्यादा फिल्मी  साबित हुआ। जेम्स बांड जैसा एक्शन करने की कोशिश तो ये करते, मगर उनके मुकाबले कमतर ही थे। वैसे भी हम तकनीक और बजट के मामले में हालीवुड से अब भी पीछे हैं। हमारे फिल्म निर्माताओं को जासूसी फिल्मों के लिए डेनियल क्रेग जैसा गंभीर अभिनेता तो नहीं मिलता तो वे आस भरी नजरों से शाहरुख या सलमान की ओर भी देखते हैं। जैसा की सभी जानते हैं कि दर्शक उनका एक खास अंदाज, एक स्वैग देखने के लिए थिएटर का रुख करते हैं।

बालीवुड के पास जेम्स बांड नहीं
अफसोस कि हमारे पास एक भी धाकड़ फिल्मी जेम्स बांड नहीं। पिछले एक दशक से हम भाई जान यानी अपने सलमान को जासूस की भूमिका में देख रहे हैं। नब्बे के दशक के आखिर में इस तरह की एक्शन सीरीज शुरू हुई। सबसे पहले हम लोगों ने ‘एक था टाइगर’ देखा। इसका बाद दूसरी फिल्म आई- ‘टाइगर जिंदा’ है। फिर पिछली दिवाली पर आई जासूसी फिल्म ‘टाइगर-3’ को लाखों दर्शकों ने देखा। कुछ तो बात है इस टाइगर में। वह एक खास स्वैग के साथ आता है और महफिल लूट कर निकल जाता है। अफसोस की बात है कि वह ‘जेम्स बांड’ नहीं।

हमारा हीरो किस-किस से लड़े?
भारतीय जासूसी फिल्मों का दायरा पाकिस्तान से आगे नहीं बढ़ता। हमारा फिल्मी जासूस चीन, म्यांमा या किसी अन्य देश में नहीं जाता। उसके लिए ले-देकर पाकिस्तान ही बचता है। टाइगर शृंखला की सभी फिल्मों में ऐसा ही है। वहीं दूसरी ओर इन फिल्मों में नायिकाओं के लिए सिवाय मोहब्बत करने या अपना सौंदर्य दिखाने के कुछ बचता ही नहीं। वहीं गीत-संगीत का का पैकेज डाल कर फिल्म का चूरमा बना दिया जाता है। आप जेम्स बांड वाली फिल्मों का बैकग्राउंड म्यूजिक सुनिए। आपको पता चलेगा कि यह आपके जेहन में बस गया है।    

अलबत्ता, ‘टाइगर-3’ में निर्माता ने थोड़ी मेहनत जरूर की, मगर इस बार भी वे कोई खास प्रभावित नहीं कर पाए। एक अकेला एक्शन मैन। यानी हमारे भाई जान किस-किस से लड़ें। सब चाहते हैं कि पड़ोसी मुल्क के साथ अमन-चैन से रहें। मगर सरहद पार बैठे साजिशकर्ता और आतंकी यह बिल्कुल नहीं चाहते। उनका एक ही मकसद है कि दोनों मुल्कों के बीच तनातनी और खटास बनी रहे। इसमें वे कई बार कामयाब होते हैं। ऐसे में जासूसों की भूमिका बढ़ गई है। क्या ऐसा हो सकता है कि पत्नी ही दुश्मन देश की जासूस हो। वह अपने उस आका के लिए काम कर रही है जो यह चाहता है कि भारत-पाक के बीच शांति वार्ता को पटरी से उतार दिया जाए। एक तरफ देशभक्त जासूस और दूसरी तरफ दुश्मन की भेदिया पत्नी। जासूस को अब घर से लेकर देश के दुश्मनों से भी लड़ना है। फिल्म ‘टाइगर-3’ की कहानी का यही आधार है। इसमें बहुत कुछ फिल्मी है तो तमाम झोल भी हैं।  

मगर टॉम क्रूज बनना मुश्किल
टाइगर-3 की कहानी का सार यह है कि भारतीय खुफिया एजंसी रॉ की प्रमुख मैथिली मेनन के आग्रह पर पाक में फंसे सहयोगी को बचाने के लिए टाइगर निकलता है। असंभव से लग रहे इस मिशन को वह पूरा भी करता है। और अपने साथी गोपी आर्य को बचा लेता है। मगर इस क्रम में घायल गोपी बताता है कि उसकी पत्नी जोया पाकिस्तान की जासूस है। यशराज स्पाई यूनिवर्स शृंखला का यह अपना अंदाज है। यहां सलमान खान टॉम क्रूज जैसे लगते तो हैं, मगर उनको छू पाना वाकई मुश्किल है। फिर भी वे हेलिकॉप्टर से छलांग लगाते हुए और मुस्कुराते हुए अपने प्रशंसकों का दिल जीत ही लेते हैं। कैटरीना कैफ लाख कहें कि वे टॉम्ब राइडर बनना चाहती हैं मगर दिखने और बनने में जमीन आसमान का फर्क है।

अपनी उम्र नहीं छुपाता टाइगर
टाइगर में कुछ तो थास है। यानी भाई जान के लिए  ‘टाइगर-4’ की कहानी भी उनके लिए लिखी जाए तो बड़ी बात न होगी। मगर सबसे अच्छी बात यह है कि अपना टाइगर अब उम्र नहीं छिपाता। साठ के दशक के बाद पैदा हुई पीढ़ी की उम्र ढल रही है। क्या आमिर और क्या शाहरूख। कई अभिनेता पचास के बार जा चुके हैं। खुद सलमान पिछले साल दिसंबर में 58 साल के हो गए। 2025 में 27 दिसंबर को वे साठ साल के हो जाएंगे। कौन कहेगा कि वे बूढ़े हो गए। यही वजह है कि टाइगर-3 में उन्होंने उम्र छुपाने की कोशिश नहीं की। वे अब सहज हैं उम्र को लेकर। जासूस की उम्र ज्यादा भी हो तो क्या फर्क पड़ता है। वैसे भी जेम्स बांड की अगली फिल्म के लिए काफी समय से डेनियल क्रेग को मनाया जा रहा हैं जो खुद पचपन साल के हो गए हैं। सलमान उनसे कम हैं क्या। 

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