जासूस डेस्क
नई दिल्ली। बड़ों के लिए कहानियों में जासूस लेकर कई लेखक आए, मगर बच्चों के लिए कहानियों में गिनती के लेखकों ने जासूस पात्रों का चित्रण किया। बच्चों के ये जासूस खल पात्रों से लड़ते और जीत जाते। साल 1975 से 1985 के बीच जिन कुछ कामिक्स ने बाल पाठकों का ध्यान खींचा, इनमें सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज और डोगा के साथ जो सबसे लोकप्रिय था, वह था-राजन इकबाल। उस दौर में बच्चे बाल कहानियां और कामिक्स किराए पर खरीद लाते और चाव से पढ़ते। उन दिनों बाजार में खाट पर बाल पुस्तकें रख कर बेची जातीं। उन दिनों नागराज नाम का एक काल्पनिक सुपर हीरो खूब पढ़ा जाता, जिसे संजय गु्प्ता तैयार करते थे।

किशोरों पर चला जादू
उस दौर में बच्चे बड़े होने पर अपने बेदी अंकल को आज भी याद करते हैं। ये बेदी अंकल थे एससी बेदी, जिन्होंने अस्सी और नब्बे के दशक के बीच राजन इकबाल नाम से ऐसे किरदारों को रचा जो किशोरों में रच-बस गए। यह सबसे अच्छा दौर था जब बच्चों के पास किसी टीवी चैनल का कार्टून नेटवर्क नहीं था। उनके हाथों में मोबाइल नहीं थे। आज पांच साल के बच्चे भी मोबाइल पर वीडियो और रील्स देख रहे हैं।

गुम हो गर्इं बाल पत्रिकाएं
इस लिहाज से सत्तर से नब्बे के दशक कहीं अच्छे थे। तब बच्चे पराग, चंपक, नंदन और मधु मुस्कान जैसी पत्रिकाएं पढ़ते और गलियों में गिल्ली-डंडे से खेलते। यह सुखद दौर था। आज बच्चे कृत्रिम दुनिया में जी रहे हैं और वैसे ही इंसान बनते जा रहे हैं। बच्चे बेशक ‘साबू’ न बनें, लेकिन चाचा चौधरी जैसी तीक्ष्ण बुद्धि वाले भी नहीं बन रहे तो यह दोष परिवार और समाज का है। अफसोस कि बाल पत्रिकाएं भी समय के साथ बिला गर्इं। बच्चे बाल पत्रिकाएं पढ़ते नहीं दिखते।    

हास्य और प्रेम से सराबोर
आज से 40 साल पहले एससी बेदी बच्चों के लिए लघु उपन्यास लिख रहे थे। मगर उनकी राजन इकबाल शृंखला ने तो धूम मचा दी। बच्चों की दुनिया में बाल सीक्रेट एजंट 999 की लोकप्रियता चरम पर थी। यही वजह है कि बच्चों के बेदी अंकल ने जम कर लिखा। अपने जीवन के अंतिम समय तक लिखते रहे। वे करीब 1200 रचनाएं अपने बाल पाठकों को दे गए। बेदी जी के पात्र हमउम्र थे। वहीं इंस्पेक्टर बलवीर, सलमा और शोभा के प्रति बच्चों में एक खास लगाव था।

 किशोरावस्था की ओर कदम बढ़ा रहे बच्चों के मन में रोमानियत के बीज राजन इकबाल की मित्र सलमा तथा शोभा डाल रही थीं। उस दौर के किशोरों का यही कल्पना संसार था। राजन इकबाल इस कल्पना को विस्तार देते। एक अच्छी बात यह थी कि हास्य और प्रेम से सराबोर इन कहानियों में हिंसा नहीं थी। इनमें कानून का राज और सुरक्षित समाज की परिकल्पना थी। निश्चित रूप से लेखक बेदी भविष्य के लिए रचनात्मक समाज  बनाने का सपना भी रच रहे थे।

बहादुर बच्चे चाहते थे अंकल बेदी
एक साक्षात्कार में राजन इकबाल के रचयिता एससी बेदी ने कहा था कि वे चाहते हैं उनके किशोर पाठक बहादुर बनें। इसलिए उनका लक्ष्य उन्हें साहसी बनाना और विविधता में एकता का संदेश देना था। कोई दो राय नहीं कि लेखक इसमें कामयाब रहे। बच्चों ने उनकी लिखी रचनाओं पर बेशुमार प्यार लुटाया। उनके कामिक्स लाखों की संख्या में बिके। उस दौर की पीढ़ी आज भी राजन इकबाल को याद करती है, तो यह लेखक की कामयाबी है।

क्या खास था राजन इकबाल में
बाल कहानियों और कामिक्स की शृंखला के चर्चित लेखक एससी बेदी ने बच्चों के लिए खास तौर से जासूस रचे। वे एक तरह से सीक्रेट एजंट थे। इन दोनों ने कई सालों तक बच्चों का मनोरंजन ही नहीं किया, उनके मन के किसी कोने को समृद्ध भी किया। इस कामिक्स शृंखला में बेदी ने राजन इकबाल नाम से दो किरदार गढ़े जो चंदनगर में रहते हैं। उनके हैरतंगेज कारनामों के दौरान उनकी मित्र शोभा और सलमा भी साथ रहती हैं। यही नहीं उनके जासूसी कार्यों के दौरान इंस्पेक्टर बलवीर नाम का एक पात्र अक्सर उनकी सहायता करता है।

पुनर्जन्म हुआ किरदारों का
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि एससी बेदी के कार्यों को लेखक शुभानंद ने बढ़ाया। वे राजन इकबाल रिबॉर्न सीरीज के तहत बाल कहानियां लेकर आए। इसमें राजन इकबाल को एक बार फिर से जीवित किया गया। इनके माध्यम से शुभानंद ने विविध विषयों को उठाया। इसमें राजन इकबाल की वापसी, राजन की शादी और कब्र का रहस्य चर्चा रहे। इस शृंखला में सात उपन्यास आए। बावजूद इसके बेदी जी की शृंखला अनूठी है। लखनऊ के आलम बाग में अंतिम सांस लेने तक बेदी की रचनाधर्मिता बनी रही। उनका निधन एक नवंबर 2019 को हुआ।

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