-अंजू खरबंदा
रिन्नी काफी दिनों से बीमार चल रही थी। न आफिस जा पा रही थी और न ही ठीक से घर संभाल पा रही थी। कई डाक्टरों को दिखाया, पर कहीं संतोषजनक जवाब नहीं मिला। सुकेश जैसे-तैसे संभाल रहा था। बचपन की सहेली रीता को पता चला, तो वह मिलने के लिए उसके घर पहुंच गई। पूरा घर अस्त-व्यस्त पड़ा था। महरी झाडू-पोंछा-बर्तन तो कर जाती पर बाकी….? बाकी का क्या।
रीता कुछ देर रिन्नी के पास बैठी। उसका सिर सहलाती रही। हल्की-फुल्की बातचीत करती रही। फिर उसके लिए अदरक वाली चाय बना कर लाई। उसे तकिये के सहारे बिठा जैसे ही खिड़की के परदे हटाए, वैसे ही छनछनाती रोशनी कमरे में भर गई। कमरा समेटते हुए रीता को अखबारों के बीच एक डायरी मिली।
‘रिन्नी! ये डायरी तेरे काम की है या कबाड़ में फेंक दूं!’
‘दिखा तो जरा! अरे ये कहां मिली। मुझे रोज डायरी लिखने की आदत थी। रोज रात को सोने से पहले जरूर लिखा करती। अब तो बहुत दिनों से नहीं लिख पाई।’
‘अच्छा जी! क्या लिखा है डायरी में, देखूं तो जरा!’ कह कर रीता ने डायरी खोली और पढ़ने लगी । पन्ना-दर-पन्ना पढ़ती ही चली गई…।
‘आज छोटी ननद ऊषा ने नमक कम होने पर कैसी जली-कटी सुना दी। मौका आने पर बदला न लिया तो मेरा नाम भी रिन्नी नहीं।’
‘आज सुबह-सुबह सुकेश ने चार बातें सुना दी। पता नहीं ये पति अपने आप को समझते क्या हैं!’
‘आज आफिस में फाइल न मिलने पर अर्चना से फालतू की बहस हो गई। छोटी पोस्ट पर होकर भी जुबान चलाती है मुझसे।’
‘आज बच्चों का रिजल्ट लेने स्कूल गई। क्लास टीचर ने खरी खोटी सुना कर सारे मूड का सत्यानाश कर दिया।’
‘कल सासू मां आ रही हैं गांव से। अब जाने कितने दिन उनकी चाकरी करनी होगी।’
‘रिन्नी…अब समझ आया तेरी बीमारी का कारण! ये जो गिले-शिकवों की पोटली तूने अपने दिल पर रखी है ना… यही भार ही तेरी सारी परेशानियों का कारण है।’
‘मतलब!’ रिन्नी ने चौंक कर पूछा।
‘पहले तूने इन बातों को सुना, फिर सोचा, फिर रात होने तक दिल में रखा ताकि डायरी में लिख सके। परत-दर-परत जमा लिया इन नकारात्मक बातों को अपने अंदर।’
‘तो क्या करूं? भूल जाऊं सब!’
‘हां! भूल जा सब गिले-शिकवे…दिल से निकाल फेंक इन्हें और बिंदास जिंदगी जी। इस तरह घुल-घुल कर जिएगी तो बीमार तो पड़ेगी ही ना!’
इतना कह कर रीता ने डायरी को आग के हवाले कर दिया ।