-अतुल मिश्र

हमारे कानों पर दो मच्छर थे, जो अपने फर्ज पूरे करने के लिए भिनभिना रहे थे। सोने से पूर्व की सही भूमिका बनाने के लिए हमने कई किस्म की परिवर्तनीय करवटें भी लीं, लेकिन यह मच्छर कमबख्त न जाने किस जिद में थे कि टीवी के विज्ञापनों में जापानी शक्ल की मच्छर गपकने वाली मशीन स्विच-बोर्ड पर लगी हम पर हंसती नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे मच्छरों से मशीन ने कुछ ‘सेटिंग’ कर रखी है। तमाम मच्छर उस मच्छरमार मशीन का शुक्रिया अदा करने उसके आसपास भी आ-जा रहे थे। एक मच्छर दूसरे से कह रहा था-
‘आदमी की नीयत अगर यूं ही इस मशीनी दवा की तरह खराब रही, तो हमारा कोई शरीर-बांका भी नहीं कर सकता।’

‘वो तो सही है, मगर तू इस आदमी के कान की सुरंग में मत चले जाना। इसने अगर अपने कान पर हाथ रख लिया, तो तू वहीं घुट कर मर जाएगा। यह आदमी ऐसा कई बार कर चुका है।’ दूसरे मच्छर ने हमारी शरारत के घातक परिणामों की ओर इशारा करते हुए उसे याद दिलाया।        

‘तुम से ज्यादा मुझे पता है इसके बारे में। काने मच्छर की महबूबा उसी सुरंग में जाकर मरी थी। बाद में उसकी लाश बड़ी अस्त-व्यस्त हालत में इसके बिस्तर पर पड़ी मिली। बेचारी नगर-निगम के दवा न छिड़कने का अभी और फायदा उठा सकती थी। उम्र ही क्या थी अभी उसकी’, काने मच्छर की महबूबा के प्रति अपनी हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करते हुए पहला मच्छर हमारे कान के पास से सरक लिया।

‘काने मच्छर की महबूबा से तुम्हारे भी तो कुछ ताल्लुकात रहे थे पहले? उसके बच्चे कौन से इलाके में हैं आजकल’, दूसरे मच्छर ने काने मच्छर की महबूबा से पहले मच्छर के नाजायज संबंधों का पुनर्स्मरण करते हुए ऐसे पूछा, जैसे कोई बहुत हो गोपनीय तथ्य उजागर कर रहा हो।

‘तो क्या हुआ? कौन नहीं था उसके पीछे? तुम भी तो वोटिंग लिस्ट में चल रहे थे’, काने मच्छर की महबूबा के आशिकों की पूरी सूची सुनाए बिना पहले मच्छर ने दूसरे मच्छर का मुंह बंद किया और उड़ कर मच्छरमार जापानी मशीन का शुक्रिया अदा करने उसके ऊपर आकर बैठ गया।

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