जासूस डेस्क
नई दिल्ली। दुनिया में कई युद्ध पर्दे के पीछे भी लड़े जाते हैं। मोर्चे पर दो देशों के बीच घमासान शुरू होने से पहले एक युद्ध जीता जा चुका होता है। इसके पीछे भूमिका होती है खुफिया सैनिकों की। ये जासूस अमूमन मोर्चे पर तो नहीं जाते, मगर इससे उनकी अहमियत कम नहीं होती। इसलिए दुनिया के ज्यादातर छोटे-बड़े सभी देश अपने यहां खुफिया तंत्र बना कर रखते हैं। कुछ बड़े देशें की खुफिया एजंसियों के कारनामे इतने हैरतंगेज हैं कि उनसे कई देश दहश्त में रहते हैं। इजराइल का मोसाद और अमेरिका का सीआईए भी है। मगर क्या आप को याद है कि एक जमाने में रूस की कुख्यात खुफिया एजंसी केजीबी भी हुआ करती थी। इसमें काम करने वाला एक जासूस तो राष्ट्रपति के पद तक जा पहुंचा। पुतिन साहब को तो आप जानते ही हैं।  

केजीबी अब नहीं है, मगर वह फेडरल सिक्युरिटी सर्विस के नाम से काम कर रही है। फिर भी केजीबी का खौफ आज भी कई देशों में है। अमेरिका और ब्रिटेन की खुफिया एजंसियों के बाद रूस का खुफिया तंत्र ही सबसे अधिक चर्चित था। इसकी पहुंच राजनीतिक गलियारों से लेकर सत्ता में बैठे लोगों और आमजनों के बीच थी। एक दौरान में लोग हंसी-मजाक में कहते थे कि तुम केजीबी के एजंट तो नहीं। यह सच था कि केजीबी का कोई एजंट कब और कहां मौजूद होगा, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। आज जब कृत्रिम मेधा से जासूसों का काम आसान हो गया तब केजीबी एक दौर में पलक झपकते ही किसी भी देश से खुफिया दस्तावेज उड़ा लेता था। केजीबी की हरकतों से एक समय में अमेरिका भी चौकन्ना रहता था।

आम तौर पर कोई भी देश अपने खुफिया तंत्र का बजट नहीं बताता। सोवियत रूस ने भी यही किया। अलबत्ता एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि केजीबी में 1986 के दौरान सात लाख से अधिक लोग काम कर रहे थे। इस लिहाज से केजीबी का बजट कितना रहा होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इससे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान केजीबी के तेज-तर्रार जासूसों का काम इतना बेहतरीन था कि रूस के तत्कालीन शासक अपने दुश्मन देशों की हर हरकत की खबर होती थी।  

केजीबी आज बेशक दूसरे नाम से और नए स्वरूप में काम कर रही हो, मगर उसका लक्ष्य और उद्देश्य नहीं बदला है। वह आज भी प्रतिद्वंद्वी देश की हर जानकारी अपने पास रखती है। वह संबंधित देश में चल रही रक्षा और विज्ञान पर चल रही अनुसंधान गतिविधियों की जानकारी पता लगाने की जुगत में लगी रहती है। यही नहीं वह मित्र देशों से सूचनाएं आग्रह करने पर साझा करती है। मगर उतना ही जितना वह उचित समझती है।        

कहते हैं कि केजीबी के जासूस दुनिया भर में फैले हुए हैं, मगर इस खुफिया एजंसी की पैनी निगाह अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी पर अधिक रही है। इसने कई जासूस इन देशों में भेजे। केजीबी अपने जासूसों को इतनी तैयारी कर घुसपैठ कराता है कि इसकी कल्पना उसका प्रतिद्वंद्वी देश भी नहीं कर पाता। कौन होगा जासूस, कह नहीं सकते। क्या पता वह अभिनेता हो या गायक या रेस्तरां का नर्तक। कोई भी हो सकता है।

केजीबी के जासूस किसी भी तरीके से अपने जाल में शिकार को फांसने में कामयाब रहते हैं। दुनिया भर में रूस के दूतावासों में भी केजीबी के एजंट शीर्ष पदों पर बैठाए गए। यहां तक कि उन्हें राजनयिक जैसे पदों पर भी नियुक्त किया गया। कहा जाता है कि ये छुपे हुए जासूस संबंधित देशों में फैले अपने साथियों के संपर्क रहते हैं। उनके ये साथी वही युवा होते हैं जिन्हें रूस विशेष रूप से प्रशिक्षित कर भेज चुका होता है। ये लोग संबंधित देश में घर परिवार बसा कर केजीबी के लिए जासूसी कर रहे होते हैं।

प्रतिद्वंद्वी देश के लोग सोच भी नहीं पाते कि उनके बीच कोई केजीबी का आदमी रह रहा है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में तो अब पता लगाना नामुमकिन है। क्योंकि केजीबी बदले नाम से और नए स्वरूप में किस तरह और किनके बीच मौजूद होगी, कहा नहीं जा सकता। देशों के बीच बेशक युद्ध अब न के बराबर होते हैं, मगर खुफिया तंत्रों का छद्म युद्ध हर पल चल रहा होता है। इसकी भनक तक किसी को नहीं होती।   

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