-संतोषी बघेल

प्रेम एक नैसर्गिक क्रिया है,
नहीं है अद्भुत प्रेम का होना,
या फिर तम में विचरण करते
दो हृदयों में प्रेम की कोंपल फूटना।
परस्पर आकर्षण से विवश होकर,
मन से एकाकार हो जाना या
विभावरी मे तारें गिनते-गिनते,
किसी क्षण एक दूसरे में खो जाना,
तनिक भी अद्भुत नहीं, प्रेम का हो जाना
शाश्वत है यह, इसलिए स्वाभाविक है।

स्त्री के लिए कठिन नहीं है,
अपने लिए उपयुक्त प्रेमी ढूंढ लेना,
सौंप देना अपनी सारी थाती,
और उससे भी अपेक्षाएं रखना,
अपने संपूर्ण अनुराग और उत्कंठा संग,
प्रतिपल उसकी ही राह तकना,
तनिक भी अद्भुत नहीं, प्रेम का हो जाना।

प्रेम कोई हादसा नहीं है,
प्रेम कोई अलौकिक प्रसंग नहीं,
हां, अद्भुत तब है जब
वाचालता से विराम लेकर प्रेम
मौन में भी अभिव्यक्त हो, मुखर हो।
प्रेमी महसूस ले प्रिया की भावना,
स्त्री समझ ले प्रेमी का मन्तव्य।

दिनों, महीनों और वर्षों में भी,
न मिटे स्मृति, उत्कंठा और तड़प,
जारी ही रहे परस्पर प्रतिक्षाएं,
एकात्मकता और मिलन की चाह,
तभी अद्भुत कहलाएगा ये प्रेम,
तब ही सार्थक होगा प्रेम,
और मिल सकेगी प्रेम को पूर्णता।

माना संभव नहीं सदैव ही
प्रेमी-प्रेमिका का मिल जाना,
किन्तु प्रेम में आजन्म प्रेम का होना,
मिलन से कहीं अधिक अपेक्षित है,
प्रेम में प्रेम अभीष्ट है, मिलन नहीं…।

* (कवयित्री छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी की व्याख्याता हैं)

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