जासूस डेस्क
नई दिल्ली। भारत में जासूसी लेखन की सुदीर्घ परंपरा है। क्या ही अजीब बात है कि साहित्य में जहां महिला लेखकों की प्रतिष्ठा है, वहीं हिंदी जासूसी लेखन में वे नजर नहीं आतीं। एक नाम जिसे ज्यादातर पाठक भूल गए वो हैं-गजाला करीम। गजाला देश की पहली जासूसी उपन्यासकार हैं। मगर ऐसा क्या हुआ था कि उन्होंने 16 उपन्यास लिखने के बाद जासूसी लेखन से विराम ले लिया। क्या वजह थी कि संभावनाओं से भरी लेखिका खिन्न मन से लिखना छोड़ देती है। यह हमें जानना चाहिए।

गजाला करीम महज तेरह साल की थीं, तभी लिखना आरंभ कर दिया था। वे मशहूर उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा की शिष्य रही हैं। उन्होंने वेद प्रकाश से जासूसी लेखन का गुर लिया। पात्रों के चयन से लेकर कथानक रचने का कौशल सीखा। यह बात वे खुद भी कहती रही हैं। उनके लिखे को पाठकों ने भी खूब सराहा। मगर मेरठ निवासी इस लेखिका ने कुछ कारणों से लिखना छोड़ दिया तो उनके पाठक खासे निराश हुए। उनकी जब वापसी हुई तो उनके उपन्यास का शीर्षक था-आई कम बैक। यह एक पारिवारिक उपन्यास था। जिसमें एक ऐसे आदमी की कहानी है, जो मुखौटा पहन कर अपनी करतूतों से मानवता को तार-तार कर देता है। इस राक्षस प्रवृत्ति का लेखिका पर्दाफाश करती है।

गजाला के कलम में जादू है। इसे कई लेखक और पाठक मानते हैं। मगर जब एकबारगी लिखना छोड़ा तो एक बड़ा शून्य आया उनके लेखन में आया। क्योंकि उस समय कोई भी महिला लेखक हिंदी में जासूसी लेखन नहीं कर रही थी। मगर कुछ ऐसे हालात बने कि उन्होंने लिखना छोड़ दिया। गजाला खुद कहती हैं कि वे दोबारा कलम नहीं उठाना चाहती थीं, लेकिन शुभचिंतकों ने हौसला बढ़ाया। प्रतिकूल हालात से लड़ने की शक्ति दी।

विरोधियों ने आत्मविश्वास डिगाया
हिंदी साहित्य में गजाला करीम उन चंद लेखिकाओं में हैं जिन्हें बेहद कम उम्र में न केवल ख्याति मिली बल्कि उन्होंने जासूसी लेखन से अन्य उपन्यासकारों का भी ध्यान खींचा। यह निराश करने वाली बात है कि कुछ प्रकाशकों ने गजाला की लेखन प्रतिभा का गलत तरीके से फायदा उठाया। इनके शुरुआती उपन्यासों को किसी और के नाम से छापा। लेकिन उनकी प्रतिभा को प्रकाशक दबा नहीं जा सके। यही नहीं गजाला के उपन्यासों के शालीन शीर्षक तक बदले गए। प्रकाशकों का लालच था कि उत्तेजक शीर्षक से उपन्यास की बिक्री होगी। इन कुछ वजहों से गजाला को बेहद निराशा हुई। उन्होंने आपनी आत्मकथा में जिक्र करते हुए कहा है कि उनके कंटेट के साथ किस तरह छेड़छाड़ की गई। उनकी गरिमा और अस्मिता को ठेस पहुंचाया गया।

अब सफर साहित्य का
गजाला करीम ने मित्रों के हौसला बढ़ाने के बाद अपना नया उपन्यास लिखा। इसके प्रकाशित करने के बाद कहा था कि उनका जासूसी लेखन साहित्य की ओर प्रवृत्त हो रहा है। उन्होंने अपनी वापसी को अविस्मरणीय बताया। उनकी वापसी पर कई लेककों और कुछ प्रकाशकों ने गजाला के उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामना की। यही वजह है कि उनके उपन्यास ‘आई एम बैक’ को खासी तारीफ मिली।
सोलह जनवरी 1988 में जन्मीं गजाला के पिता अब्दुल करीम कारोबारी थे तो मां जाहिदा गृहिणी। हौसले से लबालब युवा लेखिका गजाला का पहला उपन्यास ‘तुरुप का इक्का’ था तो आखिरी उपन्यास ‘लेडी हंटर’। उनके कुछ उपन्यास बेहद चर्चित रहे, जैसे ‘क्वीन आफ नाइट’, ‘ख्वाबों की शहजादी’, ‘कट्टो’, ‘चुलबुली’ और ‘रूप की रानी’। उन्होंने 16 उपन्यास लिखे।

किस्से कहानियां पढ़ने पर हुई पिटाई
गजाला को बचपन से किस्से-कहानियां पढ़ने का बहुत शौक था। इस कारण मां ने पीटा भी था। यहीं नहीं उनकी स्कूल में भी पिटाई हुई। मगर जो भी हो, पढ़ने की इस आदत ने उन्हें समृद्ध किया। इससे उनके लेखन की बुनियाद पड़ी। इसमें उनके पिता का भी सहयोग भी मिला। यही वजह है कि उन्होंने 2005 से 2010 के बीच जम कर अपराध साहित्य लिखा। उपन्यास ‘आई कम बैक’ के बाद गजाला ने वंस अगेन शीर्षक से एक और उपन्यास लिखा।
कोई दो राय नहीं कि बीते करीब दो दशक में हिंदी में जासूसी लेखन करती गजाला करीम ही दिखीं। वैसे अंग्रेजी में जिन महिला लेखकों ने लिखा, उनको भी याद किया जाना चाहिए। इनमें सबा खान, रुनझुन सक्सेना, मंजरी प्रभु, शर्मिष्ठा राय, मधुलिका लिड्डल, सुपर्णा चटर्जी, अनिता नायर और अम्बई प्रमुख हैं।

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