अतुल मिश्र

जासूसी का इतिहास ठीक उतना ही पुराना है, जितना कि मानव की सभ्यता का इतिहास। उसकी असभ्यता का कोई इतिहास न होने की वजह से जासूसी का जो इतिहास है, वो भी सभ्यता-प्राप्ति के साथ ही माना जाएगा। इससे पहले लोग जासूसी में रुचि  रखते थे या नहीं, यह भी अभी तक किसी गैर राष्ट्रवादी इतिहासकार को ज्ञात नहीं हो सका है, तो यह हमें कैसे ज्ञात हो सकता है।

प्रस्तर-युग में पत्थर से आग जलाने की तकनीक हासिल करने से लेकर शिकारियों की गुफाओं में उपलब्ध भोजन की जानकारी हासिल करने तक सभी में जासूसी की जरूरत थी। आज के ‘हनीट्रैप’ की तरह इस क्षेत्र में महिलाएं भी शामिल की जाती थीं, ताकि उनके द्वारा मुफ्त में शिकार हासिल करने के लिए दूसरे समूह की पुरुष-शक्ति को साम, दाम और दंड, भेद से क्षीण किया जा सके।

सभ्य होने के बाद भी आदमी ने अपनी असभ्यता नहीं छोड़ी। वह उसके मूल संस्कारों से हमेशा जुड़ी रही। बाद में इसे हमने भारतीय संस्कृति से जोड़ कर दुनिया को यह संदेश भी दे दिया कि हम तो ऐसे ही हैं और ऐसे ही रहेंगे। आज से ढाई हजार साल पहले चाणक्य ने जासूसों की एक फौज बना रखी थी, जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत आदमियों की असभ्यताओं के फायदे उठा कर उनकी सूचनाएं चाणक्य को दे दिया करती थी। इसी आधार पर ईडी जैसी संस्थाएं चंद्रगुप्त मौर्य के विरोधियों को धूल चटाने का महत्वपूर्ण कार्य करती थीं। न्यायालय भी चूंकि चाणक्य ने अपने हाथ में ले रखा था, इसलिए न्याय भी तत्काल ही मिल जाता था। यद्यपि बाद में कुछ लोग इसे अन्याय ही बोलते थे, लेकिन इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता था।

प्रस्तर-युग में शिकार को गए आदमी की बीवी उस पर पूरी नजर रखती थी। उसे शक रहता था कि वह शिकार के बहाने किसी शिकारवाली की नजरों का ‘शिकार’ न हो जाए। लिहाजा वह या तो खुद भी शिकार के लिए अपने पति के साथ जाती थी या अपने बच्चों को उसके साथ भेजती थी। इसलिए कुछ इतिहासकार औरत को इस पृथ्वी के सबसे पहले जासूस के रूप में देखते हैं। अपने पति पर हमेशा शक की सुई घुमाने वाली पत्नी निश्चित रूप से उस काल की सर्वश्रेष्ठ जासूस रही होगी। धीरे-धीरे शक का यह कीड़ा आदमी में भी प्रविष्ट कर गया होगा और वह भी अपनी पत्नी पर शक करने के लिहाज से उसकी जासूसी करने लगा होगा कि जब पत्नी शक कर रही है, तो हम क्यों न करें।

एक जमाना था, जब टीवी पर धारावाहिक ‘करमचंद जासूस’ सीरियल आता था और जिससे दर्शकों को यह पता चलता था कि किसी भी अच्छे जासूस के लिए गाजर खाना उतना ही जरूरी है, जितना बीवियों का अपने पतियों पर शक करना। इसके बिना किटी जैसी सुंदर सेक्रेटरी होने के बावजूद पंकज कपूर जैसा जासूस नहीं बना जा सकता। गाजर हर ताकतवर जासूस की जान होती है। ऐसा मूली के साथ बिल्कुल नहीं है। उसे खाने के बाद भीड़ के बीच मजाक तो बना जा सकता है, मगर गाजर खाने वाले करमचंद की तरह जासूस कतई नहीं।

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