नई दिल्ली। बंगाल में जासूसी कहानियां बेहद लोकप्रिय रही हैं। इसका प्रारंभ बकाउल्लाह और प्रियनाथ मुखोपाध्याय ने किया था। जासूसी लेखन का अध्ययन करने पर पता चलता है कि ज्यादातर बंगाली लेखकों ने जासूसी शृंखला लिखी। कितने दशकों तक कुछ जासूसी पात्रों को न केवल बंगाल बल्कि उससे बाहर भी पढ़ा गया। मगर फेलु दा नाम का जो जासूस छाया, वह बरसों तक लोगों के जेहन में बना रहा। उसके बाद शरदेंदु उपाध्याय के जासूस पात्र ब्योमकेश बख्शी ने खूब धूम मचाई।

कैसे जन्म हुआ फेलु दा का
फेलु दा के रचयिता मशहूर लेखक और फिल्मकार सत्यजीत रे थे। फेलु दा का असली नाम प्रोदोष चंद मित्र है। उसका चचेरा भाई तोपषे उसके साथ रहता है। ये दोनों ही पात्र आर्थर कानन डायल के प्रसिद्ध पात्र शेरलॉक होम्स और जॉन वॉटसन से प्रेरित है। इसकी पहली कहानी 1965 में आई। सत्यजीत रे ने फेलु दा पर 55 कहानियां लिखीं। कई उपन्यास भी लिखे। ये सभी बच्चों की पत्रिका ‘संदेश’ में छपे। रे लगातार लिखते रहे। ‘संदेश’ पत्रिका सत्यजीत रे के दादा उपेंद्र के प्रकाशन ‘यू रे एंड संस’ से निकलती थी। कहते हैं खुद सत्यजीत रे ने भी अपनी लेखकीय यात्रा यहीं से शुरू की।

‘संदेश’ पत्रिका जब प्रकाशन की दौड़ में पिछड़ गई तो सत्यजीत बाबू ने इसे फिर से खड़ा करने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने जासूसी शृंखला ‘फेलुद्दार गोयेनदागिरी’ यानी जासूस फेलु दा की जासूसी कथा शुरू की। इसके साथ कई और कहानियों की शृंखला भी लिखी। एक बार प्रमुख बंगाली पत्रिका ‘देश’ के संपादक सागरमय घोष ने सत्यजीत रे से वयस्क संस्करण मांगा। मगर रे ने उनको हंस कर टाल दिया। जब वे नहीं माने तो घोष उनके घर की सीढ़ियां चढ़ते हुए किसी तरह पहुंचे। इस बार सत्यजीत बाबू उनका आग्रह टाल नहीं सके। इस तरह 1970 में ‘गंगतोक में संकट’ शीर्षक से वह कहानी आई जिसमें फेलु दा वयस्क था। लेखक ने फेलु दा के परिवार को पूर्व बंगाल में ढाका के सोनादिधी गांव का निवासी बताया।

शेरलॉक का दीवाना फेलु दा दीवाना
फेलु दा की सारी कहानियां उसके चचेरे भाई तोपषे के नजरिए से लिखी गई। यह बच्चा अपने बड़े भाई फेलु दा की तार्किकता और नतीजों तक पहुंचने की कला से हैरत में पड़ जाता था। एक कहानी है- ‘लंदन में फेलु दा’। यह 1989 में आई थी। इस कहानी में वह शेरलॉक होम्स संग्रहालय जाता है। वहीं वह मानता है कि अगर शेरसॉक नहीं होता तो वह कभी जासूस नहीं बन पाता। सत्यजीत रे ने फेलु दा की कहानियों में अक्सर कलकत्ते का उल्लेख किया है। फेलु दा रहस्यपूर्ण मामलों की गुत्थी सुलझाने अक्सर घूमने की जगहों पर निकल जाता। कभी-कभी वह छुट्टियां मनाते हुए आपराधिक मामले सुलझाता है। वह किसी मामले को सुलझाने के लिए खुद को दुनिया से अलग कर देता है। वह इंसाफ पसंद इंसान है।

यह जासूसी पात्र इतना सशक्त था कि सत्यजीत रे इस पर फिल्म भी बनाई। कोई दो राय नहीं कि फेलु दा को बंगाल का हर पढ़ा लिखा शख्स जानता है। उन पर लिखी कहानियों का अंग्रेजी अनुवाद आने पर दूसरी भाषाओं के पाठकों ने भी पढ़ा। इसलिए फेलु दा के बारे में जानना आसान हो गया।

साधारण शख्स, असाधारण कारनामे
सत्यजीत रे ने फेलु दा नाम के इस किरदार को बिल्कुल अलग तरीके से गढ़ा था। वह दुनिया के बाकी जासूसों की तरह नहीं। वह न तो कोई हैट पहनता है और न ही उसका स्टाइल है। वह साधारण सा धोती-कुर्ता पहनने वाला इंसान है, लेकिन वह शेरलॉक होम्स की तरह तेज दिमाग रखता है। उसके संवाद भी दिलचस्प होते। वह अपने असाधारण कारनामों से देखते ही देखते चर्चित हो गया। पहले वह कहानियों में आया और फिर उपन्यासों में आया। 

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *