नई दिल्ली। अपने सदाबहार गीतों से करोड़ों श्रोताओं के दिलों पर बरसों से राज कर रहे गीतकार-कवि और शायर गुलजार को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। प्रख्यात कहानीकार प्रतिभा राय की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने जगतगुरु रामभद्राचार्य को भी ज्ञानपीठ से सम्मानित करने की घोषणा की है।

गुलजार को भारतीय ज्ञानपीठ देने के एलान से उनके प्रशंसकों में खुशी की लहर दौड़ गई है। सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजे जा चुके गुलजार ने अपनी रचनात्मक यात्रा बलराज साहनी की फिल्म ‘काबुलावाला’ से की थी। उन्हें कई कर्णप्रिय गीतों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। कला क्षेत्र में उनके योगदान के लिए गुलजार को भारत सरकार ने 2004 में गुलजार को पद्मभूषण से सम्मानित किया था। वहीं हिंदी सिनेमा में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दादा साहेब पुरस्कार दिया गया था। जबकि उर्दू साहित्य के लिए उन्हें 2002 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला था।

गीतकार के रूप में गुलजार का कार्य अविस्मरणीय है। उनके लिखे कई गीतों में हम सभी जीवन दर्शन को महसूस करते हैं। गीत ‘आने वाला पल जाने वाला है’ या ‘मुसाफिर हूं यारों घर है न ठिकाना’, ऐसे गीत हैं जो यह बताते हैं कि यह जीवन एक यात्रा है। जहां हम रह रहे हैं वह घर अस्थायी है। आपको एक दिन यहां से जाना है। इसी तरह ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले…’ या ‘तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं…’ सुन कर हर कोई भावुक हो उठता है।

दो वक्त की रोटी के लिए मैकेनिक का काम कर चुके संपूरन सिंह कालरा यानी गुलजार ने विमल दा से लेकर हृषिकेश मुखर्जी जैसे फिल्मकारों के साथ काम किया। बाद में उन्होंने सिनेमा में खुद को स्थापित किया। उन्होंने कुछ चर्चित फिल्मों यथा मौसम, आंधी, परिचय, कोशिश, खुशबू और परिचय  का निर्देशन किया। इसके अलावा गुलजार ने कई फिल्मों के लिए पटकथा भी लिखी। गुलजार ने गीतों को, शायरी को और फिल्म-साहित्य को भी अपने लेखन से गुलजार किया है। 

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