-भावना मगन तरु
फिल्मों का नशा हर दौर में कायम रहता है। इसलिए फिल्में देखना जरूरी है। आज हम बात करेंगे ‘1942 : अ लव स्टोरी’ की। जब यह फिल्म आई थी तब एक ही विकल्प था सिनेमा हॉल और जो फिल्में हम वहां जाकर देखते हैं वो अरसे तक याद रहती हैं। इस फिल्म में मनीषा कोइराला बेहद खूबसूरत लगीं। एकदम परियों सी। हल्की गुलाबी साड़ी पहनी हुई। बाल हल्के गूंथे हुए और उस पर फूल। बला की खूबसूरत। जो दौर था उसी टाइप का स्टाइल था उनका। अनिल कपूर पता नहीं बूढ़े होगे या नहीं, मगर हर बार नया जलवा। इस फिल्म में बेहद सादगी •ारा अ•िानय। बेहद हैंडसम लगे। कोट और टाई के साथ अलग सा लुक लिए
पूरी फिल्म में हल्का सा धुआं और रिमझिम बारिश। जैसे कोई परी कथा चल रही हो। दोनों का एक दूसरे को देखने का नजरिया बेहद लुभावना। लाइब्रेरी की किताबों के बीच उनका रोमांस। फिल्म अपने नाम को चरितार्थ करती हुई। ये फिल्म कसौनी में फिल्माई गई थी।
फिल्म ‘1942 : अ लव स्टोरी’ में विधु विनोद चोपड़ा ने एक अलग सी दुनिया ही बना डाली। इसमें आजादी की लड़ाई का रंग •ार दिया। कहें तो पूरी मसाला पैक फिल्म। इसमें सब कुछ मौजूद था। यह फिल्म आजादी की लड़ाई के बीच सुरों में गूंथी हुई प्रेम कथा है। बेहद सुरीली •ाी क्योंकि हमारे राहुल देब बर्मन जी की आखिरी म्यूजिकल फिल्म थी। इस फिल्म के गीत रचने में कई महीने की मेहनत लगी। विधु जी को एचएमवी वालों ने कहा था कि आप बर्मन को ना लें, लेकिन विधु जी ने सुनी नहीं। इसके बाद तो सबको पता है कि एक संगीतमय अलविदा कहा था बर्मन दा ने। यह फिल्म 15जुलाई को रिलीज हुई बर्मन दा चार जनवरी 1994 को ही अलविदा कह गए।
फिल्म की कहानी अलग सी थी जो दर्शकों को बांधने में कामयाब रही। एक वफादार ब्रिटिश कर्मचारी के बेटे को क्रांतिकारी की बेटी से प्यार हो जाता है। अब पिता और बेटे की लड़ाई और बेटे का आजादी की लड़ाई दिखती हैं। पिता-पुत्र की लड़ाई के बीच प्यार भी पनप रहा और हर तरफ आजादी की लड़ाई के नारे। चारों तरफ क्रांति की लहर। सब हाथ में मशाल लिए मार्च कर रहे हैं। क्रांतिकारी की बेटी और ब्रिटिश अधिकारी का बेटा क्या मिल पाएंगे या इनकी प्रेम कहानी अधूरी रहेगी? इसके लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी।
फिल्म के कुछ सीन
नरेन (अनिल कपूर) को जब फांसी के लिए जा रहे होते हैं। वह अपनी मां से माफी मांगता है कि मां मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया। तब मां बोलती है-तुम भारत मां के लिए बलिदान दे रहे हो, जय हिंद बेटा। फिर आगे उसे सीढ़ियों की तरफ उसके पिता मिलते हैं। वो कहते हैं नरेन अब भी बता दो देशद्रोही कहां छिपे हैं। तुमको डग्ल्स माफ कर देगा, तब नरेन कहता हैं, मैं एक ही देशद्रोही को जानता हूं वो आप हैं पिता जी।
दूसरा सीन
जब नरेन फांसी के अंतिम छोर पर पहुंचता है, जहां सारे क्रांतिकारी जय हिंद के नारे लगा रहे हैं वहां रज्जो (मनीषा कोइराला) भीड़ को चीरती हुई नरेन को देखने आती है। तब गीत कुछ न कहो की धुन बजती है। यह बेहद मार्मिक दृश्य हैं।
तीसरा सीन
पुलिस वाले जब मासूम बच्चे के हाथ में तिरंगा देख कर उसे भी पीटना शुरू कर देते हैं तब नरेन पुलिस वालों पर टूट पड़ता है। दूसरे सीन में अपने हाथ में रघुवीर पाठक (अनुपम खेर ) अपने हाथ में बम को लेकर एक साथ कई ब्रिटिश पुलिस वालों को मौत के घाट उतार देते हैं। वे खुद भी शहीद हो जाते हैं।
फिल्म के लोकप्रिय गीत
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1-प्यार हुआ चुपके से- कविता कृष्णमूर्ति
2-रिमझिम रिमझिम, रुमझुम रुमझुम- कविता कृष्णमूर्ति, कुमार शानू
3-एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा…- कुमार शानू
4-रूठ ना जाना- कुमार शानू
5-कुछ ना कहो (खुश)- कुमार शानू
6-कुछ ना कहो (दुखद)-लता मंगेशकर
7- ये सफर- शिबाजी चटर्जी
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