-सुगंधि कुलसिंह
आदत से मजबूर मैंने
आज भी
वही धूसर कागज वाली
काली डायरी खोल ली,
हमेशा की तरह।
नए पन्ने के ऊपर,
कोने पर आज की
तारीख लगा दी,
मम्मी की पीले तार वाली
पुरानी काली साड़ी से
छोटा सा टुकड़ा चीर कर
धूसर पन्ने पर
सब से ऊपर
फेविकॉल से चिपका दिया…
पन्ने पर नीचे
दो कुत्तों का चित्र
पेंसिल से खींच दिया मैंने,
पन्ने के बीच
छह-सात माचिस को
आड़ा-सीधा रख
बना दिया हमारा मोहल्ला,
जहां हमारी छत है
उसी छत के ऊपर
फूल भरी रातरानी की
छोटी सी डाली भी
कोने में रख दी।
दो-तीन तीलियों को लेकर
छत के बीच में बड़ी मुश्किल से
मैंने बनाई वही चारपाई
अब तो वही रात
वही तार,
भौंकते कुत्ते,
रातरानी की सुगंध
और ये ठंडी हवा
चारपाई पर
चुन्नी ओढ़ कर लेटी हुई मैं
अब भी राह देख रही हूं…
सब कुछ वहीं का वहीं है
बगैर तुम्हारे…।