– रागिनी

नव वर्ष की दस्तक देती नई नवेली जनवरी सूर्यास्त की गोद में जा छुपी है। अब यह हमारी स्मृतियों के कारागृह में हमेशा के लिए दर्ज हो गई है। अनादि काल से कर्मपथ पर अग्रसर मनुष्य सूर्योदय व सूर्यास्त के साथ ही अपनी  कार्य अवधि पूरी कर लेता है। अगले दिन की भोर का क्रम उसकी चेतना को विश्रांति के लिए सजग कर देता है।

नव वर्ष का आगमन उत्सव सरीखा होता है। उत्साह संकल्प और आरंभ से जीवन नई ऊर्जा के पथ पर चल पड़ता है। पिछले दुख और निराशा की कड़ियां ढीली पड़ने लगती हैं। तीन-चार माह से अपने वैभव से बगीचे की शोभा बढ़ाते गेंदा और गुलदाउदी अब भी मन मोह रहे हैं, लेकिन जनवरी इनकी विदाई का संकेत दे गई। गांव में ठंड आकर भी नहीं आती। प्रत्येक भोर हमारे अन्नदाता को खेत का रास्ता दिखा देती है जहां वे हमारे लिए जतन करते हैं।

प्रत्येक मौसम में परिश्रम करने की उनकी मजबूती ही हमें वास्तव में धन धान्य से पूर्ण करती है। सच पूछिए तो यही हमारे धरती के भगवान हैं जो बिना भेदभाव कर्मरत हैं। आधे-अधूरे कपड़ो में बाहर खेलते, स्कूल जाते और अपने हिस्से का काम करते बच्चे मानो ठंड से आंखमिचौली ही खेलते जान पड़ते हैं। मात्र जलता हुआ अलाव ही इनका एकमात्र हथियार है लड़ने का।

बहुधा ग्राम्य जीवन अभाव में भी अपना स्वभाव नहीं खोता। उनकी शाम और सुबह पर मौसम अपना राग नहीं अलापता। इधर शहर की गति शीत के तमाम पहरेदारों के बावजूद थोड़ी मंद हो जाती है। पश्चिमी भाग में अभी सूरज अपने उग्र रूप में ही है बस सुबह-शाम की ठंडी हवाओं ने ठंड का एहसास भर दिला दिया है। कुछ हिस्सों में शीत से जंग अभी जारी है बावजूद इसके फरवरी की भोर कुनमुनाने लगी है।

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