नई दिल्ली। क्या अपने कभी केशव पंडित का नाम सुना है? वैसे जासूसी उपन्यास पढ़ने वाले इस नाम से अनजान न होंगे। प्रसिद्ध उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा का यह चर्चित किरदार अक्सर उनके उपन्यासों में दिखा। नीली आंखों वाला यह जासूस ‘चारमीनार’ सिगरेट पीता था। कुछ तो खास था उसमें। जो लोग इस जासूस को जानते हैं, उनको पता है कि वह खुद में ‘वनमैन आर्मी’ था। वह कानून की हिफाजत के लिए देशद्रोहियों और समाज के दुश्मनों को मारने से पीछे नहीं हटता था। यही वजह है कि केशव पंडित अपने पाठकों में लोकप्रिय हो गया।

अब आप प्रकाशकों का तमाशा देखिए। इस पात्र की प्रसिद्धि का फायदा उठाते हुए उन्होंने इसे लेखक के रूप में प्रस्तुत किया। कम से कम तीन प्रकाशकों ने केशव को लेखक ही बना डाला। संयोग से ये तीनों प्रकाशक उस मेरठ के थे जहां इस पात्र के मूल लेखक वेद प्रकाश शर्मा भी रहते थे। यह भी कम अचरज की बात है कि कुछ लेखक भी केशव पंडित के नाम से मैदान में उतर गए। पाठक इसे मूल लेखक मान कर गफलत में पढ़ते चले गए।

केशव के नाम पर डेढ़ सौ उपन्यास
हद तो तब हो गई जब वेद प्रकाश शर्मा के वास्तविक किरदार से अधिक केशव पंडित नाम से लिख रहे छद्म लेखकों की रचनाओं को पढ़ा जाने लगा था। हैरानी होती है कि केशव के नाम से कोई डेढ़ सौ उपन्यास छपे और लोगों ने पढ़े भी। इनमें खून से सनी वर्दी, सोलह साल का हिटलर, नसीब वाला गुंडा और सुहाग की हत्या इत्यादि चर्चा में रहे। टीवी चैनल जी टीवी पर केशव पंडित के नाम से एक धारावाहिक भी आया था।

 अपराधियों का दुश्मन केशव पंडित
यह भी कम दिलचस्प नहीं कि नीली आंखों वाले केशव ने कभी कानून की पढ़ाई नहीं की, मगर बड़े-बड़े वकीलों के तर्कों की काट अपने पास रखता है। उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा ने अपराध की दुनिया में आ रहे बदलावों के बारे में बताया, वहीं पुलिस तथा जासूसों के सामने आ रही चुनौतियों तथा समाधान को अपने प्रिय पात्र केशव के माध्यम से सामने रखा। यही वजह है कि केशव अपराध की न केवल जटिल गुत्थियां सुलझाता है बल्कि अपराधियों को भी ठिकाने लगा देता है।

जब वेद प्रकाश उतरे मैदान में
अपने पात्र की लोकप्रियता को देखते हुए मूल लेखक वेद प्रकाश शर्मा ने केशव पंडित शीर्षक से एक उपन्यास लिखा। इसे पाठकों ने नोटिस में लिया। केशव पंडित की वजह से वेद प्रकाश के कई उपन्यास हाथों-हाथ बिके। पुराने लोग बताते हैं कि इन उपन्यासों को खरीदने के लिए उन्हें अतिरिक्त पैसे देने पड़ते थे। नतीजा यह हुआ कि इस किरदार को न केवल लेखकों ने बल्कि प्रकाशकों ने भी खूब भुनाया। शायद ही किसी पात्र को इतना भुनाया गया होगा। यही नहीं प्रकाशकों ने किसी गौरी पंडित के नाम पर केशव पंडित शृंखला लिखवाई। दिलचस्प यह कि इस छद्म लेखक के भी चौदह-पंद्रह उपन्यास आए और बिके भी।

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