-रागिनी राजीव श्रीवास्तव
फरवरी गुजरी स्मृतियों का माह है।
पुरानी चिट्ठियां, दोस्त, रिश्ते, जगहें
और सड़कें सब कुछ याद आते हैं।
मन के तहखानों में…
सूरज की हल्की मगर मजबूत धूप
सुधियों के वातायन से
छन कर आने लगती है।
फरवरी की ये जाती हुई
शांत और निर्मल दोपहर
एक नमी देकर चली गई है।
वसंत और पतझड़ एक साथ
घटित होने का सुन्दर रूप है फरवरी।
वसंत का हर्षोल्लास मन पर छाया रहे।
झरते पत्तों को देख कर
वीतरागी न बन जाना।
नए कोपलों को देख कर आशान्वित रहना।
नए पुष्पों और पत्तों की आभा लिए
ये अनुरागी माह सभी को प्रिय होता है।
प्रीति के इस माह में,
मैं स्नेह बोना चाहती हूं।
मैं फरवरी की धूप होना चाहती हूं।
थोड़ी शीत, थोड़ा ताप,
वसंत और पतझड़ के साथ होना चाहती हूं।
मैं फरवरी की धूप होना चाहती हूं।
थोड़े से जब दिन बड़े हो,
वृक्ष बौर से ढकें हो,
पीत के इस मास में,
कोयल की हूक
होना चाहती हूं।
अनुरक्ति के इस मास में
मैं स्नेह बोना चाहती हूं।
मैं फरवरी की धूप होना चाहती हूं।