-रश्मि वैभव गर्ग

सुनो नारी…
तुम हरसिंगार सी सुकोमल,
पर इस कोमलता में
अपने संस्कारों की सुगंध
न भूल जाना तुम।
रचा  है तुमने सृष्टि को
अपने उदर में नौ महीनों तक,
पर इसकी लक्ष्मण रेखा को
यूं व्यर्थ ही पार न कर जाना तुम।

सुनो नारी…
रास्ते दूर तक पसरे हैं
तुम्हें यूं अर्थहीन बहकाने के लिए,
पर अपनी सीमाएं
स्वयं ही चिह्नित कर जाना तुम।
नंदिनी हो तुम, प्रेयसी हो तुम,
पर सवाल हो जब तुम्हारी अस्मिता का,
तोड़ कर बेड़ियां, बंदिनी बन जाना तुम।

सुनो नारी…
अस्तित्व की इस लड़ाई में..
छूना बुलंदियों को जरूर,
बस इस दौड़ में,
उच्छृंखल न बन जाना तुम।
एक नदी समाहित है तुममें,
बस समर्पण करने से पहले
खुद को खुद में
बचा जाना तुम।

सुनो नारी…
संसार को जानने के लिए
एक पहर भर कर चुप रहना
और मौत आने से पहले
जीवन लिख जाना तुम।

सुपर लाइन
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रचा है तुमने सृष्टि को अपने उदर में नौ महीनों तक

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