-अतुल मिश्र
‘तुम किसी काम के आदमी नहीं हो।‘ नेता की पत्नी ने उसका एक ऐसा प्रमाणपत्र जारी किया, जिसमें कि उसके आदमी होने पर संदेह जाहिर होता हो कि वह आदमी है भी या नहीं। ‘मैं आदमी नहीं, नेता हूं।’ आदमी जब आदमी कहलाने लायक नहीं रहता, तो वह नेता बन जाता है, यह सिद्ध करने की गरज से नेता ने अपना बयान दिया।
‘नेता भी तो तुम ढंग से नहीं बन पाए।’ जो व्यक्ति आदमी नहीं बन सकता, उसके नेता बनने पर पत्नी ने आपत्ति दर्ज की।
‘क्या नहीं दिया मैंने तुम्हें? बंगले, कारें, ड्राइवर और तमाम नौकर-चाकर किसके लिए हैं?’ प्रश्नवाचक-मुद्रा में नेतागीरी की अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए नेता ने सवाल किया।
‘स्विस बैंकों में जब तक तुम्हारे चार-छह अकाउंट नहीं खुल जाते, यह जनता भी तुम्हें बड़ा नेता नहीं मान सकती। विपक्ष की सरकार बनी, तो किस मुंह से तुम स्विस बैंकों में अपना काला धन दिखाओगे?’ नेता की पत्नी ने अपनी वह चिंता जाहिर की, जिससे नेता का सोशल स्टेटस बनता है कि देश के लिए उसने क्या किया।
‘इस बार अगर चुनाव जीत गया, तो तुम्हारी यह हसरत भी मैं पूरी कर दूंगा।’ पत्नी की तमाम हसरतें पूरी करने के बाद उसकी यह आखिरी हसरत भी पूरी करने के मुगालते में नेता बड़बड़ाया।
‘तुम्हारा जीतना मुझे मुश्किल लग रहा है, क्योंकि कोई फिल्म-स्टार तुम्हारे चुनाव में शामिल नहीं है।’ जनता नेताओं को कम और फिल्म-स्टारों को ज्यादा वोट देती है, इस सर्वविदित तथ्य से पत्नी ने नेता को अवगत कराया।
‘अमिताभ बच्चन के डुप्लीकेट से बात हो गई है, वही प्रचार करेगा हमारा।’ पहले कभी डुप्लीकेट मार्कशीट्स के धंधे से उठ कर राजनीति के धंधे में आए नेता ने अपनी औकात के हिसाब से यह उद्घोषणा की, तो पत्नी का खून खौल गया।
‘तुम उस जानवर की पूंछ के समान हो, जो कभी सीधी नहीं होती और परेशान होकर फिर उसे काटना पड़ता है।’ पत्नी ने नेता पर अपना सारा गुबार निकाल दिया।
‘ठीक है, फिर ऐश्वर्या राय की डुप्लीकेट को बुला लूं?’ नेता के सवाल के जवाब में पत्नी ने क्या कहा, यह तो नहीं मालूम, मगर अगले दिन के अखबारों में ‘नेता के बेडरूम में घुसकर अज्ञात बदमाशों ने हाथ-पैर तोड़े’ शीर्षक के साथ ही न्यूज के नीचे अस्पताल में भर्ती नेता का फोटो जरूर छपा था।