साहित्य डेस्क
नई दिल्ली। विख्यात शायर मुनव्वर राणा नहीं रहे। पिछले दिनों दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। वे 71 साल के थे। मुनव्वर कई दिनों से संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में भर्ती थे। उनके निधन की सूचना उनके बेटे तबरेज राणा ने दी।
मुन्नवर राणा को काफी समय से गले का कैंसर भी था। कुछ समय पहले उन्हें दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था। फिर उन्हें मेदांता अस्पताल भी ले जाया गया था। कुछ दिन पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था तो उन्हें संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान भर्ती कराया गया था। मुनव्वर लंबे समय से डायलिसिस पर थे। फेफड़ों में संक्रमण भी था, जिसकी वजह से उन्हें वेंटिलेटर पर भी रखा गया था। वहीं उनके गुर्दे में दिक्कत थी।
मुनव्वर राणा को लखनऊ में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। बड़ी संख्या में लोगों ने उनको अंतिम विदाई दी। वे अपने पीछे पत्नी, पांच बेटियों और एक बेटे को छोड़ गए हैं। मुनव्वर ‘मां’ पर लिखी शायरी के लिए मशहूर थे। उनकी शायरी बहुत ही सरल शब्दों में होती थी। उनकी नज्म ‘मां’ की उर्दू जगत में खास जगह है। मुनव्वर ने अपनी खास शैली से लोगों के बीच शायरी को लोकप्रिय बनाया। उनके निधन पर कई साहित्यकारों और लेखकों ने गहरा शोक जताया।
मुनव्वर राणा के निधन पर गहरा शोक जताते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा- तो अब इस गांव से रिश्ता हमारा खत्म होता है…फिर आंखें खोल ली जाएं कि सपना खत्म होता है।
मुनव्वर का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में 1952 में हुआ था। मगर उन्होंने जीवन का बड़ा हिस्सा कोलकाता में बिताया। वे उर्दू के नामचीन शायर थे, मगर वे अवधी और हिंदी शब्दों का प्रयोग खूब करते थे, जिससे वे एक बड़े वर्ग में लोकप्रिय हो गए थे। उर्दू साहित्य में महारत के लिए उन्हें शहीद शोध संस्थान ने ‘माटी रतन सम्मान’ दिया था। 2014 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिलने के बाद इसे लौटा दिया था और कभी भी सरकार की तरफ से कोई सम्मान न लेने की कसम खा ली थी।