-अतुल मिश्र

‘भाई साहब, यह कनाट प्लेस का ही रास्ता है?’ पहली मर्तबा मुरादाबाद से टैक्सी लेकर दिल्ली के कनाट प्लेस की रेड लाइट पर खड़े रामभरोसे ने किसी स्कूटर-चालक से पूछा।

‘आप गलत आ गए, जनाब। कनाट प्लेस जाने के लिए आप वापस उसी रास्ते पर जाएं जहां से आप चल कर इतनी दूर तक आए हैं।’ सही रास्ते पर खड़े व्यक्ति को गलत रास्ता बता कर उसका मजा लूटने वाले स्कूटर-चालक ने टैक्सी-ड्राइवर और रामभरोसे दोनों को देखते हुए अपने मार्ग-ज्ञान से अवगत कराया।

‘मतलब यहां से वापस दस किलोमीटर जाएं?’ मार्ग दिखाने वाले के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने से पहले रामभरोसे ने पूछा।

‘दस कहां जी, पंद्रह किलोमीटर वापस जाकर फिर नोएडा वाला रास्ता पकड़ लें। उसी से मिला हुआ है कनाट प्लेस।’ गलत रास्ता और कितना गलत बताया जा सकता है, इस लिहाज से रेड लाइट पर ग्रीन सिग्नल का इंतजार कर रहे स्कूटर वाले ने बताया।

‘बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब। आपको तकलीफ दी।’ ड्राइवर द्वारा आभार व्यक्त करने से पहले ही रामभरोसे ने कृतज्ञता जाहिर कर दी।

‘यह तो हमारा फर्ज था जनाब।’ ग्रीन सिग्नल होते ही अपना स्कूटर निकालने की जुगाड़ देख रहे दिल्लीवासी ने रामभरोसे को उसे बेवकूफ आदमी की तरह देखा, जो बेवकूफ बनने के बावजूद अपनी कृतज्ञता जाहिर करने से बाज नहीं आते हैं।

‘फिर भी आप अगर नहीं बताते, तो हम कनाट प्लेस के चक्कर में और भी आगे निकल गए होते।’ कनाट प्लेस से वापस नोएडा की तरफ चलने की योजना बना रहे रामभरोसे ने बिना साष्टांग प्रणाम किए दोबारा उस स्कूटर वाले का धन्यवाद अदा किया, जो कनाट प्लेस में खड़ा होकर भी कनाट प्लेस का रास्ता बता रहा था।

“कोई बात नहीं, बस, नोएडा पहुंच जाइए। उससे मिला हुआ ही है कनाट प्लेस। वहां पहुंच कर कोई भी बता देगा।” ग्रीन सिग्नल पर तेजी से अपना स्कूटर निकालते हुए दिल्लीवासी ने दिल्ली के पानी का असर प्रदर्शित किया।

नोएडा वापस पहुंचकर रामभरोसे को पहली बार यह बोध प्राप्त हुआ कि भविष्य में दिल्ली में किसी से सही रास्ता पूछने से लाख गुना बेहतर है कि रास्ते में लगे मार्ग-प्रदर्शक बोर्ड को पढ़ते हुए ही अपने गंतव्य तक पहुंच लिया जाए।

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