जब मन में भाव उमड़ते हैं तो शब्दों के माध्यम से कागज पर उतरते हैं। उन शब्दों को पढ़ कर फिर कुछ भाव उमड़ते हैं, तब मन में विचारों की न जाने कितनी रश्मियां चमक उठती हैं। लेखिका रश्मि वैभव गर्ग अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘अंतर रश्मियां लेकर पाठकों के बीच उपस्थित हुई हैं। इसमें उन्होंने समाज और जीवन की विसंगतियों पर कुछ भाव रखे हैं। उनका कहना है कि यह उनकी अंतस में निहित अंतर रश्मियां हैं।
‘अंतर रश्मियां’ मूलत: भावों का संग्रह है। उसमें भावों पर आधारित छोटे-छोटे नोट्स हैं। रश्मि अपनी भूमिका में लिखती हैं कि यह पुस्तक अध्यात्म से जीवन देखने का नजरिया है। क्योंकि जीवन कभी भी सम नहीं चलता। सुख-दुख जीवन के हिस्से हैं। कठिन समय में अस्तित्व की खोज ही जीवन है। वे कहतीं हैं कि उनकी यह पुस्तक ऐसे ही भावों को शब्दों में पिरोने की कोशिश है जो भाव शब्दों को स्पर्श नहीं कर पाते।
रश्मि अपने विचारों और भावों को बेबाकी से अभिव्यक्त करने के लिए जानी जाती है। अपनी 120 पेज की पुस्तक ‘अंतर रश्मियां’ में विचारों के ऐसे नोट्स हैं जिसमें उन्होंने समाज के लोगों के मनोभावों को प्रस्तुत किया है। यह एक सार्थक प्रयास है। लेखिका समाज की धड़कन को महसूस करती हैं। वे जीवन के श्वेत-श्याम को सामने तो रखती ही हैं, मगर वे जीवन का सार रखते हुए आध्यात्मिक हो जाती हैं।
रश्मि गीता को जीवन का सार बताते हुए लिखती हैं कि गीता का हर पात्र हमारे भीतर मौजूद है और हमारे इर्द गिर्द भी। गीता अध्यात्म एवं एकांत से जोड़ती है जो हमारे अंतस की आवाज है। जीवन भी एक कुरुक्षेत्र है जहां कृष्ण भी हम हैं और अर्जुन भी हम हैं। कृष्ण चाहते तो युद्ध लड़ कर अर्जुन को विजयश्री दिला सकते थे, लेकिन वह यह संदेश देना चाहते थे कि जीवन संग्राम में स्वयं लड़ना पड़ता है। वे ‘कृष्ण एक संदेश अनेक’ लिखते हुए श्रीकृष्ण के माध्यम से स्पष्ट करती हैं कि बुरा करने वाला अपना ही क्यों न हो उसका अंत निश्चित है।
रश्मि वैभव गर्ग अपनी पुस्तक में बताती हैं कि आज मुखौटा ओढ़े जी रहे लोगों का क्या हाल है? हमें अपनी परेशानी छुपाने के लिए मुखौटा पहनना पड़ता है। अपने ही दिल से छल करना पड़ता है। हम एक नहीं, कई मुखौटे पहनते हैं। हमारा जीवन सर्कस के जोकर की तरह है, खुश हों या न हों, खुश होने का दिखावा जरूरी है। लेखिका ने जीवन के हर पहलू पर और हर भाव पर लिखा है। वे परत के नीचे की परत उधेड़ती हैं। वे पाठकों के मन के कपाट खोल देती हैं। वे लिखती हैं कि घर के बंद दरवाजे तो वफादार होते हैं। इसलिए अंतस के दरवाजे खोल कर हमें आत्म चेतन को खोलना है।
आध्यात्मिकता मनुष्य को सहज कर देती है और संतुष्ट भी। रश्मि मानती हैं कि संतुष्टि सफल जीवन की कुंजी है। आप जो •ाी हैं अपने आप में अद्वितीय हैं। किसी से स्पर्धा नहीं होना चाहिए। क्योंकि जो बीत गई सो बात गई। बीता हुआ वापस नहीं आता। इसलिए आगे बढ़ना भी जीवन है। रश्मि वैभव गर्ग की यह पुस्तक प्रेरक है। यह सिर्फ नसीहत ही नहीं, दिशा भी देती है।
पुस्तक : अंतर रश्मियां
लेखिका : रश्मि वैभव गर्ग
प्रकाशक : इंक पब्लिकेशन
मूल्य : 220 रुपए