जासूस डेस्क
नई दिल्ली। जासूसी कथा लेखन में एकउपन्यासकार है जो एक अकेला सब पर भारी नजर आता है। हम चर्चा कर रहे हैं कथाकार सुरेंद्र मोहन पाठक की। साहित्य जगत बेशक उन्हें हाशिए पर रखे, मगर सुरेंद्र मोहन ने अपने सृजन से हिंदी अपराध कथा का जो नया संसार रचा, उसे पिछले एक दशक में कोई चुनौती नहीं दे पाया है। कोई चाहे जितनी उपेक्षा करे, पर वे लोकप्रिय साहित्य में आज भी बेताज बादशाह बने हुए हैं। उनके नाम करीब तीन सौ सर्वाधिक बिकने वाले उपन्यास हैं।
लेखन की मजबूत नींव
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारे यहां न केवल पाठकों बल्कि लेखकों पर भी विदेशी साहित्य पर प्रभाव पड़ा। लेखकों ने कहानियों के लिए प्लाट चुराए तो कुछ पात्रों के सम्मोहन में रहे। भारतीय पाठक जेम्स बांड से संबंधित उपन्यासों और जेम्स हेडली चेज की कृतियों के कितने दीवाने रहे हैं, इसका अंदाजा सत्तर-अस्सी के दशक की पीढ़ी जानती हैं। सुरेंद्र मोहन भी इससे अछूते नहीं रहे।
उन्होंने अपने लेखन की शुरूआत ही जेम्स हेडली की कृतियों और इयान फ्लेमिंग्स के उपन्यासों के अनवाद से की। कुछ समय बाद लगा कि दूसरों की रचनाएं अनुवाद करने से अच्छा है कि कुछ मौलिक लिखा जाए। वे जासूसी साहित्य इतना पढ़ चुके थे कि लेखन की उनकी नींव मजबूत हो चुकी थी। एक बार जो शुरू हुए तो फिर वे हिंदी अपराध कथा साहित्य को समृद्ध करते चले गए।
खाते में कई चर्चित उपन्यास
सुरेंद्र मोहन पाठक एक लेखक के तौर पर नाम नहीं, प्रकाशकों के लिए ब्रांड बन गए। उनकी सबसे पहली कहानी ‘पुराना आदमी’ 57 साल पहले छपी। साल 1963 में उनका पहला उपन्यास ‘पुराने गुनाह, नए गुनहगार’ सामने आया। वहीं ‘मीना मर्डर केस’, ‘पैंसठ लाख की डकैती’, ‘हजार हाथ’, ‘जो लरे दीन के हेत’, ‘गोवा गलता’, और ‘जौहर ज्वाला’ जैसे लोकप्रिय उपन्यास लिख कर सबको चौंका दिया। ‘पैंसठ लाख की डकैती’ की तो लाखों प्रतियां बिकीं। हालांकि सुरेंद्र पाठक ने बच्चों के लिए भी दो पुस्तकें लिखीं जिनकी अमूमन चर्चा नहीं होती है।
सुनील की तरह विमल सीरीज भी लोकप्रिय
सुरेंद्र मोहन पाठक ने जिस तरह एक पत्रकार सुनील को पात्र बना कर अपने उपन्यासों में उतारा, उसी तरह विमल शृंखला के तहत सरदार सुरेंद्र सिंह विमल नाम से ऐसा पात्र गढ़ा जो जीवन के कैनवस पर एक बड़ा चरित्र बन गया। कुछ लेखकों के मन में यह सवाल उठता है कि सुरेंद्र मोहन पाठक उनसे ज्यादा लोकप्रिय क्यों है? तो उन्हें यह जानना चाहिए कि सुरेंद्र मोहन लेखन में हमेशा उदार रहे। किसी विचारधारा विशेष को पोषित नहीं किया। वे हिंदी के अलावा उर्दू, पंजाबी और अंग्रेजी की अच्छी समझ रखते थे। यही वजह है कि सुरेंद्र मोहन तीन पीढ़ियों में लोकप्रिय है। बता दें कि सुरेंद्र मोहन समचमुच में एक बेहतरीन ‘पाठक’ भी हैं। लिखने से पहले उनके मन में एक पूरा खाका होता है। जब कहानी लिखते तो लिखते चले जाते। एक अच्छा लेखक वही है जो नई बातों और घटनाओं को नोट करके रखता चले। सुरेंद्र मोहन यही करते रहे। वे संवादों पर जोर देते। उनके उपन्यासों के संवाद भी लोकप्रिय हुए।
विमल सीरीज का जादू आज भी
तीन सौ से ज्यादा उपन्यास लिखने वाले सुरेंद्र मोहन को उनके पात्र सुनील और सुधीर ने ही लोकप्रिय नहीं बनाया। विमल शृंखला के अंतर्गत लिखे उपन्यासों ने भी उन्हें नई ऊंचाई दी। विमल शृंखला के तहत उनका पहला उपन्यास ‘मौत का खेल’ 1971 में आया। इसके बाद तो इस लेखक ने इस शृंखला में उपन्यासों की झड़ी लगा दी। उन्होंने एक के बाद एक उपन्यास लिखे। साल 2014 में ‘जो लरे दीन के हेत’ शीर्षक से उपन्यास लिखा जो बेहद चर्चित हुआ। इसी कड़ी में ‘लेख की रेखा’, ‘जौहर ज्वाला’, ‘हजार हाथ’, ‘पैंसठ लाख की डकैती’, ‘मौत का फरमान’, ‘विमल का इंसाफ’, ‘छह सिर वाला रावण’ और ‘दिनदहाड़े डकैती’ आदि चर्र्चित रहे। कुछ समय पहले सुरेंद्र मोहन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि इस शृंखला को बंद करने का उनका इरादा नहीं।
बता दें कि ‘विमल सीरीज’ के लोकप्रिय होने की खास वजह थी। दरअसल, इन उपन्यासों में कोई जासूस नहीं था बल्कि इसमें एक ऐसा पात्र था जो मुजरिम है। पुलिस को उसकी तलाश है। यही नहीं सात राज्यों की पुलिस उसे पकड़ना चाहती है। वह समाज का सताया शख्स है। जो अब खुद बुराई और जुर्म को खत्म करना चाहता है। गरीबों की मदद करते हुए वह रॉबिनहुड बन जाता है।
अब भी याद आते हैं कई पात्र
देवकी नंदन खत्री और उनके बेटे दुर्गा प्रसाद खत्री को छोड़ दें तो सुरेंद्र मोहन पाठक सबसे अधिक शृंखलाबद्ध उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकार हैं। सुनील और सुधीर के अलावा ‘जीत सिंह सीरीज’, ‘प्रमोद सीरीज’, ‘थ्रिलर सीरीज’ और ‘मुकेश माथुर सीरीज’ आज भी याद किए जाते हैं। इसकी वजह यह है कि इस सभी उपन्यासों के पात्र असली लगते हैं। ये मुश्किल में होते हुए भी बुराइयों से लड़ते हैं। अपराधियों का सामना करते हैं। यह हम सुनील और विमल शृंखला के उपन्यासों में देखते हैं। सुरेंद्र मोहन पाठक और उनके उपन्यास आज भी याद किए जाते हैं तो इसका श्रेय उनकी रचनात्मकता तथा पात्र विशेष को जाता है।