-घनश्याम मैथिल ‘अमृत’

जैसे ही मस्जिद के लाउडस्पीकर से तेज आवाज में अजान शुरू हुई, पास ही बने मंदिर में बैठे पुजारी पंडित रामदीन बुरा सा मुंह बना कर अपने भक्तों से बोले-‘सदियों पहले कबीर ने क्या खूब कहा था, कांकर पाथर जोड़ि के मस्जिद लई बनाय, ता चढ मुल्ला बांग दे ,बहरा हुआ खुदाय।’  

‘हां-हां आप बिलकुल ठीक कह रहे हो पंडित जी’, एक चेला बोला।

‘हां, इनको कौन समझाए, जरा विचार तो करना चाहिए’, पंडित जी ने चिंतित स्वर में कहा।

थोड़ी देर में ही पंडित जी अपने भक्तों के साथ ऊंचे स्वर में मंदिर पर लगे भोंपू से आरती का पाठ करने लगे।  

तभी मस्जिद में बैठे मौलवी करीम साहब कड़वा सा मुंह बना कर अपने साथी नमाजिÞयों से बोले-‘कमाल के थे कबीर, जिन्होंने कहा था, पाहन पूजै हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़ याते तो चक्की भली,पीस खाय संसार।’

‘जी जनाब, आपने एकदम दुरुस्त फरमाया’, वहां उपस्थित एक नमाजी बोला।

‘खैर, छोड़िए इनको कौन समझाए कि यूं पत्थर की मूर्तियों के सामने सिर पटकने और शोर मचाने से मालिक की इबादत नहीं होती’, मौलवी करीम ने कहा।

इस मंदिर और मस्जिद के बीच बने चबूतरे पर बैठा एक फकीर धीमे-धीमे स्वर में अपने इकतारे पर गा रहा था-‘चींटी के पग घुंघरू बाजे तो भी साहिब सुनता है।’

-इस कंटेट के लिए तस्वीर प्रतीकात्मक

(भोपाल के घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ लघुकथा लेखक हैं)

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