नई दिल्ली। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान जब दुनिया के कई ताकतवर देश एक दूसरे से लड़ रहे थे, तब सोवियत संघ भी इसमें पीछे नहीं था। वह एक छोटे मगर एक अहम देश जापान से लड़ बैठा। इस क्रम में उसने दुश्मनों पर अपने जासूसों के जरिए नजर रखी। सोवियत रूस ने जापान की खुफिया जानकारी लेने के लिए जिस जासूस को भेजा था, वह कोई साधारण शख्स नहीं था। कौन था वह रूस का ‘अंडर कवर एजंट’। आइए इसके बारे में जानते हैं।
इस जासूस को रूसी आज भी गर्व से याद करते हैं। यही नहीं तत्कालीन सोवियत संघ के बड़े जासूसों में उसका नाम लिया जाता है। यह शख्स था-रिचर्ड सोर्गे। इसने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कई गोपनीय जानकारियां सोवियत संघ को सौंपी। रिचर्ड बेहद बहादुर जासूस था। वह पहले विश्वयुद्ध के दौरान उसने रूसी सेना के साथ मोर्चे पर गया और दुश्मन देश के साथ सैनिकों से युद्ध लड़ते हुए वह बुरी तरह घायल हो गया। उसकी दोनों टांगें टूट गईं।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सोवियत संघ ने उसकी भूमिका बदली। उसे अंडर कवर एजंट बना कर बतौर पत्रकार उसे यूरोपीय देशों में भेजा गया। इसी दौरान सोवियत सरकार ने बड़े कारोबारियों की जासूसी के लिए 1922 में फ्रेंकफर्ट भेजा। उसके कामों और अनुभवों को ध्यान में रखते हुए सोवियत संघ ने रिचर्ड को जापान में जासूसों का जाल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी।
इसके बाद तो सोवियत संघ ने रिचर्ड की मदद से जापान में जासूसों का अच्छा खासा नेटवर्क खड़ा कर लिया। सच कहें तो यह रिचर्ड ही था जिसने 14 सितंबर 1941 को यह सूचना दी कि जापान की सेना सोवियत संग पर हमला करने जा रही है। यही नहीं जापान साइबेरिया में गृहयुद्ध उकसाने की चाल भी चल रहा है। रिचर्ड की इस गोपनीय सोचना के बाद सोवियत संघ पहले ही सतर्क हो गया। दुर्भाग्य से रिचर्ड को तोक्यो में 18 अक्तूबर 1941 को पकड़ लिया गया। वह अगर गिरफ्तार न होता अगर उसकी पर्ची प्रेमिका नहीं फेंकती।
अपनी गिरफ्तारी के बाद रिचर्ड ने बचने की कोशिश की। उसने खुद के सोवियत नागरिक होने से इनकार कर दिया। दूसरी ओर उसे सोवियत संघ ने भी युद्ध कैदी मानने से इनकार कर दिया। नतीजा यह कि रिचर्ड को काफी यातनाएं सहनी पड़ीं। आखिर में उसे तीन साल बाद सात नवंबर 1944 को फांसी दे दी गई।
अपने एक होनहार और बहादुर जासूस से दूसरे देशों में खुफियागीरी कराना और फिर पकड़े जाने पर या लौटने पर उसे अपना जासूस न मानना दुखद है। ऐसे जासूसों की लंबी शृंखला है। आश्चर्य की बात है कि जीते जी रिचर्ड सोर्गे को सोवियत संघ ने भी अपना जासूस नहीं माना। आखिरकार 1964 में कहा कि रिचर्ड हमारा जासूस था। उसे सोवियत खुफिया अधिकारी का दर्जा दिया गया। देश ने उसे अपना नायक माना। फ्रांस की एक फिल्म ‘हू आर यू, मिस्टर सोर्गे’ आपको अवश्य देखनी चाहिए।