जासूस डेस्क
नई दिल्ली। अपने यहां सुरेंद्र मोहन पाठक ने सुनील नाम के पत्रकार को जासूसी करते दिखाया था। इस पात्र पर आधारित उन्होंने कई शृंखला लिखीं। लेकिन बहुत पहले यही काम एक मशहूर अंग्रेज लेखक ने अपने उपन्यास ‘नो आर्किड्स फार मिस ब्लेंडिश’ में किया। इस उपन्यास का एक पात्र अखबार की नौकरी छोड़ कर जासूस बन जाता है। हम बात कर रहे हैं ब्रेबजोन रेमंड की जो कई छद्म नाम से लिखते थे। मगर एक नाम से मशहूर हुए। उन्हें पूरी दुनिया ने जाना। बाद में तो लोग इनके असली नाम ही नहीं, छद्म नाम भी भूल गए। ये थे जेम्स हेडली चेस।

जेम्स ने 38 साल पहले इस दुनिया को अलविदा कहा, मगर रोमांच से भरे उनके उपन्यासों का नशा आज भी तारी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा लोकप्रिय लेखकों में उनका नाम लिया जाता है। उनके उपन्यासों की इतनी अधिक प्रतियां बिकीं कि वे रोमांचक उपन्यासों के ‘बादशाह’ भी कहलाए। उनकी कहानियों में हत्या, अपहरण, जासूसी और डकैती से लेकर धोखा देने वाली स्त्रियां भी हैं। वहीं शराब से चूर हो जाने वाले पुरुष भी हैं।

जासूसी लेखन को खंडहरों से बाहर निकाला
जेम्स हेडली अकेले अंग्रेज लेखक हैं जिन्होंने जासूसी लेखन भूत-पिशाच और खंडहरों से बाहर निकाल कर आधुनिक मनुष्यों के जीवन में घट रही कहानियों को सामने रखा। आप जब उनके उपन्यास पढ़ते हैं तो उसमें रहस्य और रोमांच पैदा करती कहानी मिलती है। जेम्स ऐसा सम्मोहित करते हैं कि लोग उससे बच नहीं पाते हैं। एक खास बात यह थी कि उनके पात्र अफ्रीका और यूरोप से लेकर आस्ट्रेलिया और अमेरिका तक जाते। इसी बहाने पाठकों की सैर हो जाती। रहस्य का पर्दाफाश होने तक आप कहानी में हत्या, डकैती और गैर कानूनी गतिविधियों को तो देखते ही वहीं प्रेम संबंध तथा धोखा भी पाते हैं।

मौत के 38 साल बाद भी कोई नहीं भूला
अपनी मौत के 38 साल बाद भी जेम्स हेडली चेस पर लिखा जा रहा है। उनके 90 उपन्यासों को नए कलेवर में प्रकाशित किया जा रहा है। यही नहीं कई प्रकाशक उनके उपन्यासों के अनुवाद को छाप कर मोटी कमाई कर रहे हैं। बता दें कि चेस के उपन्यासों का सबसे ज्यादा अनुवाद हुआ है। हेडली के 50 उपन्यासों पर फिल्म बनाई जा चुकी है। कुछ फिल्में तो भारत में भी बनीं। ऐसा क्या है हेडली की कहानियों में। दरअसल, हेडली के उपन्यासों को पढ़ते हुए सांसें थम जाती हैं यह सोच कर कि आगे जाने क्या होगा। हेडली अपने उपन्यासों में पूरा एक दृश्य खींच कर रख देते हैं। यही वजह है कि उनके उपन्यास पढ़ने के लिए आज भी नई पीढ़ी पढ़ने के लिए बेताब रहती है।

भारत में भी जेम्स के प्रशंसक
भारत में एक तरफ इब्ने सफी से लेकर वेद प्रकाश शर्मा और ओम प्रकाश शर्मा अपने जिस जासूसी लेखन से साठ से अस्सी के दशक तक छाए रहे। वहीं पश्चिम और यूरोप में अकेले जेम्स हेडली और अगाथा क्रिस्टी धूम मचाए हुए थे। जेम्स के प्रति दीवानगी इस कदर थी कि पाठक ही नहीं भारतीय लेखक भी उन्हें पढ़ रहे थे। हमारे यहां एक उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’ ने जो धमाल  मचाया, कुछ वैसा ही जेम्स रच रहे थे। यही वो दौर था जब यूरोप में उनके उपन्यासों को लोग बस और ट्रामों सफर करते हुए पढ़ रहे थे। जेम्स के उपन्यासों को उनके पाठक संभाल कर रखते थे। उन्हें एक बार पढ़ लेने के बाद जी नहीं भरता था।

सेल्समैन बन गया लेखक
लंदन के इलिंग में 24 दिसंबर 1906 को जन्मे रेने लॉज ब्राबजोन रेमंड यानी जेम्स के पिता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका बेटा एक दिन दुनिया का विख्यात उपन्यासकार बनेगा। वे सेना में कर्नल थे। जाहिर है बेटे के लिए उनका सपना बड़ा ही था। मगर हुआ वही जो कभी सोचा न था उन्होंने। रेमंड की स्कूली पढ़ाई केंट के रोचेस्टर स्थित किंग स्कूल में हुई। मगर अफसोस कि उन्होंने महज 18 साल की उम्र में स्कूली पढ़ाई छोड़ दी। जेम्स बच्चों के विश्वकोश का सेल्समैन बन गए।  कुछ समय बाद वे पुस्तकों के थोक विक्रेता के यहां काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने पाया कि लोग अपराध कहानियां खूब पढ़ते हैं। उन्हीं दिनों जेम्स ने कई उपन्यास पढ़े। इसके बाद उनके मन में भी लिखने की भावना जागी। इस बात का जिक्र मिलता है कि 1938 में गर्मियों के दिनों में उन्होंने ‘नो आर्किड्स फार मिस ब्लेंडिश’ शीर्षक से अपना पहला उपन्यास लिखा। आश्चर्य की बात यह कि यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हो गया कि इसके कई भाषाओं में अनुवाद हुए। कई देशों में इसे पढ़ा गया।  

पहले ही उपन्यास ने बदल दी जिंदगी
जेम्स का पहला उपन्यास ‘नो आर्किड्स फार मिस ब्लेंडिश’ लोकप्रिय तो हुआ, मगर यह विवादों में भी आया। कहते हैं कि ब्रिटेन जिन सिद्धांतों को लेकर दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल हुआ था, यह उपन्यास इसके विरूद्ध था। बावजूद इसके जेम्स के इस उपन्यास की पांच लाख प्रतियां बिकीं। तब जॉन आरवेल ने जेम्स की तारीफ करते हुए कहा था कि यह शानदार लेखन का उदाहरण है। जेम्स के व्यक्तिगत जीवन के बारे में ज्यादा कुछ नहीं मिलता। मगर उनके परिवार में पत्नी सिल्विया और एक बच्चा था। बावजूद इसके जेम्स ने एकाकी जिंदगी बिताई। वे ओपेरा और फोटोग्राफी के शौकीन थे। इससे उनका मूड अच्छा रहता था।

क्यों याद आते हैं जेम्स के पात्र
जेम्स हेडली चेस के कुछ पात्र बेहद चर्चित रहे। उनका सबसे महत्त्वपूर्ण पात्र ‘नो आर्किड्स फार  मिस ब्लेंडिश’ में था। जो एक गरीब नौजवान था। वह एक अखबार का रिपोर्टर था जो अपनी नौकरी छोड़ कर प्राइवेट जासूस बन गया। इसी तरह चेस ने अपने उपन्यास ‘दिस इज फार रियल’ में मार्क गिरलैंड को पात्र बनाया जो पेरिस में रहता है और सीआईए का पूर्व एजंट है। उसे महिलाओं के बीच रहना पसंद है। वह लोगों को बेवकूफ बनाता है। चेस के अगले तीन उपन्यासों में भी यह पात्र आया। इसी तरह उन्होंने हरमन रेडनिज, लू स्लिक, स्टीव हारमस जैसे कई पात्र रचे और लोगों ने उनको पसंद किया। टॉम लेरस्की नाम का एक पात्र चेस को बेहद प्रिय था। डेस्क सार्जेंट चार्ली टेनर को पाठक नहीं भूल पाए। वह पुलिस एफसरों को लगातार कॉफी पिलाता था।

चेस के उपन्यासों पर कई देशों में फिल्में भी बनीं। भारत में ‘देयर इज हिप्पी आन द हाइवे’ पर आधारित फिल्म ‘विक्टोरिया नंबर  203’ बनीं। इसी तरह ‘बाई द टेल’ पर आधारित फिल्म ‘कशमकश’ बनी। जबकि ‘शॉक ट्रीटमेंट’ पर फिल्म ‘जोशीला’ तो उपन्यास ‘द व्लचर इन ए पेशेंट बर्ड’ पर फिल्म ‘शालीमार’ बनाई गई।

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