-संतोषी बघेल

जानती हूं मैं,
मेरी प्रतीक्षा की घड़ियां,
ताउम्र नहीं कम होंगी
तुम नहीं मिलोगे फिर से,
न ही तुम्हारा वो प्यार
फिर से हासिल होगा
मुझे तुमने प्यार के प्रतिदान में,
सिर्फ प्रतीक्षा ही दी है।

प्यार की स्मृतियां ही
तुम्हारे उपहार हैं मेरे लिए,
कभी-कभी जो तुम्हें याद कर
खींच आती है स्मित मेरे चेहरे पर,
यह तुम्हारे बेहद प्यार की निशानी है।

ढेरों किस्से तुमने मुझे
सुनाए थे कभी,
आज भी वे तुम्हारी आवाज में ही
गूंजते रहते हैं जेहन में,
कितनी तकरारें, कितनी नाराजगियां,
झेली हमारे रिश्ते ने,
प्यार इससे और भी निखरा,
रिश्ते में और भी ज्यादा गहराई आई।

खैर छोड़ो,
प्रेम की परिणति चाहे
बिछोह ही रही हो,
नियति में चाहे सिर्फ
तुम्हारी स्मृतियां मेरे हिस्से हों,
किन्तु प्रतिक्षण मेरी प्रतीक्षा
तुम्हारा आह्वान करती है,
माना तुम साथ नहीं हो मगर
तुम्हारे होने का एहसास होता है,
कुछ इम्तिहान अनवरत जारी रहते हैं
इसी में शामिल है तुम्हारी प्रतीक्षा…।

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