नई दिल्ली। अमेरिका की खुफिया एजंसी के बाद अगर कोई सबसे खतरनाक एजंसी है, तो वह है इजराइल की सैन्य खुफिया इकाई मोसाद। क्या ही अजीब बात है कि इजराइल पर हमास के हमले की साजिश का पता लगाने में यह खुफिया एजंसी गच्चा खा गई। सात हजार जासूसों वाले इस खुफिया संगठन पर एक साथ कई सवाल उठ गए। खास तौर से रक्षा विशेषज्ञों ने आश्चर्य जताया कि मोसाद हमास की साजिशों का पहले पता क्यों नहीं लगा पाई। जबकि पूरी दुनिया आतंकवाद से लोहा लेने के मामले में मोसाद की कायल रही है।

मोसाद दुनिया की सबसे बड़ी खुफिया एजंसी मानी जाती है। इजराइल इसके लिए अच्छा खासा बजट जारी करता है। यह करीब तीन बिलियन डॉलर बताया जाता है। यह एक ऐसा खुफिया संगठन है जो अपनी गुप्त मुहिम को अंजाम तक पहुंचा कर रहता है। उसके इस जज्बे के कारण कई आतंकवादी खौफ खाते हैं। एक वजह यह भी है कि मोसाद आाधुनिक संचार और रक्षा उपकरणों से लैस रहती है। वह जमीन से लेकर आसमान तक अपने दुश्मनों पर हरदम नजर रखती है। मोसाद का इतना मजबूत जाल है कि उसने देश विरोधी आतंकी समूहों में भी उसने जासूसों की पैठ बना रखी है। इरान, लेबनान और सीरिया तक में उसके मुखबिर काम कर रहे हैं।          

साल 1973 के बाद 2023 में मोसाद से ऐसी क्या चूक हुई कि फिलीस्तीन में पैठ बनाए हमास ने इजराइल पर भयावह हमला कर दिया। हमास के आतंकवादियों ने इजराइली शहरों में घुस कर भयावह हिंसा की। कई निर्दोष लोगों, महिलाओं और बच्चों को अगवा कर लिया। इनमें कुछ लोगों की हत्या भी कर दी गई। बताते हैं कि इससे पहले योम किप्पुर युद्ध को सबसे भयावह माना गया था। मगर साल 2023 में हमास के हमले के बाद मोसाद पर कई सवालिया निशान लग गए। यह भी अचरज की बात है कि इस खुफिया संगठन के ‘अंडरकवर ब्रांच’ कैसरिया यूनिट भी गच्चा खा गई, जबकि इसके जासूस हर तरफ फैले हुए हैं। कैसरिया यूनिट के जासूस अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगातार सूचनाएं इकट्ठा करते हैं। जरूरत पड़ने पर इस इकाई के लोग दुश्मनों को मार डालते हैं।

मोसाद के भीतर इतनी इकाइयां हैं कि इनके काम करने के तरीके पर कोई भी दांतों तले अंगुली दबा ले। मोसाद की एक इकाई तो दुनिया भर में खुफिया अभियान चलाती है। इसी तरह मेत्साद नाम की एक इकाई मनोवैज्ञानिक अभियान चलाती है। मोसाद का अपना अनुसंधान और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भी है। सभी इकाइयां मिल कर काम करती हैं। सभी तथ्य और जानकारियां खुफिया संगठन के प्रमुख के पास भेजी जाती हैं। वहीं जब कोई गुप्त मुहिम शुरू होती है तो उसकी मंजूरी इजराइल के प्रधानमंत्री ही देते हैं। इसके बाद मोसाद का अभियान शुरू होता है।    

अब सवाल यह है कि जिस खुफिया संगठन की इतनी गहरी पैठ दुश्मनों के बीच हो, जिसके नाम से आतंकी समूह कांपते हों, नंबर दो होने की धाक पूरी दुनिया में हो और जो अपने दुश्मनों को उसके देश में जाकर उठा लेता हो, वह हमास के हमले के हमले को कैसे नहीं रोक सका। सच कहें तो इजराइली अधिकारियों के पास भी इसका जवाब नहीं।

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