अंजू खरबंदा

‘अरे दिशा बिटिया, कल लड़के वाले आ रहे हैं तुझे देखने…अच्छे से तैयार हो जाना, वह गुलाबी शिफॉन वाली साड़ी ही पहनना, खूब जंचती हो तुम उस साड़ी में’
मां अपनी ही रौ में बोले चली जा रही थी

‘एक बार भी नहीं पूछा कि मैं क्या चाहती हूं।’ दिशा मन ही मन कुनमुनाई।

‘मां…! ‘हिम्मत कर कुछ कहने ही जा रही थी कि मां ने अगली हिदायत दे डाली-
‘सुन… अपनी किसी सहेली को न बुला लेना। याद है न, वर्मा जी की बेटी ऋचा को देखने आए थे तब उसने अपनी सहेली को बुला लिया था और लड़के वालों को ऋचा से ज्यादा उसकी सहेली पसंद आ गई।’

दिशा मुंह बाए सुनती रही।

‘दिशा, वो क्या कहते है बेटा! वो जो मुंह पर क्रीम लगाकर गोरे चिट्टे दिखते हैं न, वह भी लगा लेना।’

‘मां… मैं कोई शो पीस नहीं हूं जिसे बढ़िया पैकिंग करके लोगों को लुभाने के लिए शोकेस में सजा दिया जाए। आप शायद भूल गईं लड़कियां इंसान होती हैं कोई कठपुतलियां नहीं।’
उसका दिल किया चीख-चीख कर कहे, पर पलंग पर बैठी दोनों छोटी बहनों को बड़ी होते देख उसकी आवाज गले में ही घुट कर रह गई।

 तस्वीर : प्रतीकात्मक। एक्स से सभार।

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