-अतुल मिश्र
चुनाव-प्रचार के दौरान नेताओं को इतनी फुर्सत भी नहीं होती कि वे चैन से सांस भी ले सकें। मीडिया-प्रभारी की तरह उनकी सांसें भी कोई सांस-प्रभारी लेता है। यह एक ऐसा प्रभार है, जो हर किसी को नहीं दिया जाता। इसके लिए बेहद नजदीकी चमचा चुना जाता है, क्योंकि यह एक संवेदनशील मसला होता है। सही वक़्त पर पूरी सांसें लेना भूले नहीं कि नेताजी धराशायी हुए।
जब मैं भाषण के दौरान यह कह रहा था कि जब तक हम आतंकवाद को जड़ से नहीं मिटा देते, चैन की सांस नहीं लेंगे, उस वक़्त क्या तुम मेरी तरफ से सांस लेना भूल गए थे? सांस-प्रभारी से नेताजी ने डांट कर सवाल किया।
नहीं सर, उस वक्त तो मैं खासतौर से आपकी सांसें तेजी से ले रहा था कि कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए, अपनी सांसों की परवाह किए बिना नेताजी की सांसों का प्रभार स्वीकारने वाले चमचे ने अपने वक्तव्य में पूरी ईमानदारी से काम लिया।
फिर मुझे ऐसा क्यों लगा कि मेरी सांस रुक सी गई है?
ऐसे बयान देते वक़्त तो अच्छे-अच्छों की सांसें रुकती सी महसूस होती हैं, सर। और फिर आप तो इसी मुद्दे को लेकर इस बार चुनाव लड़ रहे हैं, सांस-प्रभारी ने नेता को अपना असली मुद्दा याद दिलाया।
तुम अपनी सांसें कब लेते हो? चुनाव-प्रत्याशी नेता ने पूछा।
आपकी सांसों से फुर्सत ही कहां मिलती है सर, जो मैं अपनी सांसें भी ढंग से ले सकूं? सांस-प्रभारी बोला।
तुम्हारी सांसें रुक गर्इं, तो मेरी सांसें कौन लेगा फिर?
उसके लिए मैंने अतिरिक्त सांस-प्रभारी के पद पर एक अन्य पार्टी-कार्यकर्ता को तैनात कर दिया है। नेता के प्रति अपनी पूरी निष्ठा प्रदर्शित करने के लिहाज से सांस-प्रभारी ने बताया।
लेकिन वह तो खुद सांस का मरीज है, वो मेरी सांसें क्या लेगा?
और कोई इस अतिरिक्त प्रभार के लिए राजी ही नहीं था।
उसे इस प्रभार से हटाओ, वरना मैं मारा जाऊंगा।
देख लो, सर। आपकी सांसों के अलावा बीच-बीच में जब मैं अपनी सांसें लेता था, तब आपकी सांसों का प्रभार मैं शुरू से ही उस को दे दिया करता था, सांस-प्रभारी ने हकीकत बयान की।
मीडिया सूत्र बताते हैं कि इतना सुनते ही नेताजी की सांस उखाड़ने लगी और इसका इल्जाम विरोधी पार्टी पर लगाने के बाद नेताजी को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।