जासूस डेस्क
पूरी दुनिया जासूस शेरलॉक होम्स की दीवानी रही। एक दौर गुजरने के बाद बांग्ला लेखक शरदेंदु उपाध्याय ने 1932 में एक ऐसे जासूस को गढ़ा जो शेरलॉक से कम नहीं था। उन्होंने अपने चर्चित पात्र ब्योमकेश बख्शी पर कोई 32 कहानियां लिखीं। एक कहानी अधूरी रह गई। अपनी पहली कहानी से ही शरदेंदु ने स्पष्ट कर दिया कि उनका जासूस सत्य की खोज करने निकला है। यह बात और है कि उसे जासूस कहलाना पसंद नहीं था। उसका मानना था कि उसे सत्यान्वेषी ही माना जाए। इसे लेखक का संकोच कहिए या कुछ और। मगर इसकी वजह तो थी ही।
याद कीजिए शेरलॉक को। उसके साथ हमेशा उसका दोस्त डॉ. वाटसन होता है। जबकि ब्योमकेश का मित्र और सहायक अजित बनर्जी है। यही नहीं शरदेंदु की जासूसी कहानियों में खलनायक डॉ. अनुकूल बाबू कई बार चुनौती देने आता है। एक समय में ब्योमकेश इतना लोकप्रिय हुआ कि सत्यजीत रे ने उससे प्रेरित होकर निजी जासूस फेलुदा का किरदार ही गढ़ लिया।
क्यों चर्चा में आया ब्योमकेश
कई बार जब पुलिस अपनी जांच में ढीली दिखती है, तब या तो सीआईडी या अन्य खुफिया जांच एजंसी अपने काम में जुटती है या कभी-कभी जासूसों की भी मदद ली जाती है। अक्सर इसकी जरूरत पुलिस महसूस करती है। यही वजह है है कि कई लेखक अपराध कथा लिखते समय जासूस को भी ले आए। यह स्थिति पूरी दुनिया में है। भारतीय जासूसी कथा लेखक भी पीछे नहीं रहे। बांग्ला साहित्य में शरदेंदु उपाध्याय अकेले कथाकार हैं जिन्होंने इस जरूरत को समझा और एक सत्यान्वेषी जासूस को जन्म दिया जो चतुर ही नहीं बुद्धिमान भी है। वह अपने दोस्त के साथ शहरों में होने वाले आपराधिक मामलों की जांच तब करता है जब स्थानीय पुलिस उससे मदद मांगती है। आखिर क्यों न हो। वह तार्किक है और सबसे बड़ी बात कि वह फोरेंसिक जांच में सिद्धहस्त है। उसकी नजर से अपराधी बच नहीं पाता।
ब्योमकेश के साथ खड़े रहे शरदेंदु
कोई ऐसा जासूसी कथा लेखक नहीं है जिसने लोगों की आलोचना का सामना न किया हो। वह बीसवीं सदी प्रारंभिक दौर था, जब बंगाल में साहित्यकार और सामान्य जन अपराध कथा और जासूसी साहित्य को हेय दृष्टि से देखते थे। ऐसे समय में शरदेंदु उपाध्याय ने अपने जासूसी पात्र ब्योमकेश को स्थापित किया। यह वही समय है जब उनसे पहले लिख रहे दिनेंद्र कुमार और पंचकोरी डे विदेशी लेखकों से प्रभावित थे। मगर शरदेंदु ने अपने पात्र को देसी परिवेश में ढाला। वह अपनी कहानियों से पाठकों को चौंकाते हैं, तो कभी गुदगुदाते हैं। यही वजह है कि ब्योमकेश को सभी वर्गों के पाठकों का प्यार मिला। यह भी कम दिलचस्प नहीं कि कहानी का अंत जानने के बाद भी पाठक उसे दोबारा पढ़ते। यह क्या कम बड़ी बात है कि महान फिल्मकार सत्यजीत रे भी ब्योमकेश के प्रभाव से बच नहीं पाए।
अकेला नहीं है ब्योमकेश बख्शी
हमने ज्यादातर जासूसों को देखा कि उनका परिवार नहीं है। कई जासूस तो खूबसूरत महिलाओं के फेर में रहे। या फिर अपनी ही सहयोगी को ‘फ्लर्ट’ करते रहे। चंूकि एक बांग्ला लेखक इस किरदार को गढ़ रहा था तो उसे एक गृहस्थ के रूप में भी सामने रखा। यहां ब्योमकेश की पत्नी सत्यवती है तो एक बेटा भी है, जिसका नाम खोका है। यही नहीं ब्योमकेश का एक सहायक अजित भी साथ रहता है। दोनों हर कहानी में साथ रहे। एक यह भी दिलचस्प बात थी कि ब्योमकेश खुद को जासूस कहलाना पसंद नहीं करता था। इसे आप लेखक शरदेंदु का संकोच कह सकते है। उस दौर में इस तरह की कहानियां लिखने की चुनौती थी। शायद इसीलिए उन्होंने ब्योमकेश से यह कहलवाना पसंद किया कि वह जासूस नहीं, सत्यान्वेषी है। कहानियों में करीबी लोग तो उसे ‘सत्यान्वेषी ब्योमकेश’ ही कहते।
टीवी शृंखला से मिली लोकप्रियता
ब्योमकेश किसी लोकप्रियता का मोहताज नहीं। बांग्ला साहित्य में रचा गया यह अनूठा पात्र कई भाषाओं में पढ़ा गया। जासूसी कहानियां पढ़ने वालों के बीच ब्योमकेश जब पहुंचा तो फिर उनके दिलों में घर कर गया। नब्बे के दौर में जब रामायण और महाभारत पर टीवी शृंखला का जादू छा रहा था, तभी ब्योमेश भी सत्य की खोज में उतरा और देखते ही देखते लाखों-करोड़ों दर्शकों में छा गया। यह पहली बार था जब दर्शक हिंदी में कोई जासूसी सीरियल देख रहे थे। शरदेंदु की जासूसी कहानियों से निकला यह पात्र कितना लोकप्रिय हो गया, यह हमने देखा। पर्दे के पीछे ब्योमकेश की भूमिका रजत कपूर से लेकर गौरव चक्रवर्ती, सुशांत सिंह राजपूत और आनंद तिवारी ने निभाई।
एक नजर में आपका ब्योमकेश
आइए जानते हैं ब्योमकेश को निकट से। एक दिन चाइना बाजार के मेस में ब्योमकेश की मुलाकात अजित कुमार बनर्जी से होती है। सत्य का अन्वेषी ब्योम उसे अपना सहायक बना लेता है। उसे हैरिसन रोड पर अपने घर में रहने के लिए कहता है, जहां इसका परिचारक पुतीराम भी है। वहीं ब्योमकेश की पत्नी सत्यवती रहती है। सत्यवती से उसकी मुलाकात कराली चरण बसु की हत्या की जांच के दौरान हुई थी। दरअसल, वह और उसका भाई इस मामले में संदिग्ध हैं। इस मामले में सत्यवती ब्योमकेश से मदद की गुहार करती है। मामले को सुलझाने के दौरान उनके बीच प्रेम हो जाता है। बाद में दोनों शादी कर लेते हैं। उनका एक बेटा भी है। इस प्रसंग का जिक्र शरदेंदु की कहानी ‘अर्थमानार्थम’ में मिलता है।